Moral stories in hindi : एक समय की बात है एक सु-संपन्न गांव में एक परिवार रहता था । सु-संपन्न इसलिए , की यह गांव होते हुए भी किसी शहर से कम नहीं था । यानी, शायद ही ऐसी कोई सुख सुविधा, व्यवस्था होगी जो इस गांव में ना हो ।
हाई प्रोफाइल इंस्टीट्यूट से लेकर हॉस्पिटल्स, स्कूल, कॉलेज, लाइब्रेरी, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और साइबर कैफे तक ।मार्केट और रोड का तो कहना ही क्या था। बल्कि हम यह भी कह सकते हैं कि साफ-सफाई और सफाई के प्रति जागरूकता मैं यह गांव शहरों को भी पीछे छोड़ रहा था।
प्रगति के पथ पर अग्रसर यह गांव बाकी आसपास के गांव के लिए मिसाल बन गया था । पर गांव के हालात हमेशा से ऐसे ना थे । यह गांव भी अपने नजदीकी बाकी के गांव की तरह ही था सुना और उपेक्षित ।
तो आइए पता करने की कोशिश करते हैं उपेक्षित होते गांव की सफलता की कहानी जिसने मिसाल बना दी
उस समय की बात है जब गांव के गांव सूने होते जा रहे थे । और यह कोई एक गांव की बात नहीं थी किसी भी गांव के किसी भी घर में झांक कर देखो तो हर एक घर में उदासी, सूनापन, भूख और बेबसी के सिवाय कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता ।
फसलों से लहलहाने वाले खेत और धान्य से भरे रहने वाले कक्ष सब सुने पड़े थे । गांव में बढ़ती समस्याओं ने घर के बच्चों को और युवाओं को गांव से घर- परिवार से दूर जाने पर मजबूर कर दिया था । किसी को पढ़ने के लिए तो किसी को कमाने के लिए । जब यह सिलसिला शुरू हुआ तो गांव के घरों में रह गए केवल बड़े बुजुर्ग । इसी सिलसिले में शामिल था गांव के मुखिया राजेश्वर जी का परिवार भी ।
राजेश्वर जी का परिवार इस गांव में पीढ़ियों से रह रहा था । मानो परिवार के बल्कि खानदान के सभी सदस्य जैसे गांव और गांव वालों के लिए ही जी रहे हो । गांव और गांव वालों की सेवा के लिए वे सर्वदा तत्पर रहते ।
परंतु अब हालात काफी बदल चुके थे । अब यह परिवार गांव वालों की मदद तभी कर पाता , जब अपने परिवार की आवश्यकताओं की आपूर्ति करने में सक्षम होता । महामारी और आपदाओं ने सभी गांवों को मानो बर्बाद ही कर दिया था । और परिवार की आवश्यकताओं को पूर्ण करने वाला परिवार में बचा भी कौन था । केवल राजेश्वर जी और उनका छोटा बेटा इंद्रेश ।
अपने बड़े दो बेटों को राजेश्वर जी , गांव में फैली महामारी में गवा चुके थे । अब उनके परिवार में शामिल थे – पत्नी साध्वी जी , बेटा इंद्रेश , बेटी इंद्राणी और उनकी बहू विमला और उनके दो बच्चे मानवी और मुखर ।
अब क्योंकि परिवार की संपूर्ण जिम्मेदारी इंद्रेश जी पर थी जिसे वे भली-भांति समझते थे । तो वे परिवार की जिम्मेदारी निभाने के लिए शहर पहुंच गए । शहर पहुंचकर जब उन्होंने अपने पैर जमा लिए तो बच्चों की पढ़ाई के लिए पत्नी और बच्चों को भी शहर बुला लिया ।
बच्चों का स्कूल में एडमिशन करवाने के बाद इंद्रेश जी का अगला कदम था अपनी छोटी बहन का घर बसाना । तो उन्होंने अच्छा परिवार और अच्छा व्यावहारिक और सुशील लड़का देखकर अपनी बहन के हाथ पीले कर दिये ।
