समय रहते – आभा अदीब राज़दान

” क्या बात है नयना तुम्हारी तबियत तो ठीक है ।” नारायण ने पत्नी से पूछा था ।

” मेरी तबियत सही है लेकिन आप ऐसे क्यों पूछ रहे हैं ।” वह बोली ।

” नहीं मैं देख रहा हूँ तुम अपनी माँ से अब बहुत स्नेह से बात करती हो । यही तरीका है अपने माता-पिता से बात करने का । मैं तो हमेशा तुम को यही कहा करता था । अच्छी बात है कि तुमको बात समझ में आ गयी ।” नारायण ने कहा ।

नयना के पिता तीन बरस पहले पंचतत्व में लीन हुए । तब से उसकी माँ यहीं रहती हैं लेकिन नयना अपनी मां से बहुत  लापरवाही से बात किया करती । कितनी बार नारायण ने नयना को समझाया भी था । परन्तु नयना का रवैया सही नहीं था, उसे किसी दिन यह बात शायद स्वयं ही समझ में आ जाए यही सोच कर नारायण भी अब अधिक कुछ नहीं कहते थे ।

” हममम सही कहते थे आप, मेरा रवैया माँ के साथ सही नहीं था । आप जानते हैं न पिछले दिनों मेरी सहेली सरल की माँ गुज़र गयी थीं । वह भी मेरी तरह ही अपनी माँ को कुछ भी कह दिया करती थी । अब जब भी उससे फोन पर बात होती है, तब वह अपनी माँ की ही बातें किया करती है और अपने को कोसती है कि उसका मां के संग व्यवहार सही नहीं था ।” नयना बोली ।

” पछतावा करने से अब होगा क्या ।” नारायण ने कहा ।

” शायद हम अपने मां पापा को फार ग्रांटेड ही लेने लगते हैं । उनके निस्वार्थ प्रेम का ग़लत फायदा उठाते हैं । सरल की पछतावे की उसकी अपराध भावना को समझा मैंने  । मुझे भी लज्जा आई बहुत ग्लानि भी हुई सो मैंने अपने को सुधारा है नारायण । कल मैं सरल की भांति पछताना नहीं चाहती थी ।” नयना ने भावुक होते हुए कहा था ।

” हमें अपने माता-पिता से सदैव आदर से ही बात करनी चाहिए । यदि हम बड़े हो भी जाते हैं तो वह छोटे तो नहीं हो जाते । रहते तो वह सदा हमारे माता-पिता ही है न ।” नारायण ने अब सुकून से कहा था ।

आभा अदीब राज़दान

लखनऊ

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