वो मासूम – रेखा जैन : Moral stories in hindi

“आज फिर ये अपना मनहूस चेहरा लेकर मेरे सामने आ गया उसको कितनी बार बोला है कि मेरे सामने ना आया करें लेकिन फिर भी इसको समझ नहीं आता है।  सविता तुमको कितनी बार समझाया है कि इसको सबके साथ मत बैठाया करो और ना मेरे सामने लाओ लेकिन तुमको भी समझ नहीं आती है,,,,, क्यों? तुम दोनो ने मिल कर मेरी जिंदगी जहन्नुम बना दी है।

और ये…ये पैदा होते ही क्यों नहीं मर गया।   मेरी जिंदगी में ग्रहण है ये मनहूस।  कहीं जाता भी नही है और ना ही मरता है। 

पूरे दिन हाड़ तोड़ मेहनत कर के इंसान दो रोटी भी चैन की नहीं खा सकता।” गुस्से से बोलते हुए अशोक ने खाने की थाली जोर से नरेश पर फेंक दी और चिल्लाते हुए बोले,

“जब तक ये मनहूस इस घर में है तब तक हम चैन से नहीं जी सकते।”

थाली सीधे आ कर नरेश के माथे पर लगी।  गरम गरम दाल और सब्जी उसके चेहरे पर गिर गए।  जलन की वजह से उसके मुंह से सिसकारी, “आह” निकल गई। 

उसके दर्द से तड़पने पर अशोक ने क्रोध से भरी लाल आंखो से उसे घूरा और बिना खाना खाए ही उठ गए।  

उनका गुस्सा देख कर नरेश सहम गया।  डर कर चुपचाप अपने कमरे में चला गया।

अशोक के परिवार में उनकी पत्नी सविता और तीन बच्चे है।

सबसे बड़ी बेटी रीना, उसके बाद नरेश, और सबसे छोटा बेटा मोनू है।

दरअसल नरेश थर्ड जेंडर यानि किन्नर है।

नरेश जब छोटा था तो ये बात उसकी मां ने सबसे छुपाई लेकिन जैसे जैसे वो बड़ा होता गया।  उसकी पसंद और रुचियां लड़कियों जैसी होती गई। उसे लड़कियों की पोशाक पहनना अच्छा लगने लगा, चोटियां बनाना अच्छा लगता।

वो अपनी दीदी के कपड़े पहन लेता।  उसकी मां डांट कर, समझा कर कपड़े बदलवा देती।  लेकिन उसकी चाल ढाल भी लड़कियों जैसी हो गई। 

स्कूल में वो लड़कियों के साथ ही बैठता और उनसे ही उसकी दोस्ती थी।

उसकी शारीरिक संरचना में परिवर्तन आने लगा था।

स्कूल में भी सब बच्चे उसे चिढ़ाते। उसका मजाक उड़ाते।  उसकी चाल की नकल करते थे।

टीचर्स भी उपहास भरी नज़रों से देखते।  किसी प्रश्न को पूछे जाने पर नरेश अगर उसका उत्तर देने की कोशिश करता तो उसे झिड़क देते।

लेकिन उसकी मां सविता उसे बहुत प्यार करती थी।  आखिरकार नरेश उनकी संतान है और वो मां है उसकी,,,एक मां के लिए सभी संतान समान होती है।

सविता के लिए भी अपने तीनों बच्चे एक समान थे।  बल्कि वो नरेश का ज्यादा ख्याल रखती थी।  

लेकिन नरेश के पिता अशोक,,,वो नरेश से बहुत नफरत करते थे।  उनको लगता था कि नरेश समाज में उनकी इज्जत को मिट्टी में मिलाने आया है। उसकी वजह से लोग उनका मजाक बनाते है।नरेश उनके लिए किसी काम का नहीं है।  वो नरेश की सूरत से नफरत करते है। 

वो चाहते है कि नरेश को किन्नर समाज को दे दिया जाए लेकिन सविता ऐसा नहीं चाहती। 

वो नहीं चाहती कि नरेश तालियां बजा कर पैसे कमाए।  वो चाहती है कि नरेश अच्छा पढ़ लिख कर एक अच्छी नौकरी करे और सम्मान भरी जिंदगी जिए।

लेकिन अशोक को तो नरेश का वजूद ही सहन नही होता है।

वो हर वक्त उसे जली कटी सुनाते रहते है।  

उन्होंने नरेश पर कई पाबंदियां लगा रखी है।…

नरेश कभी उनके सामने नहीं आएगा, सब घर वालो के साथ बैठ कर खाना नहीं खाएगा,  घर वालो के साथ बाहर नहीं जाएगा, अपने दोनों भाई बहनों से नहीं बोल सकता ,,उनसे दूर रहेगा,  घर में किसी मेहमान के आने पर वो कमरे से बाहर नहीं निकलेगा।

ऐसी बहुत सी पाबंदियां उन्होंने नरेश पर लगा रखी है।  इसी वजह से नरेश के दोनो भाई बहन भी उससे बात नहीं करते और दूर दूर रहते है। हर वक्त उसका मजाक उड़ाते है।

बचपन में उसे अपने पिता की नफरत समझ नहीं आती थी।  

अपने दोनों भाई बहन की तरह वो भी लाड़ से अपने पिता के गले से लटक जाता तो अशोक तुरंत ही उसे नफरत से झिड़क कर अपने से दूर कर देते  और वो मासूम सहम कर एक कोने में खड़ा हो जाता।

वो अपनी आंखों में आंसु भर कर  मां से पूछता, “पापा मुझे हर वक्त डांटते क्यों है?? दीदी और मोनू की तरह मुझे प्यार क्यों नही करते?”

