सुकेशा – hindi kahani

ग्रामीण परिवेश की पच्चीस वर्षीया युवती केतकी कानपुर में वकालत पढ़ने के साथ साथ माल रोड के रेडीमेड वस्त्रों के एक शोरूम में पार्टटाइम एकाउंटिंग का काम भी देखती है। उसके पहनावे व बोलचाल के ढंग को देखकर शोरूम के मालिक ने उसे लुधियाना, मुम्बई और कोलकाता के वस्त्र निर्माताओं से मिलकर आकर्षक रंगों की नई व आधुनिक डिजाइन के वस्त्रों को अपने शोरूम के लिए चयन करके खरीदने की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी दे रखी है। उसके शोरूम में खरीद करने आयी मेडिकल छात्रा सुकन्या से मित्रता क्या हुई कि उसने अपने टू बीएचके फ्लैट को शेयर करने का ऑफर दे दिया। यह फ्लैट सुकन्या के इटावा में क्लिनिक चलाने वाले डॉक्टर पापा ने विशेष रूप से सुकन्या को कानपुर में रह कर डॉक्टरी पढ़ने के लिए ही खरीदा था। अब सुकन्या और केतकी फ्लैट के अलग अलग बेडरूम में अपनी प्राइवेसी के साथ रहती थीं और सभी सम्बंधित खर्चों को आपस में शेयर कर लेती हैं। दोनों प्रसन्न और सन्तुष्ट थीं।

नए सीजन के वस्त्रों का पंजाब के कुछ शहरों से चुनाव करके केतकी दिल्ली से वन्देभारत सुरफास्ट ट्रेन में चढ़ी और अपनी सीट पर पीठ टिकाकर आँखें बंद कर लीं और रिलैक्स करने लगी। कुछ देर में बगल की सीट में हलचल हुई तो वह सचेत हुई और पाया कि एक शालीन और सम्भ्रान्त वृद्ध महिला उसकी बगल में बैठी हैं। उन्हें देखकर वह मुस्कुराई तो महिला ने कहा, “बेटी, कानपुर जाओगी या बनारस?”

“आण्टी जी, मैं तो कानपुर तक ही जाऊँगी।”

यह सुनकर गैलरी में पास खड़ा नवयुवक बोल पड़ा, “तो ठीक है। प्लीज आप मम्मीजी का ख्याल रखियेगा। वहॉं स्टेशन में कोई न कोई आ जायेगा इन्हें लेने के लिए। आपको कोई असुविधा तो नहीं होगी मिस..?”

“मैं केतकी। नहीं.. असुविधा कैसी! मुझे भी कम्पनी मिल जाएगी गपशप करने के लिए मिस्टर..” मुस्कुरा कर उत्तर देकर केतकी ने युवक की तरफ देखा और फिर देखती ही रह गयी।

” जी मैं आकाश मेहरा। ठीक है केतकी जी, मैं अब उतर रहा हूँ। गाड़ी के दरवाजे बंद होने को हैं। कृपया मेरी मम्मी के साथ-साथ आप अपना भी ख्याल रखियेगा।” कहकर हाथ हिलाता हुआ आकाश गाड़ी से नीचे उतर गया लेकिन उसकी मधुमय वाणी, अधरों की सतत मुस्कान, उसका रोबीला व्यक्तित्व और आकर्षक पहनावा … यह सब केतकी के हृदय में ही ठहर गया। वह पलट कर शीशे से बाहर देखने लगी किन्तु गाड़ी उसे प्लेटफॉर्म पर पीछे छोड़ती हुई आगे निकल रही थी।





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“तो कौन है वो ‘मिस्टर राइट’ जो हमारी सहेली के मस्तिष्क को सतरंगी सपनों से भर गया है?” बहुत देर से केतकी के बेडरूम के दरवाजे पर खड़ी होकर उसके हावभाव देखकर सुकन्या ने कहा तो केतकी अचकचा गयी और बोल पड़ी “आकाश!… अरे नहीं… कोई भी तो नहीं।”

“तो ये आकाश महाशय पंजाब के किसी गारमेंट मैन्युफैक्चरर के बेटे हैं या फिर कोई सहयात्री जिसको अपना निश्छल हृदय सौंप कर कानपुर आ गईं हैं देवीजी!”

