सॉरी या अकड़ – नीलिमा सिंघल

“नहीं खाना,,तुम्हारे हाथ का खाना” गुस्से मे चिल्लाते हुए तरुण ने खाने की थाली सरकाई,,और वही सोफ़े पर औंधे मुहँ पड़ गया,,,

तन्वी ने आँखों मे आयी नमी को पोछा और अपना खाना भी फ्रिज मे रख दिया, और कमरे मे आकर बिस्तर पर बैठ कर सोचने लगी,,,,, 

“अब ये आए दिन की बात हो गयी ,,,,,,जब तब ऑफिस मे कुछ भी होता तरुण सारा गुस्सा तन्वी और मिनी पर निकालता ,,,और बाहर पड़ जाता था। 

और हर बार घर का माहौल सही करने की मंशा से तन्वी बिना किसी गलती के सॉरी बोल दिया करती थी,,,,

अब तो उनके विवाह को 18 साल हो गये मिनी भी 16 साल की हो गयी,,,,,पर तरुण को बिल्कुल भी समझ नहीं आयी ,,,,इसमे कहीं ना कहीं मेरा (तन्वी का ) ही दोष है जिससे तरुण को कभी अपनी गलती नहीं दिखी ,,,उसने कभी आकर सॉरी नहीं बोला,,,,,

,पर बस अब और नहीं,,,,,,,अब मैं नहीं झुकुंगी,, नहीं खाना तो मत खाओ,,बाहर रहना है तो रहो “

अगले दिन सुबह तन्वी उठी और अपने आपको कामों मे व्यस्त कर लिया,,,,पर उसको तरुण का काम भी करना था और उस पर गुस्सा भी था इसीलिए,,,,,,रसोई से चिल्ला कर मिनी से कहा, ” मिनी अपने पापा से पूछ लो चाय बना दूँ या वो खुद बनाकर पी लेंगे,,,,,और हाँ टिफिन के लिए भी पूछ लेना,,खाना बनाऊं या वो भी खुद बना लेंगे “

मिनी ने आकार पापा स्व कहना चाहा,तभी तरुण ने भी चिल्ला कर बोला, ” मिनी,,अपनी माँ को बोलो,,,मुझे उनके हाथ का बना,,कुछ भी नहीं चाहिए,,,,,,,,,,मिनी ,,मेरा बच्चा तू बनाएगी ना पापा के लिए चाय और खाना “

“जी, पापा “कहते हुए मिनी रसोई मे माँ के पास आयी और बोली,,”क्या माँ,,कब तक ऐसा चलेगा,,आप सॉरी बोल दो हमेशा की तरह,,क्यूँ बात को बढ़ा रही हो “

“मैं,,बात बढ़ा रही हूँ,,,मुझे लगा था कि तू तो मुझे समझेगी,,,पर तुझे भी सिर्फ अपने पापा की पड़ी है, ,माँ की बिटिया नहीं,,,पापा की परी ही बनी रहे बस ” सिसकारी भरते हुए तन्वी रसोई से निकलकर अपने कमरे में चली गयी। 




मिनी ने चुपके से अपनी दादी को फोन मिलाकर सारी कहानी बताते हुए बोली, ” दादी,,माँ ने बस जिद पकड रखी है,,,वर्ना सब सही हो जाता,,जैसा पहले होता आया है “

दादी ने कहा,” बिटिया,,अपनी माँ का पहलू देख,,पापा का नहीं,,तन्वी ने हमेशा बिना किसी कसूर के माफी मांगी है,,,तू अच्छे से सोच बेटा,,,तेरे दादा तेरे पापा पुरुषत्व के अहंकार से भरे हुए हैं सारी जिंदगी मैंने और अपने विवाह से अब तक,,तेरी माँ ने  घर की शांति के लिए हमेशा मौन रहते हुए अपने सिर सारी गलती लेकर सॉरी बोलते रहे,,,,अपनी सारी जिंदगी अगर तुझे बेगुनाह होते हुए भी माफ़ी मांगनी ना पड़े तो अपनी माँ का साथ दे “

