सही उत्तराधिकारी का चुनाव

एक राजा की चार पत्नियां थी चारों  रानियों से एक-एक पुत्र भी थे। राजा अब वृद्ध हो चुका था राजा अपने बड़े पुत्र को राज्य सिंहासन सौंपकर अब सन्यासी बनना चाहता था लेकिन जब राजा के दूसरी रानियों को यह बात पता चला कि राजा बड़ी  रानी के लड़के को राज सिंहाशन सौंप रहा है तो तीनों रानियां राजा से लड़ाई करने लगी या तो राज्य का बंटवारा होगा या हमारा बेटा राजा बनेगा।

राजा बहुत नेक और ईमानदार था वह अपने जीते जी अपने राज्य का बंटवारा नहीं करना चाहता था और यह भी नहीं चाहता था कि उसके पुत्र आपस में लड़े।  राजा बहुत परेशान हो गया यह बात उसने अपने मंत्री से बताया, राजा के मंत्री ने कहा कि अगर इस काम के लिए हम अपने राजगुरू से सलाह ले तो बेहतर होगा.

अगले दिन ही जंगल से राजगुरु को बुलाया गया, राजगुरु के समक्ष राजा ने अपनी समस्या को रखा, राजगुरु ने कहा, “राजन बस इतनी सी छोटी बात से तुम परेशान हो गए, राजगुरु ने राजा के चारों लड़कों को अपने पास बुलाया और कहा,”मैं तुम चारों को अपने साथ अपने आश्रम ले चलूंगा और जो भी तुम चारों में से मेरे परीक्षा में पास हो जाएगा वहीं राज सिंहाशन का  उत्तराधिकारी होगा, क्या तुम सब को यह बात मंजूर है ? राजा के चारों पुत्र ने हाँ में सहमति दिया।

राजगुरु ने  राजा के चारों पुत्रों को अपने साथ आश्रम लेकर आ गए। राजगुरु ने सबसे पहले  चारों पुत्रों को आश्रम में जितने भी बच्चे रहते थे उनके जूठे बर्तन साफ करने को कहा।  राजा के तीन पुत्रों ने बर्तन साफ करने से मना कर दिया और उन्होंने बोला हम राजा के पुत्र हैं हम यह नौकरों वाला काम नहीं करेंगे।  आप हमें कोई और काम दे दीजिए। लेकिन राजा के सबसे छोटे पुत्र है झूठे बर्तन साफ करने स्वीकार कर लिया और वह रोजाना तीनो टाइम आश्रम के बर्तन साफ किया करता था राजा के दूसरे लड़के राजगुरू से दूसरा काम मांग कर करने लगे।

15 दिन बाद राजगुरु ने राजा को अपने आश्रम में बुलाया और बोला राजन निर्णय हो गया है  कि राजा किस को बनाया जाएगा राजा ने पूछा किसको राजगुरु ने जवाब दिया आप के सबसे छोटे पुत्र को।  राजा ने कहा महाराज लेकिन यह तो परंपरा के विरुद्ध होगा राजा का सबसे बड़ा पुत्र ही राज सिंहाशन का अधिकारी होता है।  राजगुरु ने कहा राजन लेकिन जो सिंहाशन के योग्य होगा उसे ही तो सिंहासन पर बैठाया जाएगा। गुरु ने राजा से सारा वृत्तांत सुनाया और कहा कि जो सेवा करना जानता है वही असली राजा हो सकता है और आप के छोटे बेटे में सेवा करने के  गुण मौजूद हैं इसलिए राजा तो आपका छोटा बेटा ही होना चाहिए।

राजा ने राज गुरु की बातों को स्वीकार कर अपने छोटे बेटे को राजा बना दिया।

दोस्तों इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि बड़े होने से कुछ नहीं होता है आपके अंदर जब तक दया धर्म नहीं होगा आप मानव कहने लायक नहीं है ।

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