“आओ, सुकन्या यहाँ आकर बैठो। मैं कॉफी लाती हूँ और फिर पीते पीते सब बताती हूँ।”  बेड से उठकर केतकी किचेन की तरफ बढ़ती हुई बोली।

कॉफी के घूँट के साथ केतकी ने आकाश के साथ वह कुछ पलों की भेंट व वार्तालाप को बताते हुए बोली, “सुकन्या! यहाँ पनकी की मेहरा ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के मालिक सुधीर मेहरा का एकलौता बेटा है आकाश जो कि दिल्ली में रहकर एमबीए कर रहा है। यह सब उसकी माँ से मुझे बातचीत करते समय पता चला। यार सुकन्या! आकाश बहुत स्मार्ट, डैशिंग और गुडलुकिंग है। बस मैं उसकी बाहों में खो जाना चाहती हूँ। सच्ची में..!” कहते-कहते प्रेमाभिभूत केतकी की आँखों में आँसू आ गए।

“देख मेरी जान! यह तेरे पहले प्यार का जादू है। तू तो अपने गरीब माँबाप के विषय में सोच और अपने कैरियर पर ध्यान दे। एकबार वकालत में तू सफल हो गयी तो कई आकाश तेरे आगे-पीछे घूमते मिल जाएँगे। यह आकाश अभी तेरे लिए सचमुच के आकाश जैसा ही है जिसे तू अपने पंजों के बल खड़े होकर उँगलियों से छूना चाहती है। प्लीज केतकी, यथार्थ की दुनिया में वापस लौट आ।” सुकन्या ने उसके आँसू पोंछ कर कंधों पर हाथ रखते हुए कहा तो सहसा केतकी सुकन्या के गले लग कर रोने लगी।

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कई दिन लग गए केतकी को सुकन्या की बात समझने और स्वयं को संतुलित करने में। अंततः वह अब आकाश के विचार को पीछे छोड़ कर अपनी परीक्षाओं की तैयारी में जुट गई थी। सुकन्या के भी फाइनल एक्जाम्स इसी समय होने थे। 

दो माह बाद  एक शाम छह बजे तो केतकी अपनी मेज का काम समाप्त कर शोरूम से बाहर निकलने लगी तभी द्वार पर आकाश मिल गया जो शोरूम में अंदर जा रहा था। दोनों की दृष्टि मिली तो सहसा दो जोड़ी होंठ खिल गए। केतकी ने कहा, “अरे आकाश जी आप इधर!”

“हाँ केतकी जी। मम्मी ने कुछ साड़ियाँ मंगवाईं हैं और मुझे कहा है कि आप की ही शॉप से लेकर आऊँ लेकिन शायद मैं देर से आया हूँ।”

“हाँ, मैं निकल ही रही थी अभी किन्तु कोई बात नहीं, आप आ गये हैं तो चलिए अंदर और साड़ियाँ सेलेक्ट कर लीजिए।” 

चिरपरिचित मुस्कान के साथ आकाश ने एयर इंडिया के सिम्बल महाराजा की तरह सिर झुकाया और दाहिना हाथ आगे बढ़ाकर उसे आगे चलने का संकेत किया।





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कई साड़ियाँ लेकर जब वे बाहर आये तो आकाश ने एक कीमती डिजाइनर साड़ी का पैकेट केतकी की तरफ बढ़ाते हुए कहा, “केतकी जी, मम्मी जी की इच्छानुसार यह पैकेट आप के लिए।”

