हाँ, बेटियाँ बदल जाती है,
हर फरमाइश को पूरा करवाने वाली,
वो जिद्दी, बेटियाँ भी बदल जाती है,
लेटेस्ट मोबाइल के वर्जन की दीवानी,
पुराने वर्जन के मोबाइल से संतुष्ट हो जाती,
गोलगप्पे के लिये मचलने वाली बेटी,
अब खाने से पहले हाथ रोक देती,
किसी और को तो कुछ नहीं चाहिये,
हाँ, बेटियाँ बदल जाती है,
स्कूल की छोटी – छोटी बातें बताने वाली,
अब बहुत सी बातें छुपा जाती,
गीली आँखों के कोरों पे आंसू रोक लेती,
कुछ तिनका पड़ गया, का बहाना बना जाती,
हाँ, ये बेटियाँ कुछ जल्दी ही बदल जाती,
त्यौहार पर नये कपड़ों के लिये जिद्द वाली,
बहुत कपड़े है, कह किनारा कर जाती,
बिंदास रहने वाली ये बेटियाँ,
सोच – समझ कर खर्च करने लगती,
नौकरी संग बच्चों की परवरिश,
में, बन जाती, अपनी माँ के जैसी
अनजाने ही सही, बन जाती
माँ की परछाई…
हर बात पर गुब्बारे जैसा
मुँह फूलाने वाली बेटियाँ,
होठों पे हँसी चिपका लेती,
हाँ ये बेटियाँ, जिम्मेदारियों तले,
भूल जाती अपनी ख्वाहिशें..
ये बेटियाँ ना बड़ी
शिद्दत से याद आती..
इतनी खूबसूरती से बदलती,
भूल जाती, माँ भी कभी बेटी थी!!
#संगीता त्रिपाठी
गाज़ियाबाद