दादी की सारी बात सुनकर मिनी अपने पापा के पास गयी और बोली, ” पापा चाय तो मैं बना दूंगी,,पर खाने के लिए आपको माँ से ही कहना होगा “

तरुण गुस्से मे घर से बाहर निकल गया और ऑफिस चला गया, 

लंच मे जब वो कैन्टीन जा रहा था तो उसने अपने कॉलीग आकाश की बात सुनी,,जो फोन पर अपनी पत्नि से ” सॉरी कहते हुए बोल रहा था,,,,शाम को खाना मत बनाना ,,,,,,,,,अच्छा बाबा एक बार फिर से सॉरी,,,,,,,,,,,,हाँ,,हाँ,,,हाहाहा लेता आऊंगा,,,अब खुश “

फोन रखते हुए आकाश ने तरुण को देखा जो उसको घूर रहा था,,,

तरुण ने आकाश के फोन रखते ही बोला, ” लानत है,,तुझ पर,,,,अपनी पत्नि से कौन सॉरी बोलता है,,,छत हम देते हैं,,,हर ऐश हम देते हैं,,,,तो सॉरी उन्हें बोलना चाहिए वो भी बार बार “

आकाश मुस्कराते हुए बोलता है ” तरुण,,,हम बेफिक्री से नौकरी कैसे कर पाते है,,,,उन्हीं पत्नियों की वज़ह से,,,,हमारी पत्नियों,,घर संभालती है,,,बच्चे संभालती है,,हर आने जाने वाले का सत्कार करती हैं,,,,हमारे से जुड़े हर रिश्ते को प्यार और सम्मान से निभाती हैं,,,,यहां तक कि हमारे ऑफिस से उपजी हमारी सारी टेंशन को झेलती है ,,,,सिर्फ़ इसीलिए,,कि हम प्यार के दो बोल उनसे बोलें,,,हमारे साथ और प्यार से वो खिली खिली रहती है,,,,तुम भी कभी सॉरी बोलकर देखना,,अपनी पत्नि की मीठी मुस्कान देखकर तुम सब थकान भूल जाओगे,,,और कैसे खुद हारकर प्यार का रिश्ता जीत लोगे तुम्हें खुद पता नहीं चलेगा “

आकाश की बाते सुनकर तरुण के दिल दिमाग मे हथोड़े चलने लगे,,,,,,उसको याद आया, जब जब वो खाना नहीं खाता तब तब तन्वी भी तो खाना नहीं खाती और भूख से उसके सिर मे दर्द होने लगता है बहुत तकलीफ से गुजरती है,,

उसने मिनी को फोन मिलाया और पूछा, ” बेटा,,मम्मी ने खाना खा लिया”

“नहीं पापा,,,,उन्होंने कुछ नहीं खाया बहुत उदास बैठी हैं “तन्वी ने कहा। 

तरुण ने कहा, ” मम्मी को बतानामत,,मैं आ रहा हूं,,,साथ खाना खाएंगे “

आधे दिन की छुट्टी लेकर तरुण घर पहुंचा तो जैसे सन्नाटे ने उसका दिल दहला दिया,,,वो जल्दी से कमरे मे गया तो देखा, ” तन्वी की आँखों मे नमी थी और उदासी मे वो बहुत टूटी लग रही थी,,,,

तरुण ने बोला,” तन्वी,,,”

तन्वी मे आंख उठाकर देखा तो सहसा उसे विश्वास नहीं हुआ,,,पर फिर बोली, ” आप अचानक यहां,,कैसे,,मतलब,,आप तो,,,,,

बाकी के शब्द तन्वी के होठों मे रह गए,,,,,,,,तरुण ने उसको टोकते हुए कहा,,”” सॉरी,,तन्वी,,,,सॉरी, हर बात के लिए,,,,मैं आज खुद को हारने आया हूं क्या तुम मुझे जिता दोगी “

तन्वी की आंखे खुशी से छलछला गयीं और आगे आकर तरुण को गले लगा लिया। 

नीलिमा सिंघल 

इतिश्री

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