हर्षातिरेक से केतकी ठगी सी रह गयी और आकाश को एकटक देखती रही। उसके हृदय में अचानक उठी एक मादक हिलोर ने पुराने सभी अवरोधों और वर्जनाओं को तहस-नहस कर दिया था। उसकी निश्छल उमंगे गगन को स्पर्श करने लगीं थीं।

केतकी के आगे बढ़े हाथों में पैकेट रखते हुए आकाश ने मध्यम स्वर में कहा, “अरे! देवी जी, लौट आइये इस नश्वर संसार में। हम दुकान के बाहर खड़े हैं।”

चेतना में लौटते हुए केतकी बोली, “सॉरी आकाश जी। बस यूँ ही। उम्म! अच्छा… चलिए यह पैकेट मेरा हुआ लेकिन अब आपको हमारे साथ सामने के कॉफ़ी हाउस तक चलना पड़ेगा और एक कप कॉफ़ी पीनी पड़ेगी… प्लीज!”

उफ्फ! लड़कियों का यह ‘प्लीज’ शब्द का विशिष्ट प्रकार का उच्चारण न जाने कितने ही कठोरतम पुरुषों को भी द्रवित कर चुका है।

आकाश ने सहमति दी तो उमंग से भरी केतकी आगे बढ़कर सड़क पार करने लगी और आकाश उसके पीछे-पीछे आने लगा।

केतकी अभी सड़क पार करने ही वाली थी कि वह पीछे मुड़कर आकाश को देखने लगी। यही वह पल था जब एक तेज गति वाली बाइक हॉर्न बजाकर बिल्कुल उसके बगल से निकल गयी। इस अप्रत्याशित घटना से वह सकपका कर एक कदम पीछे होने को हुई किन्तु हड़बड़ाकर वह गिरने लगी। केतकी जमीन छूती इसके पहले ही आकाश ने उसे अपनी बाहों में सम्भाल लिया। केतकी का सिर आकाश की बाजू में स्थिर था जबकि उसके अधर आकाश के होठों के एकदम समीप थे। एक कल्पनामात्र से केतकी की आँखें बंद हो गईं और मुस्कान चौड़ी हो गयी। आकाश के स्पर्श से उसके कुँवारे मन में मादक हिलोर सहसा सुनामी सी उठ खड़ी हुई थी।

कुछ पलों के बाद उसके कानों में आकाश का स्वर सुनाई दिया, “केतकी जी, सम्भालिए स्वयं को। चलिए.. सामने ही कैफेटेरिया है। आइये।”

सचेत होकर बड़ी लज्जा से अपनी दृष्टि नीचे झुकाए वह कॉफ़ी हाउस में घुसी और एक खाली मेज की तरफ बढ़ गयी।

कॉफ़ी सिप करते हुए भी जब केतकी आकाश से दृष्टि नहीं मिला रही थी तो आकाश ने मेज से खेलती उसकी उँगलियों पर अपनी हथेली रखते हुए कहा, “केतकी, सचमुच तुम बहुत निश्छल और पवित्र हो लेकिन मैं स्वयं को तुम्हारे योग्य नहीं समझता हूँ।”





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यह सुनकर केतकी की दृष्टि आकाश से मिली तो आकाश ने अपनी हथेली का दबाव बढाते हुए अपनी पलकें झपका दीं।

“लेकिन क्यों? क्या हम दोनों का सोशल स्टेटस?” बहुत लरजते हुए स्वर में केतकी ने पूछा।

“अरे नहीं। यह बात नहीं है। लेकिन जो बात है उसे मैं आपसे साझा नहीं कर पा रहा हूँ।” हिचकते हुए आकाश ने कहा।

“यदि आप मुझ पर ट्रस्ट करें तो अवश्य साझा करें अन्यथा मैं इसी विषय में सोच-सोच कर पागल हो जाऊँगी।”

“दरअसल.. केतकी.. मैं किसी भी लड़की को….. शारीरिक सन्तुष्टि नहीं दे सकता हूँ।” हिचकते हुए एक झटके में अपनी बात को समाप्त कर के आकाश केतकी के चेहरे से अपनी दृष्टि हटाकर बाहर की तरफ देखने लगा।

“क्या!” चौंकते हुए केतकी ने कहा।

“हाँ, यही यथार्थ है।”

“क्या.. तो क्या आप ‘थर्ड जेंडर’..?”

