प्राचीन समय की बात है एक राजा को शादी के 10 साल बाद तक पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हुई इसके लिए राजा ने पंडितों ने और तांत्रिकों ने जो कहा उन्होंने किया। राजा को किसी ने बताया इस पहाड़ी के ऊपर एक तांत्रिक रहता है आखिर बार आप एक बार उनसे भी सलाह ले लीजिए।
राजा अपने मंत्रियों के साथ उस तांत्रिक के पास पहुंचे तांत्रिक को राजा ने अपनी व्यथा बताई तांत्रिक ने कहा हे राजन तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है इसके लिए बस इतना करना है कि जो सामने आप देवी मां का मंदिर देख रहे हैं उसमें आपको एक बच्चे की बलि देनी होगी फिर आपको पुत्र रत्न की प्राप्ति हो जाएगी।
राजा ने अपने राज्य में घोषणा करवा दिया अब तक जिंदा बच्चा बलि देने के लिए देगा उसको बहुत सारा धन और सोने हीरे जवाहरात दिया जाएगा।
उसी राज्य में एक गरीब परिवार रहता था उसके 8 पुत्र थे. सबसे बड़ा पुत्र कोई काम नहीं करता था दिन भर ईश्वर के भक्ति में लीन रहता था. परिवार ने सोचा यह काम धाम तो कुछ करता नहीं है इसी को राजा को दे दिया जाए कम से कम बाकी परिवार की जिंदगी तो सही तरह से चल जाएगा।
और ऐसा ही किया गया परिवार अगले दिन ही उस बच्चे को लेकर राजा के पास पहुंच गए. राजा ने बच्चा से पूछा क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारी बलि दे दी जाएगी उसके बाद तुम जिंदा नहीं रहोगे। बच्चा भी इस बात के लिए मना नहीं किया उसने कहा मां-बाप ने ही मुझे जन्म दिया है वह मेरे लिए जैसा ठीक सोचेंगे वही करेंगे।
थोड़ी देर बाद बच्चे को नए कपड़े पहनाकर तांत्रिक के पास पहाड़ी के ऊपर ले जाया गया.
बलि देने से पहले तांत्रिक ने उस बच्चे से पूछा अगर तुम्हारी कोई आखिरी इच्छा है तो वह हमें बता दो.
बच्चे ने कहा मुझे चार बोरी रेत चाहिए, राजा के सैनिक कुछ ही देर में चार बोरी रेत लाकर बच्चे को दे दिया। कुछ देर बाद बच्चे नहीं चारो बोरी रेत को बाहर निकालकर 4 रेत का टीला बनाया। एक एक करके बच्चे ने तीन टीले को तोड़ दिया और चौथे टीले के सामने हाथ जोड़ कर बैठ गया. उसके बाद उसने तांत्रिक से कहा अब आप लोग मेरी बलि दे सकते हैं.
बच्चे को यह सब करते हुए थे तांत्रिक डर गया उसने बच्चे से पूछा सबसे पहले तुम यह बताओ यह तुमने क्या किया। तीन रेत के टीले को तुमने बना के तोड़ दिया और चौथे को नहीं तोड़ा ऐसा क्यों ?
बच्चे ने जवाब दिया कि पहला रेत का टीला मेरे माता पिता के नाम का था वह मेरे रक्षक हैं उन्होंने मेरा जन्म दिया है लेकिन उन्होंने इस कर्तव्य पूर्ण नहीं निभाया पैसे के लालच में उन्होंने मुझे बिक्री कर दिया।
दूसरा रेत का टीला मेरे रिश्तेदारों और दोस्त मित्रों का है उनका भी कर्तव्य यह बनता है वह मेरे माता पिता को समझाते अपने पुत्र को बलि के लिए पैसे की लालच में ना भेजें। लेकिन उन्होंने भी अपने धर्म नहीं निभाया।
तीसरा रेत का टीला इस राज्य के राजा का है राजा का कर्त्तव्य होता है इस राज्य में जो भी अन्याय हो उससे अपने प्रजा की रक्षा करना लेकिन राजा के सामने ही एक बच्चे की हत्या की जा रही है यह एक हत्या ही है चाहे आप उसे अली का नाम क्यों न दे दे लेकिन राजा ने भी अपना कर्तव्य नहीं निभाया इसलिए मैंने टीला तोड़ दिया।
चौथा टीला मेरे गुरु और मेरे ईश्वर का है जिस पर ही अब मुझे विश्वास है इसीलिए मैंने यह नहीं थोड़ा और इनके सामने में बैठ गया उनकी इच्छा होगी वह करेंगे।
बच्चे की इस तरह की तकनीक बातों को सुनकर राजा का दिल पिघल गया और उसने उसी समय फैसला लिया बच्चे की बलि नहीं दी जाएगी और उस बच्चे को राजा ने गोद ले लिया और अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया।
यह कहानी हमें यही सिखाती है कि अगर आप बुरे समय में भी संयम और विश्वास से काम ले तो आपका कभी भी बुरा नहीं हो सकता है और अपने इश्वर पर हमेशा विश्वास रखें क्योंकि ईश्वर आपको कभी भी बुरा नहीं होने देगा।