प्रायश्चित – मनीषा देबनाथ

“कास बुरे का साथ ना दे कर मैं अच्छाई के साथ खड़ी रहती तो आज मैं इतनी अकेली ना होती… कास मैने अपने परिवार का साथ दिया होता!”

आज मन में चिंतन मनन करती हुई रागिनी बहुत अकेली थी। क्यों की रागिनी ने अपने परिवार का साथ ना दे कर अपनी मायके की भाभी वंदना का साथ दिया था। लेकिन तब वो ये नहीं समझ पाई की जो आजतक किसी की सगी नहीं हुई वो भला अपनी ननंद की सगी कैसे हो सकती थी। रागिनी को ये समझने में बहुत देरी हो चुकी थी। और आज रागिनी के पास ना अपना परिवार था और ना ही पैसे और घर। जिसके लिए वो रोज़ आए दिन अपने परिवार को परेशान करती रही।

दरअसल रागिनी की शादी एक सुखी परिवार में हुई थी। जहां रागिनी की सास एक मां से कम नहीं थी। और पिता समान ससुर थे जो बहु और बेटी का फर्क ही नहीं जानते थे। रागिनी के मायके में उसके माता पिता का देहांत बहुत पहले ही हो चुका था। जब वे अपने बेटे की और बेटी की शादी करवा कर चार धाम की यात्रा पर जा रहे थे। तो लौटते वक्त दुर्घटना में उनकी मौत हो गई। भाभी वंदना ने रागिनी के मायके में अपना घर परिवार तो संभाल लिया था। पर वंदना भाभी की नज़र उसकी ननंद के सुखी, अमीर ससुराल और परिवार पर पड़ी। उस दिन रागिनी अपनी तीन साल की बेटी, अक्षा को लेकर रक्षाबंधन में अपने भाई को राखी बांधने आई थी। वैसे तो जब मां और पिताजी थे तब रागिनी आते जाते रहती थी, लेकिन उनके जाने के बाद रागिनी ने मायका कम कर दिया। बस ऐसे ही कुछ खास मौके पर आ जाया करती। 

“अरे… रागिनी हम तो तुम्हारा ही इंतजार कर रहे थे हमें तो लगा तुम अपने मायके का रास्ता ही भूल गई हो, माना की मां पिताजी अब नहीं रहे पर भैया भाभी को भूल जाओगी क्या!”




“नहीं भाभी ऐसी बात नहीं है… वो तो बस अक्षा को स्कूल में एडमिशन किया है तो उसकी जिम्मेदारी बढ़ गई है!”

“अरे चलो भाई बहुत जोर की भूख लगी है… रागिनी जल्दी से रखी बांधो तो पेट में कुछ दाना पानी भी जाए!”

रागिनी अपने भाई को राखी बांध लेती है। और भाई अपनी बहन को तौफे में एक सुंदर सोने के पायल देता है…

“अरे भाई ये पायल… आपको पता था ये पायल तो मुझे बहुत पसंद थे… पर भाई आपने कहां से? और क्यों! मैं इतना महंगा तोहफ़ा आपसे नहीं ले सकती भाई!”

“इन्होंने मुझे भी नहीं बताया… अरे अब तो रागिनी का अमीर ससुराल है, उसके पास तो ऐसे कई सारे महंगे गहने होंगे! आप कोई चांदी के ही पायल दे देते!”

“हां भाभी देखिए ना… मेरा भी तो भी कहना है!”

“अरे चांदी के हो या सोने के पायल बात है पसंद और ना पसंद की… और ये भाई का प्यार ही रख ले!”