“नहीं। न मैं कोई ‘हिजड़ा’ हूँ और न ही मैं ‘गे’ हूँ।”

“तब फिर?”

“इसे नपुंसकता कह सकती हैं आप।”

“ओह! क्या यह जन्मजात है? वैसे आज मेडिकल साइंस ने बहुत तरक्की कर ली है।”

“नहीं, यह जन्मजात भी नहीं है।” तनिक ठहर कर आकाश ने कॉफ़ी का एक घूँट भरा और फिर एक लंबी साँस लेकर केतकी को देखते हुए बोला, “केतकी! अब जो बताने जा रहा हूँ यह मेरे मम्मी पापा और मेरे डॉक्टर्स के अतिरिक्त बाहरी दुनिया में तुम पहली हो जिसे मैं बता रहा हूँ। सुनो! दिल्ली में पिछले साल एमबीए के पहले साल में हॉस्टल में मेरी रैगिंग की गई थी। तब सीनियर्स ने एक जलते हुए इलेक्ट्रिक हीटर के ऊपर मुझे पेशाब करने को विवश किया था। यद्यपि एक सीनियर स्विच पर उँगली रखे था किंतु सेकंड के हजारवें भाग में मुझे ऐसा झटका लगा कि…”

“हे ईश्वर! …” अपनी आँखें बंद करके केतकी दबी जुबान से चीख पड़ी।

“जब होश आया तो मैं हॉस्पिटल में था। मेरे पास मेरे पापा, वार्डेन सर और कुछ साथी खड़े थे।

“बेटे! कैसे हो तुम? कैसे करेंट लग गया?” पापा मुझ पर झुकते हुए भावुक स्वर में बोले।

मैं कुछ कह पाता इसके पहले ही वार्डेन सर बोल पड़े, “हॉस्टल में हीटर जलाना प्रतिबंधित है और ये जनाब चोरी-चोरी हीटर जलाये हुए थे। उसी से करेंट लगा है इसे मेहरा साहब।”

इस झूठ से मुझे भीषण वेदना हुई थी। खैर, एकांत मिलते ही पापा को मैंने सच्ची बात बता दी। पापा बहुत शॉक्ड हुए और भागकर डॉक्टर्स से मिले और उन्हें एक्चुअल जानकारी दी। फिर किये गए परीक्षणों से सिद्ध हो गया कि मेरे शरीर के पेल्विक एरिया का नर्व सिस्टम संवेदनशून्य हो गया है। इसका आंशिक असर टाँगों पर भी पड़ा था।

पापा ने तुरंत दिल्ली के बेस्ट डॉक्टरों के पैनल से बात की, विदेशों के कुछ न्यूटोलॉजिस्ट्स से राय ली और एक अच्छे हॉस्पिटल में शिफ्ट करके मेरा ट्रीटमेंट चालू हो गया। कुछ महीनों में मेरी टाँगें तो पूरी तरह से सक्षम हो गईं लेकिन…”

“मैं आपकी पीड़ा समझ सकती हूँ आकाश जी।” केतकी ने आकाश की हथेली को अपनी हथेली से दबाते हुए कहा।