“बेटा तुम स्पेशल बच्चे हो इसलिए पापा अपना प्यार तुमको नहीं दिखाते।  वो तो दीदी और मोनू से भी ज्यादा प्यार तुम्हे करते है।” मां उसे प्यार से बहला देती और वो मासूम समझने की कोशिश करता  रह जाता।

लेकिन अब नरेश 14 वर्ष का हो गया है और सबके नफरत की वजह भी वो समझ गया है।

अब उसने स्कूल जाना भी छोड़ दिया क्योंकि सब उससे दूर दूर रहते है।  उसे अजीब नजरों से देखते है।

इस पूरी दुनिया में सिर्फ मां ही उसकी एकमात्र सहारा है जो उससे प्यार करती है।

लेकिन आज तो उसके पापा ने हद ही कर दी।  उस पर थाली फेंक दी।

आज भी उसकी गलती नही थी। उसके पापा खाना खाने बैठे तो वो अपने कमरे में ही था लेकिन  जग में पानी खत्म हो गया था और उसे जोरों की प्यास लगी थी इसलिए वो पानी लेने रसोई में आया था और उसके पापा ने उसे देख लिया।

पापा हमेशा उसे जली कटी सुनाते है और वो खामोशी से सुनता रहता है लेकिन आज उनकी नफरत चरम पर थी।

गरम दाल सब्जी से वो बुरी तरह जल गया लेकिन उसके पापा को जरा भी अफ़सोस नहीं हुआ बल्कि वो और ज्यादा गुस्सा हो गए।

आज की घटना का उसके बाल मन पर बहुत असर हुआ।

वो कमरे में चुपचाप जा कर बैठ गया।  उसकी आंखे बरस रही थी और दिमाग में विचारों का बवंडर चल रहा था।

कुछ देर बाद मां उसके लिए खाना ले कर आई।  मां ने प्यार से उसके सर पर हाथ घुमाया तो उसने अपनी आंसू भरी नजरे उठा कर मां से पूछा,

“मां मैं जो भी हुं उसमे मेरी क्या गलती है?  मैं अपनी इच्छा से तो ऐसा नहीं बना और ना ही अपनी इच्छा से इस दुनिया में आया हुं तो फिर पापा मुझसे क्यों इतनी नफरत करते है…क्यों वो हर वक्त मुझे जली कटी सुनाते रहते है।….इस सब में मेरी क्या गलती है??

भगवान ने मुझे ऐसा बनाया तो मेरा इसमें क्या कसूर है?  भगवान ने मुझे ऐसा क्यों बनाया कि सब मेरा मजाक उड़ाते है,, मुझसे नफरत करते है।

मेरे अपने पिता, मेरे भाई बहन सभी मुझसे नफरत करते है।

सच कहते है पापा,,मुझे पैदा होते ही मर जाना चाहिए था।  भगवान जी को मुझे वापस अपने पास बुला लेना चाहिए था।

मर जाता तो सबकी नफरत नहीं सहन करनी पड़ती,,,पापा की चिंता भी खत्म हो जाती।”

“नहीं बेटा ऐसा मत कहो।” सविता ने नरेश के मुंह पर अपना हाथ रख दिया।

  “पापा तुमसे प्यार करते है।” सविता ने धीरे से कहा।  उसकी आवाज उसका साथ नहीं दे रही थी क्योंकि सच्चाई वो जानती है।

नरेश ने भी कोई जवाब नही दिया क्योंकि सच्चाई वो भी जानता है।

“तुम खाना खा लो और जो हुआ उसे भूल कर आराम से सो जाओ!” सविता ने उसे प्यार से कहा।

“आप थाली यहां रख दो, मैं बाद में खा लुंगा।”

सविता थाली रख कर चली गई।

सुबह दोनों बच्चे स्कूल चले गए। अशोक के ऑफिस जाने के बाद सविता ने नरेश को नाश्ते के लिए आवाज  लगाई।

“नरेश,,नरेश,,,आ जा नाश्ता कर ले बेटा।”

दो तीन आवाज लगाने पर भी जब नरेश कमरे से बाहर नहीं आया तो सविता उसके कमरे मे गई।

कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था।  बहुत देर तक थपथपाने और आवाज देने के बाद भी नरेश ने दरवाजा नहीं खोला तो सविता का दिल किसी आशंका से कांप गया।

उसने पड़ोसियों को बुलवा कर दरवाजा तुड़वाया।  कमरा खुलते ही सामने नजर गई और सविता की चीख निकल गई।

सामने नरेश उसकी साड़ी का फंदा गले में लगा कर पंखे से लटका हुआ था।    वो मर चुका था।  

एक मासुम ने उस गलती के लिए आत्महत्या कर ली जो उसकी थी ही नहीं। अपने पिता की जली कटी बातों को सुन कर उसने अपनी जान दे दी।

उसके पिता अशोक को बहुत पछतावा हुआ लेकिन अब पछताने से क्या होगा!!

नरेश ने अपनी इच्छा से किन्नर बन कर जन्म नहीं लिया था।  वो भी भगवान की एक कृति है।

हर प्राणी भगवान की रचना है,,इसलिए हर प्राणी को सम्मानपूर्वक जीने का हक है।

भगवान की रचना में दखलंदाजी देने का किसी को हक नही है।

#जली कटी सुनाना

रेखा जैन

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