प्रभा…….. तुमने मुझे धोखा क्यों दिया – किरन विश्वकर्मा

एक स्त्री तब अपने कष्ट को भुला देती है जब उसके परिवार का कोई सदस्य बीमार हो और परेशान हो उम्र पैंसठ, घुटनों में आर्थराइटिस कहां तक वह भागदौड़ कर सकती थी किंतु बिस्तर पर पड़े अपने पति जनक जी की देखभाल तो करनी ही थी। बेटे से कितनी मदद लेती वह प्राइवेट नौकरी करता था और जब भी छुट्टी की जरूरत होती तो छुट्टी मांगते ही उसके मालिक का मुंह बन जाता था। बहू घर को संभालती थी फिर बच्चों की जिम्मेदारी भी उसके ऊपर थी। अब जो कुछ करना था उसे ही करना था और उसके लिए पहले खुद को स्वस्थ करना होगा यह सोचते हुए प्रभा जी ने जनक जी को खाना खिलाया और दवाई देकर वह डॉक्टर से मिलने के लिए निकल गई। डॉक्टर ने जांच के बाद बताया की आर्थराइटिस की पहली स्टेज है आप दवाइयां खाइए और एक्सरसाइज करिए यह सुनकर वह घर आ गई और डॉक्टर के बताये अनुसार दवाइयां लेने लगी और सुबह शाम एक्सरसाइज करने लगी।

जनक जी का शुगर लेवल बढ़ता ही जा रहा था उसका असर उनके पैरों पर दिखने लगा था पैरों में लालिमा बढ़ती ही जा रही थी। पैरों के पास घाव भी हो गया था। यह देख प्रभा जी ने जनक जी को हॉस्पिटल में एडमिट करा दिया काफी इलाज हुआ लेकिन पैरों का घाव बढ़ता ही जा रहा था। एक तो उम्र ऊपर से बीमारी पैरों में घाव की वजह से असहनीय दर्द जनक जी का चिड़चिड़ापन बहुत बढ़ गया था वह अपना गुस्सा प्रभा जी पर निकालते परंतु प्रभा जी जुझारू और सुलझे हुए विचारों वाली महिला थी उन्हें पता था की जनक जी को भावनात्मक संबल देना बहुत जरूरी है वह अपनी बीमारी को नजर अंदाज कर जनक जी की देखभाल में लगी रहती धीरे-धीरे तीन महीने हो गए थे। परंतु पैर का घाव बढ़ता ही जा रहा था अंत में डॉक्टर्स ने उनका पैर काटने का फैसला लिया तो यह सुनकर जनक जी बहुत ही घबरा गए परंतु प्रभा जी ने जी जनक जी को बहुत समझाया- बुझाया और ऑपरेशन के लिए तैयार किया ऑपरेशन के बाद जनक जी धीरे- धीरे स्वस्थ होने लगे तो प्रभा जी उन्हें घर ले आयी। जनक जी के लिए यह सहना आसान नहीं था। वह तन और मन दोनों से टूट गए थे। जब भी कटे हुए पैर को देखते तो उनका कलेजा मुहॅ को आ जाता और आँखों से आँसू बहने लगते।



 

आप क्यों परेशान हो रहे हैं मैं हूं ना……आपका दूसरा पैर मैं आपका सहारा बनूंगी यह कहकर जनक जी को सांत्वना देती। अब जनक जी का दूसरा नकली पैर बन गया था और एक्सरसाइज कराने वाला भी आता था जनक जी ने नकली पैर के साथ चलना-फिरना शुरू कर दिया था। धीरे-धीरे जिंदगी की गाड़ी पटरी पर आने लगी थी।

 

दो वर्ष पश्चात एक दिन प्रभा जी को अचानक से उल्टी होने लगी। सारी जांच हुई तो पता चला की गाल ब्लैडर में पथरी थी और पता ना चलने की वजह से वह कैंसर में बदल गई थी। प्रभा जी कैंसर की लास्ट स्टेज में थी अब वह कुछ ही दिनों की मेहमान थी। यह सुनकर जनक जी और घरवाले सकते में आ गए। एक तो पिता की बीमारी और ऊपर से मां के लिए यह खबर। बेटे के लिए यह दुःख सहना असहनीय हो गया था। दवाइयाँ शुरू हो गयी थी, कीमो थेरेपी भी शुरू हो गई थी। एक दिन प्रभा जी सोई तो सुबह उठी ही नहीं। जनक जी इस दुख से दोहरे हुए जा रहे थे।

 

प्रभा तुमने धोखा दिया……मुझे!!! तुम तो मेरा सहारा बन रही थी और मुझे बीच मझधार में ही छोड़कर चली गई। वह बार बार यही कहकर रोए जा रहे थे कि…….तुमने मुझे धोखा क्यों दिया…..मुझे बीच मझधार में छोड़कर क्यों  चली गई…..अब मेरा सहारा कौन बनेगा…..मै तो बेसहारा हो गया। जनक जी बहुत रो रहे थे। उनका साये की तरह बना रहने वाला सहारा उनका दाहिना हाथ उनसे बहुत दूर हमेशा- हमेशा के लिए चला गया था। बेटा भी मां को बहुत याद कर रहा था क्योंकि प्रभा जी ने घर की सारी जिम्मेदारी संभाल रखी थी….उसे कभी जिम्मेदारियों का अहसास ही नही होने दिया। बहू भी बहुत रो रही थी….हमेशा उनके सर के ऊपर स्नेह रूपी आँचल रखने वाली अब जीवित नही थी। बहू के लिये प्रभा जी सास कम मां ज्यादा थी।

 

पर नियति के आगे किसका बस चला है। बस जनक जी और प्रभा जी का इतने समय का साथ था। प्रभा जी सबको छोड़कर अनंत यात्रा पर निकल गई थी।

 

किरन विश्वकर्मा

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