“केतकी, मेरी मेडिसिन्स अभी भी चालू हैं। डॉक्टर्स की आशा अभी मरी नहीं है और ना ही मैं निराश हुआ हूँ क्योंकि मुझे बहुत हल्का हल्का सुधार महसूस भी हो रहा है। एक मेजर ऑपरेशन अभी होना है लेकिन पूर्ण परिणाम अभी भी गहरे अंधकार में छुपा है। ऐसे में मैं नहीं चाहता कि कोई लड़की विवाह के बाद मेरा उपहास उड़ाकर मुझे नल्ला, नामर्द और शिखण्डी जैसे विशेषणों से सम्बोधित करे।”

“आप अपने स्थान पर एकदम सही हैं और यह सब जानकर मैं अपने विचारों पर अब और भी दृढ़ हो गयी हूँ। आकाश जी, मुझे आपसे प्यार हो गया है अब। सच्ची में…” कह कर केतकी ने आकाश की हथेली को अपनी दोनों हथेलियों के बीच ले लिया। वह आकाश के हाथ में कम्पन महसूस कर रही थी। तब विषय को बदलते हुए वह फिर से बोली, “क्या उन बदमाश सीनियर्स के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की आपके पापा ने?”





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“बाद में पापा जी संस्थान के अधिकारियों से मिले और उन्हें पूरी वास्तविकता बताई। वे सीनियर्स बुलाये गए। प्रमुख दो सीनियर्स को निष्कासित कर दिया गया और कइयों से लिखित माफीनामा लिखवाकर  ले लिया गया। हालाँकि बाद में व्यक्तिगत हस्तक्षेप करके पापा ने दोनों सीनियर्स के शैक्षिक भविष्य देखते हुए उनका निष्कासन रद्द करा दिया। पापा के पुलिस कम्प्लेंट न करने तथा छात्रों व संस्थान के प्रति प्रदर्शित इस कोमल भावना को देख कर सभी सीनियर्स और अधिकारियों ने मेरे इलाज के लिए फण्ड जुटाने की सहमति बनाई जिसे पापा ने बड़ी विनम्रता से मना कर दिया। इस पर संस्थान के अधिकारियों ने मेरी अनुपस्थिति को अनदेखा करने व पढ़ाई के लिए अतिरिक्त सहयोग देने की बात कही।”

“बहुत बढ़िया। पापा जी ने बहुत अच्छा किया। आकाश जी, आइये अब चलते हैं। आपका बहुत समय खर्च कर दिया मैंने। मुझे स्वयं से पृथक न समझें अब और समय समय पर अपनी पीड़ा, विवशता, प्रसन्नता और उपलब्धियों को प्लीज मुझसे साझा अवश्य करते रहें।” बिल पेमेंट करते हुए केतकी ने कहा और द्वार की तरफ बढ़ गयी।

“केतकी, सच तो यह है कि तुमसे यह सब साझा करके मैं स्वयं को बहुत हल्का महसूस कर रहा हूँ अब।” अपने शॉपिंग बैग्स उठा कर पीछे आते हुए आकाश ने कहा।

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देर से घर पहुँचने पर चिंतित सुकन्या को केतकी ने जब आकाश से हुई मुलाकात को विस्तार से बताया तो सुकन्या के मुँह से एकाएक निकल पड़ा, “इंटरेस्टिंग!”

“क्या इंटरेस्टिंग?” चौंककर केतकी बोली।

“मेरी मेडिकल रिसर्च के लिए एक बढ़िया सब्जेक्ट है आकाश का केस। केतकी क्या तुम मुझे आकाश से एक बार मिलवा सकती हो?”

“हाँ.. मगर उसकी सहमति तो लेनी पड़ेगी मुझे।”

“देख ले तू। मुझ पर बड़ा एहसान होगा और… तुझ पर भी।”

“मुझ पर.. वो कैसे?”