रागिनी को वो पायल उसकी शादी के पहले से ही उसको बहुत पसंद थे, और उसकी इच्छा थी की वो शादी में वही पायल पहनें लेकिन जो मां बाप मुश्किल से अपनी बेटी की शादी करवा पाए तो भला अपनी बेटी को सोने के पायल और गहने कहां से दे पाते! और ना ही रागिनी के ससुराल वालों ने ऐसी कोई मांग की थी उन्हें तो बस बहु एक कपड़े में ही चाहिए थी। भाभी वंदना की नज़र उस तौफे के पायल पर पड़ी, और वंदना के मन में इतना ज़हर फैल गया की वो जैसे ठान चुकी थी की अब तो वो ना ही सिर्फ ननद को दिए हुए वो सोने के पायल छीन लेंगी बल्कि रागिनी के ससुराल वालों ने उसके नाम किए हुए जमीन जायदाद भी छीन लेगी। रागिनी के अमीर ससुराल पर भाभी की नज़र तो पहले से ही थी लेकिन अब उसका इरादा इस बार और पक्का हो चुका था।

जब रागिनी अपने ससुराल लौट गई तो उसके कुछ ही समय बाद वंदना रागिनी के ससुराल गई।




“बापरे तेरी देवरानी तो बहुत फास्ट है रागिनी… देखना कहीं तुझे ही पीछे ना छोड़ दे! देखा नहीं कैसे सास की दुलारी बनी फिरती है और तारीफ़ के फूल बटोर रही है… अब तब तक सब ठीक था लेकिन अब लगता है जैसे इस घर में तुम्हारा राज खतम!”

“नही भाभी गायत्री दिल की बहुत अच्छी है… वो तो बस थोड़ी चूल बुल सी है!” 

“हां हां… मुझे तो बस तुम्हारी फिकर है! अच्छा वो क्या है की तुम तो सब जानती हो की तुम्हारे भैया की नौकरी आज है कल नही इस लिए सोचा एक नया बिज़नेस सुरू कर लेते है तो अगर तेरे ससुराल वालों से कुछ दो तीन लाख की मदद मिल जाती तो अच्छा रहता! फिर लौटा देंगे हम थोड़े थोड़े कर…”

“पर भाभी… इतनी बड़ी रकम! मैं ऐसे कैसे… मुझे एक बार उनसे बात करनी होगी!”

“अच्छा फिर तो रहने ही दे… तेरे ससुराल वालों को हम पर भरोसा कहां! मुझे लगा तुम हमें समझोगी लेकिन खैर!”

“अरे भाभी आप बुरा क्यों मान रही है… एक मिनिट रुकिए!”

ससुराल की चाबी बड़ी बहु रागिनी के पास थी। इस लिए वो झट से तिजोरी में से दो लाख निकाल कर अपने भाभी के हाथ थमा देती है। इतने पैसे देख वंदना की अनेक चौड़ी हो जाती है। जैसे ही भाभी के हाथ पैसे आते है, वह भावुक हो कर अपनी ननंद पर प्यार बरसती है। बाहर से रागिनी की देवरानी ये सब होते हुए देख लेती है। और वंदना के लौट जाने के बाद गायत्री रागिनी से कहती है,

“दीदी आपने अपनी भाभी को इतने सारे पैसे दे दिए एक बार सोचा तक नहीं सच में आप बहुत अच्छी है! मैने आजतक ननद भाभी को लड़ते हुए देखा है पर आप दोनों में बहुत प्यार है!” 

थोड़े दिन बाद भाभी वंदना फिर आई और फिर से अपनी लाचारी का बहाना कर रागिनी से पैसे उधार लिए। और ऐसे कई बार होता गया और हर बार गायत्री ये सब देखती लेकिन हर बार वो चुप रहती, और किसी से कुछ ना कहती। लेकिन एक दिन फिर जब सास ने तिजोरी की चाबी मांगी तो सास ने देखा की तिजोरी से कुछ पैसे कम दिख रहे थे। तब घर में रागिनी नहीं थी इस लिए सास ने बाकी घर वालों से पूछा की क्या किसीने यहां से पैसे लिए है!