अच्छा घर परिवार मिलने के कारण इंद्राणी अपने परिवार में बेहद खुश थी । और इंद्राणी के अच्छे व्यवहार और सूझबूझ के चलते ससुराल वाले भी संतुष्ट थे।
बहन की शादी के बाद इंद्रेश जी ने अपने माता-पिता को भी कई बार अपने पास शहर बुलाया था । पर उन्होंने हरबार मना कर दिया । उनका कहना था शहर में हमें घुटन होती है । हम से नहीं रह जाता उन डिब्बे जैसे बंद घरों में ।
हमें तो हमारे गांव का यह खुला आंगन ही पसंद है । तुम लोग हमारी चिंता मत करो, तुमने हमारे लिए सारी व्यवस्था सारा इंतजाम कर रखा है , फिर भी हमें कभी कोई परेशानी होगी तो हम तुम्हें जरूर बताएंगे बेटा ।
इस बात से इंद्रेश जी थोड़ा निराश हो जाते हैं , तो उनके पिता ने उनके पास बैठकर शांति से उनको समझाया ।
* राजेश्वर जी – देखो बेटा इंद्रेश – तुम अपनी सारी जिम्मेदारियां भली-भांति निभा रहे हो । हमें तुम लोगों से कोई परेशानी नहीं है । बल्कि हम बहुत खुश हैं । पर बेटा तुम यह भी जानते हो कि वह गांव और सब गांव वाले हमारे लिए क्या मायने रखते हैं ।
हमारे पुरखों ने पीढ़ियों तक इस गांव की सेवा की है और इस गांव की मिट्टी ने और गांव वासियों ने भी हमें हमेशा उतना ही प्यार, सम्मान और अपनापन दिया है । इसी गांव से हमेशा हमारी सारी जरूरतें पूरी हुई है , बल्कि जरूरत से ज्यादा ही मिला है ।
बेटा गांव छोड़ के शहर का रुख करना , हमारे गांव के किसी भी युवा का सपना नहीं था । खासकर तुम्हारा तो बिल्कुल भी नहीं । ना ही किसी माता-पिता के लिए आसान था अपने बच्चों को अपने घर-परिवार से दूर, एक अनजान भीड़ में भेज देना ।
परंतु, तब समय की मांग ही यही थी । और अब जब सब सही हो रहा है तो – हमें भी अपने गांव में कुछ सुधार करने हैं ।
शहर की भागदौड़ और चकाचौंध में हमारे निर्मल से गांव बेहद #उपेक्षित हो रहे हैं । इन गांवों को हमारी जरूरत है, तो हम कैसे पीछे हट सकते हैं – बेटा !
* इंद्रेश जी – तो फिर बाबू जी मैं भी आपके साथ गांव लौट चलता हूं । आपके साथ मिलकर गांव के सुधार कार्य में आपकी मदद करूंगा ।
* राजेश्वर जी – (थोड़ा हंस कर) नहीं बेटा , अभी तुम पर और भी बहुत सारी जिम्मेदारियां है । जब तक तुम शहर में रहकर अपनी जिम्मेदारियां निभाते रहोगे, तो ही मैं गांव में अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन पूरे मन से कर पाऊंगा । गांव में किए जाने वाले मेरे कार्यों के लिए तुम्हारा शहर में कार्यरत रहना बेहद जरूरी है ।
इन दोनों बाप बेटे की बातें थोड़ी दूर बैठे स्टोरी बुक पढ़ रही मानवी कब इतना ध्यान से सुनने लगी उसे भी पता नहीं लगा । गांव के प्रति अपने दादू और पापा का लगाव उसे भी गांव के प्रति आकर्षित कर रहा था ।
* राजेश्वर जी – ( आगे अपनी बात जारी रखते हुए कहते हैं ) बेटा जैसे तुम अपने बुढे़ माता-पिता को अकेला नहीं छोड़ना चाहते , वैसे ही वह मिट्टी भी तो हमारी मां है ना । और अब मेरी बारी है, अपनी उस मां के लिए कुछ करने की । बेटा- क्या तुम मेरी बात समझ रहे हो ?