“मर्द आकाश की बाहों में जीवन गुजारने का…” ‘मर्द’ शब्द पर जोर देकर कहते-कहते सुकन्या ने अपनी एक आँख दबा दी।

“सुकन्या यह परिहास का विषय नहीं है। वैसे भी आकाश का ट्रीटमेंट देश के सर्वश्रेष्ठ डॉक्टर्स के पैनेल व विदेशी डॉक्टर्स की रिगुलऱ कंसल्टेंसी में हो रहा है। मुझे नहीं लगता कि उसे तेरी जरूरत होगी फिर भी मैं उससे बात करूँगी तुम्हारे साथ मीटिंग फिक्स करने की।” केतकी ने गम्भीरता से कहा तो सुकन्या ने कहा, “हे देवदास की पारो! मैं सब कुछ समझ गयी हूँ। बस अपने ज्ञान के लिए आकाश की मेडिकल फाइल और उसका अनुभव जानना चाहती हूँ।”

“ओके.. मैं व्यवस्था करती हूँ।” कहकर केतकी बाथरूम में घुस गई।

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एक साल व्यतीत हो गया। इस बीच केतकी आकाश के घर जाकर उसकी मम्मी व पापा से मिलकर स्वयं को आकाश की पत्नी बनने की सहमति माँगी।

यह सुनकर मेहरा दम्पति चौंक गए थे और फिर पापा बोले थे, “बेटा केतकी, तुम अभी आकाश के विषय में कुछ नहीं जानती हो इसलिए ऐसा कह रही हो।”





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“पापाजी, मुझे आकाश ने रैगिंग व इसके बाद के सभी घटनाक्रम से पूरी तरह से अवगत करा दिया है। सबकुछ जानते हुए भी मैं आकाश से विवाह करना चाहती हूँ।”

“क्या सचमुच..!!” आश्चर्य व हर्ष के अतिरेक से मम्मी के मुँह से निकल पड़ा क्योंकि उन्होंने तो आकाश के विवाह के विषय में सोचना ही छोड़ दिया था। वे जानबूझ कर किसी लड़की के जीवन को नहीं खराब करना चाहती थीं। केतकी की बात ने सहसा उनमें उमंग भर दी थी।

“जी मम्मी जी।” कह कर केतकी उठी और सिर पर आँचल रख कर मम्मी पापा के पैर छू लिए।

मम्मी ने उसे गले लगाकर भरे कण्ठ से उसे ढेरों आशीर्वाद दिए।

अवसर निकालकर मेहरा दम्पति केतकी के गाँव जाकर केतकी के अनुरोध पर आकाश के एक्सीडेंट की बात छुपाकर उसके पापा से आकाश के लिए केतकी का हाथ माँग लिया। फिर आपसी सहमति से केतकी की व आकाश की फाइनल परीक्षाओं के बाद बिठूर के एक बड़े से गेस्ट हाउस में हुए भव्य समारोह में दोनों का विवाह संपन्न कर दिया गया।

इसबीच सुकन्या के साथ आकाश की कई मीटिंग्स हुईं। सुकन्या ने चल रही दवाओं के साथ साथ मेडिकेशन, योगा और स्पर्श थिरेपी को भी जोड़ दिया था आकाश के ट्रीटमेंट में। आज की चिकित्सा प्रक्रिया में इन प्राचीन भारतीय उपचार पद्धतियों को बहुत अधिक प्रचार प्रसार किया जा रहा है।

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दस वर्ष बाद…

माल रोड के उसी कॉफी हाउस में, जिसमें वे पहली बार मिले थे, मेहरा इंडस्ट्रीज के मैनेजिंग डायरेक्टर आकाश मेहरा व उनकी पत्नी व कम्पनी की लीगल एडवाइजर केतकी मेहरा बैठे कॉफ़ी पी रहे हैं और बार-बार द्वार की तरफ देखते जा रहे हैं। कुछ ही पलों में शहर की जानीमानी सेक्सोलॉजिस्ट सुकन्या सूरी अपने न्यूरोलॉजिस्ट पति डॉ अनिल सूरी के साथ अंदर आती नज़र आयीं। उनके पीछे पाँच साल की सुनहरे रेशमी बालों वाली एक बच्ची भी अंदर आयी।

