संस्कारहीन – उमा वर्मा : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : भैया का फोन आया है, राधा काकी नहीं रही ” यह कब और कैसे हुआ ” मेरे लगातार सवाल से भैया भी हड़बड़ा गये।” अरे कुछ नहीं, बीमार तो थी ही बहुत दिनों से ।एक रात सोयी तो उठी ही नहीं ” मन में मैंने सोचा, ठीक ही हुआ ।जाना तो उनको बहुत पहले ही था लेकिन दुख भोगना था तो कैसे जाती।

दिल दिमाग अतीत में विचरण करने लगा।छोटी सी थी मै ।शायद दस वर्ष की ।तभी सुन्दर काका का ब्याह हो गया था ।वह मेरे पिता जी के चचेरे भाई थे।सुना, काकी बहुत सुन्दर हैं ।दौड़ गई थी मै उनको देखने के लिए ।सच में लाखों में एक थी काकी।नाम भी बहुत सुन्दर ।” राधा ” ।फिर मै किसी न किसी बहाने उनके आसपास बनी रहती ।

” काकी, चोटी बाँध दो ,काकी मेरी गुड़िया बना दो,काकी मेरा सवाल हल कर दो” दिन रात घेर कर बैठ जाती उनको।सुना था कि वे पढ़ीलिखी भी हैं ।कितना, यह मुझे पता ही नहीं चला ।लेकिन उनकी तीक्ष्ण बुद्धि की दाद देनी पड़ेगी ।चुटकी में सारे सवाल हल कर देती ।अम्मा बहुत डांटती ” तुम लोग कभी चैन भी तो लेने दो उसे ” पर हम पर अम्मा की बात का कोई असर नहीं होता ।

काकी बहुत प्यार हम बच्चों को ।राधा काकी हर बात में परफेक्ट थी।घर के काम, सिलाई, रसोई, पढ़ाई सब में ।सब को समय पर स्वादिष्ट नाशता और भोजन समय पर मिल जाता ।गजब का जादू था उनके हाथ में ।उँगलियाँ चाट चाट कर हम खाते और फरमाइश करते ।कभी उबते नहीं देखा उन्हे ।सब कुछ ठीक चलने लगा था ।

देखते देखते साल बीत गया ।एक एक कर चार बेटों की माँ भी बन गई थी वह।परिवार में खुशी का माहौल बन गया था ।काका हरदम अम्मा से बतियाते ” देखिएगा भौजी, चारों बेटे पढ़ाई करके कमा कर लायेंगे,और सौ,सौ रूपये भी देंगे तो चालीस रुपए हो जायेंगे मेरे पास ” बहुत गर्व था उनको अपने बेटे पर ।

पढ़ाई लिखाई समय पर पूरी हो गई ।बेटे ठीक ही थे।दिन रात अपनी अम्मा को घेरे रहते ” अम्मा मेरी, अम्मा मेरी ” काकी खुशी से दोहरी हो जाती ।लेकिन समय पर किसका बस चलता है ।एक दिन काका शहर से बाहर गये हुए थे कुछ काम से ।लौटते में बस खाई  में गिर गई और काका को जब तक निकाला गया, उनके प्राण पखेरू उड़ चुके थे ।काकी रो पीट कर रह गई ।

लोगों ने कहा ” राधा, चारों बेटे तुम्हारे हैं, तुम्हारा खयाल रखेंगे ।किसी मरने वाले के साथ जीवन नहीं चला जाता है ।काकी ने भी संतोष कर लिया ।बेटों की अच्छी नौकरी लग गई ।दो बेटे की शादी एक ही बार हो गई ।दोनों अपनी ही बहन थी ।काकी ने सोचा चलो अच्छा है घर में झगड़ा नहीं होगा ।

दोनों बहन है तो मेल बना रहेगा ।थोड़े दिन तक सबकुछ ठीक चला।फिर घर में झगड़े की शुरुआत हो गई ।बड़ी बहन शान्त थी लेकिन छोटी तेज तर्रार ।सास को लेकर रोज कहा सुनी होती ” मै ही क्यों सेवा करूँ? की भावना घर कर गई ।बड़ी थक जाती तो छोटी को संभालने की जिम्मेदारी आती और हल्ला मचा रहता घर में ।

छोटी को सिर्फ अपनी सखी सहेली और घूमने फिरने से मतलब था।घर काम में जरा भी रूचि नहीं थी।बड़ी बहन ने पति से शिकायत की तो सोच विचार कर चूल्हा अलग हो गया ।राधा काकी बहुत दुखी होती ।लेकिन क्या कर सकती थी ।अब छःमहीने का बंटवारा हो गया अपनी माँ को खिलाने के लिए ।

