तुम पराया धन नही मेरा स्वाभिमान हो – अनुपमा

शुभी का फोन बज रहा था , उठा ही नही पा रही थी , सुबह सुबह इतना काम होता है ना घर मैं ,आकाश देख भी रहा था फिर भी उसने न ही तो फोन देखा न ही उसे लाकर दिया ।

खैर फ्री हो कर शुभी ने अपना फोन चेक किया सबसे पहले , अनजाने नंबर से कॉल था ,उसने पलट कर फोन लगाया तो उधर से आवाज आई शुभी दीदी ? उसने बोला हां मैं शुभी बोल रही हूं आप कौन ? 

दूसरी तरफ से आवाज आयी दीदी हम माला बोल रहे मम्मी जी के यहां से … अपको सुबह हमने फोन किया था दीदी , शुभी को आश्चर्य हुआ और परेशानी भी , बोली हां हां बोलो माला क्या हुआ सब ठीक तो है ना !

दीदी वो सुबह मम्मी जी पार्क गई थी टहलने को ,आते वक्त पीछे से किसी गाड़ी ने उन्हे टक्कर मार दी ,मम्मी जी अस्पताल मैं है दीदी ,उन्हे बहुत चोट आयी हैं 

शुभी ये सुनकर बहुत घबरा गयी और अस्पताल का नाम पूछ कर जल्दी से घर को ताला लगा कर वहां के लिए निकल गई ,रास्ते से उसने आकाश को भी फोन कर दिया था , पर आकाश ने महत्वपूर्ण मीटिंग है ये कह कर फोन रख दिया की शाम को वो भी वही पहुंच जायेगा ।



शुभी ने कैब पकड़ी और उसे अस्पताल जाने का निर्देश देकर आंखें बंद करके बैठ गई , शुभी का भाई बैंगलोर मैं था वो शादी के बाद वहीं का होकर रह गया था , दिल्ली कम ही आना होता था उसका और मम्मी जी वहां जाती नही थी । पापा के जाने के बाद भी मम्मी को भैया ने बैंगलोर आने के लिए एक दो बार बोला भी पर पता नही मम्मी जा नही पायी या भैया भाभी की वजह से ले जा नही पाया ।

उसने भैया को फोन करके बता दिया था उसने भी आकाश की तरह प्रतिक्रिया दी थी अब वो कह और कर भी क्या सकती थी ,मम्मी ही तो थी जो औरत होकर भी औरत को हमेशा दोयम दर्जे का पुरुष के नीचे रहने वाली , पुरुष की हर बात मानने वाली श्रेणी मैं रखती थी , उन्होंने शुभी की परवरिश भी इसी सोच के साथ की थी , शुभी को शुभी से ज्यादा पराया धन कह कर बुलाया होगा शायद मां ने उसे ! हर बात मैं भैया की चलने देना और शुभी का सही होते हुए भी हमेशा डांट देना , यही सोच थी मां की शुरू से ,पापा के समझाने का भी उनपर कोई असर न था , पापा की वजह से शुभी अपना ग्रेजुएशन पूरा कर पायी थी वरना मम्मी ने तो 12th के बाद ही घर मैं हंगामा मचाना शुरू कर दिया की लड़की जात है ,इतना पढ़ा कर करना क्या है दूसरे घर ही तो जाना है , जितना जल्दी हो हाथ पीले कर दो , हम लोग गंगा नहा ले ! आदि आदि

ड्राइवर ने जैसे ही अस्पताल के सामने गाड़ी रोकी तो वो अतीत की पुरानी यादों से निकल कर बाहर आ गयी ,उसने जल्दी से कैब का बिल दिया और सीधे अस्पताल मैं घुस गई , उसके फोन पर टिंग टिंग आवाज हुई पर अभी उसे फोन खोल कर देखने का भी समय नहीं था वो तो अपनी के पास जल्द से जल्द पहुंच जाना चाहती थी ।

उसने मां को देखा तो वो बेहोश थी , आईसीयू मैं थी अभी किसी को उनके पास जाने की इजाजत नहीं थी , शुभी ने डॉक्टर से बात की तो उन्होंने उसे पूरी डिटेल्स दी और बताया की दुर्घटना से तो वो सुरक्षित है पर जब उनके टेस्ट किए गए तो उनकी एक किडनी पूरी तरह से खराब है , आप जल्द से जल्द परिवार को बुला लीजिए और डोनर का इंतजाम भी कीजिए । अस्पताल रिकॉर्ड मैं अभी उनकी मैचिंग का कोई भी डोनर उपलब्ध नहीं है ।

शुभी अकेली स्तब्ध सी आईसीयू के बाहर बैठी थी , उसने आकाश और भैया को सूचना देने के लिए अपना फोन ओपन किया तो दोनो के ही संदेश पड़े थे , आकाश को देर हो जायेगी वो रात तक आ पाएगा और भैया की फ्लाइट दो दिन बाद की बुक हुई थी ।

उसने फोन वापिस रख लिया और सीधे डॉक्टर के पास चली गई ।

रात को आकाश जब अस्पताल आया तो वो बहुत नाराज़ था शुभी के इस फैसले से उसने खुद अकेले इतना बड़ा फैसला क्यों लिया वो फोन भी तो कर सकती थी और इंतजार भी तो कर सकती थी । पर शुभी ने उसको कोई जवाब नही दिया और वो अभी उस स्तिथि मैं भी नही थी की जवाब दे सके ।

दो दिन बाद भाई भी आ गया था , बस औपचारिकता जैसे , उसने तो शुभी से कुछ कहा भी नही जैसे कुछ हुआ ही न हो ।

मां को भी होश आ चुका था और आकाश ने उन्हें सबकुछ बता दिया था । मां के सामने जब शुभी गयी तो मां ने आंखें बंद कर ली और उसमे से अनगिनत आंसू बहे जा रहे थे , जैसे कह रहे हो शुभी तुम पराया धन नही मेरा स्वाभिमान हो बेटा ।

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