पिता का दुख – गीता वाधवानी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi :

हमारी पुष्पा आंटी जी पंजाबी और हमारे अंकल जी बंगाली। चाहे लव मैरिज समझो या अरेंज,क्या फर्क पड़ता है। दोनों खुश थे यही काफी है। समय बिता रहा उनके यहां पहले एक पुत्र ने जन्म लिया और फिर दूसरे पुत्र ने। उन अंकल आंटी की कहानी हमें मम्मी डैडी सुनते हैं क्योंकि हम तो खुद ही उनके बच्चों के बराबर थे। 

हमें तो सिर्फ यही पता था कि हमारे डैडी जी सरकारी ऑफिस में काम करते थे और बंगाली अंकल भी वहीं पर काम करते थे। डैडी जी क्लर्क थे और बंगाली अंकल माली का काम करते थे। उन्हें गुलाब के बेहद सुंदर फूल उगाने का बहुत गहरा अनुभव था। उन्हें इसका अवार्ड भी मिल चुका था। 

हमारे घर आसपास होने के कारण कभी-कभी वह हमारे घर आ जाते थे और कभी-कभी आंटी जी भी आती थी। एक दिन आंटी जी ने बातों बातों में बताया कि मेरे बड़े बेटे को बचपन में मेरी ही नजर लग गई थी। हम सुनकर बहुत हैरान हुए कि एक मां की नजर अपने ही बेटे को कैसे लग सकती है। उनके बड़े बेटे का एक पैर खराब था और उसे चलने में बहुत परेशानी होती थी। 

आंटी जी ने बताया कि-“बचपन में मेरा बेटा शिखर बहुत ही ज्यादा सुंदर था, तो मैं उसे कभी-कभी लड़कियों की तरह फ्रॉक भी पहना देती थी और पैरों में पायल भी। एक बार वह इसी तरह पायल पहनकर ठुमक ठुमक कर चल रहा था तो मेरे मुंह से निकला, (पड़ोसन से) नी, वेख नी बलबीरे, मेरा पुत्तर किना सोंडां लगदा है किंवे मस्ती नाल ठुमक ठुमक कर चलदा है। इतने में ही वह आंगन में बनी सीढ़ी पर चढ़ गया और दो-तीन सीढ़ी चढ़ने के बाद बहुत ही जोर से नीचे आ गिरा। उसके पैर में बहुत चोट लगी। उसका पर मुड़ा हुआ साफ नजर आ रहा था। हम उसे डॉक्टर के पास ले गए डॉक्टर ने पैर में प्लास्टर चढ़ाया, लेकिन प्लास्टर उतारने के बाद भी हड्डी सीधी नहीं हुई और पर हमेशा के लिए मुड़ गया। इसीलिए मैंनू लगदा है कि मेरी ही बुरी नजर लग गई मेरे बच्चे नू।” 

आंटी ने बताया कि तब उसे देखकर अंकल जी बहुत रोए थे। अब तो दोनों बच्चे बड़े हो चुके हैं और बड़े बेटे की नौकरी भी लग चुकी थी।   

मैं और मेरी दो सहेलियां लोकल बस से स्कूल जाते थे और वहां स्टैंड पर उतरकर फिर पैदल स्कूल तक पहुंचते थे। ऐसे ही एक दिन जब हम बस से उतरे, तब वहां स्टैंड पर हमें बंगाली अंकल जी मिल गए। मैंने उन्हें नमस्ते की और अपनी सहेलियों को बताया कि यह अंकल जी हमारे घर के पास रहते हैं। अंकल जी बहुत खुश हुए और सब को आशीर्वाद देकर आगे निकल गए। 

अगले दिन शाम को वह घर पर आए और डैडी के साथ बातें करने लगे। बातें करते-करते उनकी आंखों में आंसू आ गए। मैं उन्हें और डैडी को जब चाय देने गई तब मैं यह देखकर हैरान रह गई कि अंकल जी रो रहे थे और डैडी उन्हें सांत्वना दे रहे थे। 

उनके जाने के बाद डैडी जी ने बताया कि”अंकल जी कह रहे थे कि बस से उतरकर आज आपकी बिटिया ने मुझे नमस्ते की और अपनी सहेलियों से भी मिलवाया, मुझे बहुत ही अच्छा लगा और मुझे सम्मान महसूस हुआ। बिटिया अपनी सहेलियों से मुझे मिलवाते समय कोई शर्म महसूस नहीं कर रही थी, जबकि मेरा बेटा शिखर मुझे किसी से भी मिलवाने में खुद को नीचा महसूस करता है। वह किसी से भी मुझे मिलवाना नहीं चाहता क्योंकि उसे मेरे काम से शर्मिंदगी है। उसे किसी से भी यह कहने में अच्छा नहीं लगता कि मैं माली का काम करता हूं। वह मेरे काम के कारण बहुत शर्मिंदा महसूस करता है। ऐसा कहकर अंकल की आंखों में आंसू आ गए।” 

डैडी उसे समझा रहे थे कि-“आप ऐसा फील मत करो, अभी नासमझ है। धीरे-धीरे समझ जाएगा कि कोई भी काम छोटा नहीं होता।” 

फिर थोड़ी देर बाद अंकल जी उदास से अपने घर चले गए। 

स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली

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