मृगतृष्णा – बालेश्वर गुप्ता : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi :  अरे मंजू तुम, इतने दिन बाद  दिखाई दी, कहाँ खो गयी थी?

        सरोज तुम, इस क्रूज पर, लगता है छुट्टियों का मजे लूटने  आयी हो. 

       हाँ तुम सही कह रही हो. बहुत दिन से घर से निकलना ही नहीं हो पा रहा था. आओ  तुम्हारा परिचय कराऊँ ये मेरे पति देव अवनीश मेरा बेटा विक्की  और ये पोता सनी और पोती आरुषि, बहू लीना. सब पूरे चार दिन को आये हैं, जीवन मे पहले किसी क्रूज़ पर जाना भी नहीं हुआ था, हमारे ज़माने में  कहाँ क्रूज वुज हुआ करते थे,अब भी

 बेटे ने जिद की तो हमे आना ही पड़ा. 

    अरे तुम भी तो अपने पति से परिचय कराओ ना. 

     मैं अकेली ही आयी हूँ, अपनी बात तुमसे बाद मे शेयर करुँगी.

      मंजू और सरोज एक साथ ही बचपन से सहपाठी रहे,स्कूल में भी तो कॉलेज में भी।दोनो की खूब पटती भी थी,एक दूसरे से कोई बात कभी छिपाते भी नही थे।पहले मंजू की शादी एक अच्छे पद पर तैनात गौत्तम से हो गयी,तो कुछ ही दिनों बाद सरोज की शादी व्यापारी अवनीश से हो गयी।उस समय मोबाइल तो दूर टेलीफोन की सुविधा भी कम थी,टेलीफोन एक्सचेंज पर कॉल बुक करानी पड़ती थी,तब भी घंटो में कॉल मिल पाती थी।

शादी के बाद कुछ दिन तो मंजू और सरोज में पत्र व्यवहार चला फिर गृहस्थी चल जाने पर सम्पर्क समाप्त सा हो गया।सरोज को पुत्र प्राप्ति हुई,सास ससुर साथ रहते ही थे,सो बेटे के नवजात होने के कारण उसका करना साथ ही सास ससुर की सेवा करना,पति का समस्त कार्य करना ,एक फिरकी की तरह सरोज 24 घंटे लगी रहती।

     उधर मंजू के साथ भी उसके सास ससुर रहते थे, उसके एक बेटी का जन्म हुआ था। मंजू को घर का कोई भी काम करने की आदत थी ही नही और न ही अधिकतर कार्य उससे आता था। सो उसने स्पष्ट कर दिया था सब अपना काम स्वयं करेंगे।बहू की चेतावनी पर बूढ़े सास ससुर तो सहम कर अपना काम जितना और जैसा हो पाता करना प्रारंभ कर दिया,उन्होंने हल्के स्वर में कहा भी बेटा इस उम्र में कभी कभी उठने को मन भी नही करता और कुछ कार्य तो जैसे दूध लेकर आना,सब्जी लाना तो हमे दुष्कर लगता है,

पर मंजू ने साफ कह दिया कि चलने फिरने से तो तन में स्फूर्ति बनी रहती है।इससे आगे  वो क्या बोलते।एक दो बार गौत्तम ने कहा भी कि उसके माँ बाप बूढ़े हो गये हैं, यदि घर मे मंजू काम अधिक लगे तो एक मैड बढ़ा लेना,हम एफोर्ड कर सकते हैं, लेकिन मंजू टाल जाती,उसे लगता कि ये सास ससुर बहाना बनाते हैं।गौत्तम को वस्तुस्थिती का पता भी नही चल पाता। फिरभी उसे बेटी का और पति का तो करना ही पड़ता,इससे उसकी खीझ बढ़ती जा रही थी।उसे लगता अभी से यह बेटी का बंधन आ गया ये ही तो दिन एन्जॉय करने के थे और मैं फंस गई इस गृहस्थी के चक्कर में।अब उसका फ्रस्ट्रेशन गौत्तम पर निकलने लगा।उसे लगता बस यही जिम्मेदार है उसका जीवन नीरस करने में।

      मुम्बई गोआ के बीच चलने वाले कॉर्डेलिया क्रूज में तीन रात रहने और एन्जॉय करने का मजा ही कुछ और है, सेवन स्टार की सुविधाएं तथा एक्टिविटीज हर किसी का मन मोह लेती है।विककी ने कहा था कि अबकी बार इस क्रूज पर मम्मी पापा के साथ चार दिन की छुट्टियां बिताने चलेंगे। सरोज ने तो मना भी किया पर विककी माना ही नही।

शाम को डेक 10 पर जैसे ही सरोज आयी तो उसे दूर अकेली बैठी मंजू दिखायी दे गयी।वह अकेली ही उसकी ओर चली गयी।असल मे उसे उत्सुकता भी थी कि मंजू अपने पति के साथ क्यों नही आयी, न उसकी बेटी साथ है, जरूर कोई बड़ी बात है।पास पहुचने पर सरोज और मंजू एक दूसरे के गले मिले।दोनो ने वही मॉकटेल का आर्डर दे दिया।सरोज ने ही बात आगे बढ़ाई।मंजू  क्या बात है गौतम साथ नही आये?