जब गायत्री से पूछा गया तो उस से चुप नहीं रहा गया गायत्री ने बताया की कैसे उसकी जेठानी की भाभी आ कर जेठानी रागिनी से पैसे मांग मांग कर ले जाया करती है। और उतने में रागिनी वहां आ जाती है, और रागिनी अपनी देवरानी पर ही भड़क जाती है। क्यों की रागिनी की मन में गायत्री के खिलाफ ज़हर तो भाभी ने पहले ही भर दिया था अब जो वो बाहर उभर साफ़ दिख रहा था। सारे घरवालों के सामने रागिनी गायत्री को बहुत कुछ सुना देती है। और कहती है,

“भाभी सही कहती थी…”

वंदना ने धीरे धीरे कर रागिनी को अपने ससुराल वालों के खिलाफ कर उसके जरिए जमीन और ज्यादा भी हड़पने की कोशिश की लेकिन वो कमियाब नहीं हो पाई। और वंदना के बहकावे में आ कर रागिनी ने अपनी बेटी तक का खयाल नहीं किया। और अब खेल का अंत था की आखिर एक दिन रागिनी को उसके पति मौलिक ने खुद उसका हाथ पकड़ कर घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया। और बेटी अक्षा तो खुद अपनी मां के साथ नही जाना चाहती थी। आखिर में रागिनी कहा जाती और अब वो अपने मायके यानी अपने भाई भाभी के घर बेहाल अवस्था में लौट आती ही। लेकिन तब उसकी वंदना भाभी ने गिरगिट की तरह अपना रंग बदला और रागिनी से कहा!”




“ये देखो आ गई अब मुंह काला कर के… जिसके पति ने खुद उसे धक्के मार कर घर से बाहर कर दिया हो उसे हम भला अपने घर कैस रखे! वैसे भी घर में मुझे शांति का माहौल चाहिए ऐसे में मेरे होने वाले बच्चे पर क्या असर पड़ेगा… समाज में हमारी नाक नकटवाना चाहती हो क्या! एक छोड़ी हुई औरत को हम अपने घर नहीं रख सकते!” 

भाभी वंदना दरवाजा मुंह पर बंध कर अंदर चली जाती है। और बाहर खड़ी रागिनी, अपनी भाभी के ऐसे शब्द सुन अब उसके होश ठिकाने आ जाते है। वह बहुत पछताती है रोती बिलकती है दया की भीख मांगती है पर कोई उसकी बात पर रत्तीभर का भरोसा अब कैसे करता। वंदना ने तो अपने पति को ऐसे बांध लिया था की वो कुछ बोल ही नहीं पाता था शायद मजबूर था।

रागिनी अब बेसहारा हो कर दर दर भटकती एक मंदिर के सीढ़ियों पर बैठ खुद के मन में बहुत पछता रही थी। वह प्रायश्चित करना चाह रही थी। क्यों की देर ही सही उसे अपनी गलती का एहसास जरूर था। लेकिन कहते है ना कर्म का फ़ल किसी को नहीं छोड़ता, ऐसे ही कई सालों बाद जब वंदना मां बन ने वाली थी… तभी एक दिन अचानक उसका पैर सीढ़ियों से फिसल कर गिर जाती है और उसकी कोख सुनी हो जाती है। जिसके बाद वो कभी मां नहीं बन पाती। आखिर में उसको भी अपने किए की सजा मिल चुकी थी। लेकिन अपनी की हुई गलतियों का पछतावा उसे आज भी नहीं था। क्यों की कहते है ना स्वभाव इंसान का अंत तक नहीं बदलता। 

इस लिए किसी के बहकावे में आ कर कोई फैसला लेने से पहले उसकी बातों को खुद के मन में थोड़ा टटोल लीजिए… उचित जनकारियां बटोर लीजिए और फिर नतीजे पर पहुंचे। क्यों की कई बार ऐसे बहकावे के फैसले अंत में आपको पछतावा और प्रायश्चित के सिवाय कुछ और नहीं देता।  

#पछतावा

मनीषा देबनाथ 🖋️

(स्वरचित) 

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