टेबल के पास आकर केतकी को देखकर वह बच्ची “मम्मी” कहकर उनके सीने से चिपट गयी।

बेटी के सिर पर हाथ फेरते हुए आकाश ने कहा, “सुकेशा बेटी,  मौसी जी के साथ घूमकर कैसा लगा।”

“ग्रेट पापा। मौसी जी के साथ बहुत मज़ा आया मुझे।” सुकेशा सुकन्या को देखते हुए मुस्कुरा कर बोली।

वस्तुतः आज सुबह सूरी दम्पति मेहरा दम्पति से मिलने आये थे और वापसी में वे सुकेशा को अपने साथ लेते गए थे। बाद में माल रोड के कैफेटेरिया में मिल कर साथ-साथ कॉफ़ी पीने की बात तय हुई थी।

“आकाश बाबू, बहुत प्यारी बच्ची है आपकी। रेशमी बालों से मैच करता हुआ नाम रखा है आपने सुकेशा।” डॉ अनिल सूरी ने कॉफ़ी पीते हुए कहा।

“नहीं डॉ सूरी, यह नाम इसके बालों के कारण नहीं बल्कि सुकन्या, केतकी व मेरे नाम आकाश से मिलकर बना है। सुकन्या के द्वारा सुझाये गए मेडिकेशन व योगा के कारण अगले तीन माह में वे प्रभाव दिखने लगे थे जो पिछले एक साल की दवाओं से भी नहीं सम्भव हो पाया था। इसके बाद केतकी के सौंदर्यमय सानिध्य और मधुर स्पर्श ने तो जैसे मेरी व्याधि को  समाप्त कर शरीर में नई ऊर्जा भर दिया। मेरे रिगुलऱ डॉक्टर्स भी मेरे शरीर के अप्रत्याशित बदलाव पर हतप्रभ थे। सम्भावित ऑपरेशन भी टल गया और विवाह के दो साल बाद मैं पूर्ण स्वस्थ भी हो गया। इसी का परिणाम है हमारी बेटी सुकेशा। सुकन्या के गर्भवती होने की सूचना मात्र से मेरी माँ को कितनी खुशी मिली थी इसे मैं व्यक्त नहीं कर सकता। सुकेशा के जन्म लेते ही मेरे पापा ने इंडस्ट्री की देखभाल मेरे हवाले करके स्वयं को सुकेशा के इर्दगिर्द प्रतिष्ठित कर दिया। अब मम्मी जी भी इसी में व्यस्त रहती हैं।” आकाश ने कहा और बजते हुए मोबाइल को देखते हुए कहा, “लीजिये, पापा जी की कॉल भी आ गयी।”

कॉल अटेंड करते हुए कहा, “पापा जी हम बस दस मिनट में घर पहुँच रहे हैं।”

“यार आकाश, सुकेशा को घर पर ही छोड़ जाया करो यदि तुम्हें व केतकी को कहीं जाना हुआ करे तो। मन नहीं लगता यार उसके बिना। आओ, भई जल्दी आओ।”

“बस पापाजी, आ ही गया समझो।” कह कर आकाश उठ खड़ा हुआ तो सभी उठ गए। केतकी काउंटर पर ठहर कर भुगतान देने लगी और अन्य सभी बाहर कार की तरफ बढ़ने लगे।

सन्देश:- मेडिकेशन व योग के नियमित अभ्यास से हम अपने शरीर को सदैव स्वस्थ और सुडौल बनाए रख सकते हैं। इन्हें दिनचर्या में सम्मिलित करना ही चाहिए। गले लगना, चरण स्पर्श करना, पीठ या सिर पर स्नेह से हाथ फेरना, कन्धा सहला देना, मालिश करना आदि स्पर्श थिरेपी के बढ़िया उदाहरण हैं। – ‘जय’ हो।

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©जयसिंह भारद्वाज, फतेहपुर (उ.प्र.)

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