असल मे सरोज बरसो पहले ही मैंने गौत्तम को छोड़ दिया था।मैं घुटन भरी जिंदगी नही जी सकती थी।उसके मां बाप का भी करो,फिर एक बच्ची पैदा हो गयी उसका करो यानि बच्चे परिवार में मुझे लग रहा था जैसे मैं अपने को भूलती जा रही हूं। गौत्तम भी मेरी मनस्थिति को समझ ही नही पा रहा था।आखिर मैंने निर्णय लिया और गौत्तम से  तलाक ले लिया बेटी वो चाहता था सो मैंने 50 लाख रुपये लेकर बेटी भी उसे सौप दी।बस सब झंझट एक झटके में खत्म।अब मैं आजाद हूँ।मस्त रहती हूं।देखो यहां भी इस क्रूज पर मस्ती के लिये ही आयी हूँ।

        सरोज उसे एकटक देखती रह गयी।फिर बोली मंजू एक बात सच बताना कि क्या बिल्कुल अकेले रह कर तुम मस्त रह लेती हो?क्या गौत्तम की,अपनी बेटी की बिल्कुल याद नही आती?इन सवालों से मुँह चुराती मंजू बोली छोड़ो सरोज तुम बताओ तुम्हारी कैसे कट रही है?सरोज ने फिर कहा मंजू बताओ ना रात को अकेले जब अपने कमरे में सोने जाती हो तो क्या वास्तव में सो पाती हो?क्या नही लगता कुछ छोड़ आयी हो?क्या एक बार भी बेटी की किलकारी सुनाई नही दी तुम्हे गौतम तुम्हे फिर कभी याद नही आये?क्या वे सब इतने बुरे निकले जिन्हें तुमने अपनी आजादी के लिये कुर्बान करना ही बेहतर समझा?

        इतने प्रश्न मंजू को अंदर तक झंझोड़ गये वो सरोज का हाथ पकड़ कर फफक फफक कर रो पड़ी।सरोज ने उसे रोने दिया वो उसके सिर पर हाथ फिराती रही,जब मंजू शांत हुई तो आंसू पोछते बोली छोड़ो सरोज अब क्या हो सकता है?

      अच्छा मंजू एक बात और बता दो जब बरसो पहले तुमने गौत्तम से तलाक ले ही लिया था तो फिर तुमने और गौत्तम ने क्या दूसरी शादी की?मंजू बोली मैं तो दूसरी शादी की सोच ही नही सकती थी,दूसरी शादी का मतलब तो फिर उसी झंझट में पड़ना था जिसकी वजह से गौत्तम से दूर हो गयी।हाँ गौत्तम ने भी दूसरी शादी क्यो नही की मुझे नही पता,चाहता तो कर सकता था।

       ओह, मंजू तुम समझ ही नही पायी कि गौतम ने शादी क्यों नही की क्यों कि उसे तुमसे और अपनी बेटी से बेइंतिहा प्यार था,तभी तो जिन कर्तव्यों को बेड़ी समझ तुम उसे छोड़ आयी थी,उसने उन बेड़ियों को खुद पहन लिया।मंजू तुम इतना भी समझ ना पायी हम महिलाओं के जीवन की पूर्णता ही परिवार को संभालने में है,पगली ये झंझट नही प्यार के शूल हैं जो कोमल होते हैं।अपनी इस मृगतृष्णा से तुझे क्या मिला भला?बंधन की पीड़ा तो जानी तूने पर बंधन के सुख को तू समझ ना सकी मंजू,जा अब भी लौट जा अपने गौत्तम के पास, वह निश्चित ही तेरी इंतजार में होगा।

      अगले दिन सब क्रूज से अपना अपना सामान लेकर उतर

 रहे थे,तभी मंजू भागती सी आयी बोली जानती हो सरोज मैं कहाँ जा रही हूं?अपने गौत्तम के पास—-!

    बालेश्वर गुप्ता, पुणे

मौलिक,अप्रकाशित

(कॉर्डेलिया क्रूज पर ही लिखी गयी कहानी।

#बच्चों और परिवार के बीच वह खुद को ही भूल गयी पर

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