थोड़े समय के बाद फिर दोनों बेटे का ब्याह कर दिया ।सोचा, बहू अच्छी आयेगी तो जीवन सँवर जायेगा ।शुरुआत अच्छी लगी ।लेकिन फिर किच किच होने लगा ।चारों भाई की बैठक हुई ।तय हुआ कि अम्मा तीन तीन महीने बारी बारी से चारों के पास रहेगी और वहां खायेगी ।जो बेटे कभी अम्मा मेरी, अम्मा मेरी कहते नहीं थकते थे वे अब अम्मा तेरी कहने लगे थे ।

काकी बारी बारी से चारों के पास रहती और दुखी होकर चुपके से आँसू पोंछ लेती।समय के साथ मेरी भी शादी हो गई थी ।मै भी अपनी घर गृहस्थी में मगन हो गई थी ।लेकिन राधा काकी का हाल चाल लेती रहती ।इधर आजकल न जाने कयों उनसे मिलने का बहुत मन करता था ।लेकिन संजोग ही नहीं बैठ रहा था ।

सुना था कि उनकी तबियत खराब होने लगी है ।वह अक्सर बीमार रहती हैं ।मुझे चिंता हुई ” कौन सेवा करता होगा?” मेरे लिए उनहोंने बहुत किया ।पर मेरी भी बहुत लाचारी थी कि नहीं मिल सकती उनसे ।कहाँ बिहार ,कहाँ पूना।वह बिहार में थी और मैं पूना में अपने बेटे के पास ।कालांतर में मेरे पति भी नहीं रहे थे तो मेरी लाचारी थी।

लेकिन एक बार मैंने अपने बेटे से जिक्र किया तो उसने तुरंत मेरे जाने का प्रबंध कर दिया ।काकी के पोते की शादी थी और मुझे भी निमंत्रण मिला था ।अतः अच्छा मौका था काकी से मिलने का ।न जाने कैसी होगी? बहुत बूढ़ी लगती होगी? पता नही शायद बीमार हो गई है? मन में हजारों सवाल लिए मै पहुंच गयी पटना ।

शादी के भीड़ में मै अपनी काकी को ढूंढ रही थी ।शादी में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं थी ।मुझे तो काकी से मिलना था।पूछने पर किसी ने इशारा किया ” वह रही कोने में “।देखा मैली सी साड़ी में, सिमटकर वह बैठी हुई है ।मै जाकर गले लग गई तो उन्होंने अचरज से देखा ।शायद आखं से भी कम दिखाई नहीं दे रहा था ।

मुझे टटोला ” कौन?” ” काकी, मै हूँ, आपकी मन्नू ।वे लिपट कर फूट फूट कर रो रही थी ।सभी लोग अपनी तैयारी में लगे हुए थे ।काकी अपनी सुना रही थी ” बारी बारी से चारों के पास रहती हूँ ।एक दिन भी कम न ज्यादा ।बीमारी में कभी कपड़े गन्दे हो जाते हैं तो चार बात सुनना पड़ता है ।मेरे बर्तन अलग हैं ।

खुद ही खाकर धोना पड़ता है ।एक बार गिर गई तो हाथ टूट गया ।कैसे जिएं बेटा? ” आप इतनी अच्छी थी काकी तो आपके बच्चे इतने संस्कारहीन कैसे हो गये काकी? काकी के आंसू थम ही नहीं रहे थे ।मै भी क्या कर सकती थी ।सभी लोग अपनी तैयारी में, बारात के लिए लगे हुए थे ।” कुछ खाया आपने? मेरे सवाल पर वे और भी जोर से रोने लगी ।”

भूख तो लगती ही है न बेटा ” पर किसी का ध्यान मेरे लिए नहीं है ।मैंने तुरंत उन्हे लाकर खाना खिलाया ।वे खाकर ढेरों आशीर्वाद देती रही ।मेरी गाड़ी का समय हो रहा था ।मुझे आज ही लौटना था।काकी छोड़ ही नहीं रही थी ।बड़ी मुश्किल से हाथ छुड़ाया।और अपनी राह चल पड़ी ।कितनी सुन्दर, कितनी अच्छी काकी कैसी हो गई थी ।

एक क्षण के लिए उन्हें नहीं भूल पाई।और आज उनके जाने की खबर मन को झकझोर कर रख दिया ।सच में ऐसे  संस्कारहीन संतान से उनका न रहना ही बेहतर था।जिन्होने अपनी माँ का बंटवारा कर दिया था ।मै सोच रही थी ” माँ तो कभी अपनी संतान का बंटवारा नहीं करती ” फिर बच्चे ऐसा क्यों करते हैं? कितना घमंड था काका को  अपने बेटों पर ।लेकिन यह संसार है ।यहां भांति भांति के लोग हैं ईश्वर ऐसा संतान किसी को न दे ।”

यह सच्ची कहानी है ।” उमा वर्मा, नोएडा ।स्वरचित, मौलिक और अप्रसारित ।

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