* इन्द्रेश जी – जी बाबू जी, आप बिल्कुल सही कह रहे हैं। हम सब अब बिल्कुल वैसा ही करेंगे जैसा आप चाहते हैं ।आप गांव में ही रह कर हमारे गांव को खुशहाल बनाने की शुरुआत कीजिए । इस काम में आपको हमारी जो भी मदद चाहिए आप सिर्फ हमें बताना । हम से जो बन पड़ेगा हम यहां शहर में रहते हुए वह सब कुछ करने को पूरे मन से तैयार है ।
अब मानवी भाग कर सीधा अपने दादाजी के पास आकर बैठती है । और कहती है दादू मैं भी आपकी हेल्प करूंगी और आपके साथ हमारे गांव को सुंदर बनाऊंगी ।
दादाजी ने हंसके मानवी के सर पर हाथ रखा और प्यार से उसकी पीठ थपथपाते हुए बोले – बेटा यह तो बहुत अच्छी बात है कि तुम हमारे गांव के लिए कुछ करना चाहती हो पर बेटा तुम अभी बहुत छोटी हो हमारी गुड़िया ।
* मानवी – पर दादू , मुझे करना है । मुझे हमारा गांव बहुत अच्छा लगता है, गांव में बहुत मजा आता है ।
* अब इंद्रेश जी बोलते हैं – बेटा मानवी , यह बहुत अच्छी बात है कि तुम्हें गांव अच्छा लगता है तुम्हें वाहां मजा आता है और तुम गांव के लिए कुछ करना चाहती हो । पर दादू की बात भी सही है बेटा तुम अभी छोटी हो । हां ,हमारे पास इसका एक अच्छा आईडिया है ।
* मानवी – क्या idea पापा ?
* इन्द्रेश जी – देखो बेटा – गांव में आ रही परेशानियों के चलते लोग गांव छोड़कर शहर में आ बसे । और अब शहर के आदि होकर गांव की उपेक्षा करते हैं । गांव लौटना ही नहीं चाहते । यह सब देखने के बाद और तुम्हारा गांव के प्रति लगाव देखने के बाद , मैं चाहता हूं कि तुम अभी तो अपनी पढ़ाई पूरे लगन और मन से पूरी करो । तब तक मैं और तुम्हारे दादा जी हमारे गांव में जो भी थोड़ा कुछ कर सकते हैं वह शुरू करते हैं । बाद में तुम अपनी पढ़ाई पूरी करके सिर्फ हमारे गांव में ही क्यों बल्कि आसपास के जितने गांव हैं उन सब में वह परिवर्तन लाना, वह सुविधाएं तैयार करना जिसकी वहां जरूरत है और जिसके लिए लोग शहर भागते हैं ।
हां – पर एक बात का हमेशा ख्याल रखना, कि गांव को इतना मत बदलना कि वह शहर बन जाए । गांव को गांव ही रहने देना । आज जो लोग गांव से परेशान होकर शहर भागते हैं वही लोग शहर से तंग आकर मन की शांति , शुद्ध हवा और अच्छे स्वास्थ्य के लिए छुट्टियां बिताने वापस गांव ही लौट के जाते हैं ।
तुम गांव की एक ऐसी रूपरेखा तैयार करना कि लोग उसकी मिसाल दें । और अपने अपने गांव को वैसा ही बनाने का प्रयास करे । कोई कभी किसी गांव की उपेक्षा न करें । और ना ही गांव छोड़कर भागना पड़े किसी को रोटी की तलाश में ।
अगर तुम ऐसा कर पाती हो तो कभी कोई गांव उपेक्षित नहीं होगा ।
और हमेशा याद रखना बिना गांव के कोई शहर भी शहर नहीं बन सकता । शहर को शहर बनाने में भी सबसे बड़ा योगदान गांव का ही होता है ।
अपने पापा की बातें सुन के मानवी के मन में भी जोश भर गया और उसने भी अपने मन में ठान लिया उसे आगे क्या करना है । आज इस परिवार ने गांव की पूरी रूपरेखा ही बदल डाली ।
धन्यवाद🙏🙏
मधु पारिख