पैसा बचाके रख अमित…. – मीनाक्षी सिंह

क्या पापा ,कितनी बार कहा हैँ कि इस  ये घिसे  पीटे कूलर को सही मत किया करो ,कितना पुराना हो गया हैँ ,हर गर्मी में लेकर बैठ ज़ाते हैँ आप ….इतनी कड़ी धूप में मोटर सही करते हैँ …साफ करते हैँ …घास लगाते हैँ….एसी लगवा देता हूँ आपके कमरे में भी …ज़माने चले गए कूलर के…बेटा अमित बोला…

तू ज़ा  यहां से …अपना काम देख ,मुझे अपना काम करने दे…अमित के पापा विनोद अपना चस्मा संभालते हुए बोले…

बाप के आगे बेटे की क्या मजाल..हर बार अमित को ही हार मानकर जाना पड़ता….कभी विनोद जी बगीचे में धूप में

गुड़ाई,निराई  पानी लगाते रहते तो भी अमित का मन दुखी होता कि  बेटा इतने बड़े ओहदे पर पहुँच गया हैँ…फिर भी पापा बुढ़ापे में बिना बात के इतनी मेहनत करते हैँ…एक दिन तो हद हो गयी जब स्कूल वैन वाले ने बच्चों की वैन के  अचानक से 500 रूपये बढ़ा  दिये…विनोद जी ने एलान कर दिया कि किट्टू ,महक (पोता ,पोती ) को स्कूल छोड़ने ,ले जाने मैं  जाया करूँगा ….

इस बात पर अमित गुस्से में बोला – बगल में नहीं हैँ बच्चों का स्कूल पापा ..2 किलोमीटर हैँ ..आप अकेले चलाते हैँ स्कूटर तब तो कांपते हैँ…बच्चों को लेकर कैसे ज़ायेंगे…अगर नहीं लगवानी बस तो ड्राईवर छोड़ आया करेगा…आप क्यूँ परेशान हो रहे हैँ इतने…घर में कोई पैसों का अकाल नहीं पड़ा हैँ…आपसे ज्यादा कमा लेता हूँ इतनी सी उमर में…आपका ज़माना नहीं हैँ जब एक एक खर्चे के लिये महीनों पहले से बचत करनी पड़ती थी ….

क्या बोला तू मुझसे ज्यादा कमा लेता हैँ…तुझे कमाने लायक बनाया किसने ..पता  है तुझे जब तेरा नंबर इंजीनियरिंग में आया था तो कैसे कैसे पैसे जोड़कर तुझे पढ़ाया था …रात में गार्ड की नौकरी करता …दिन में दीवानी ज़ाता ….खेत देखता …तब जाकर तुम तीन भाई बहनों को पढ़ा पाया …सन्युक्त परिवार था…खर्चे भी डबल थे….अब तू पैसे वाला हो गया है तो अभिमान करने लगा हैँ….तू एक भी रूपये की बचत नहीं करता….बाहर से हर दिन ओर्डर से खाना आना…बहू का किटी पार्टी  में जाना ..जो कपड़े 500 में आ सकते हैँ वो माल में जाकर 2000-3000 में लाना…ये सब फिजूलखर्ची नहीं तो क्या हैँ…बाहर समाज में दिखाने के लिए दो दो गाड़ी खरीद रखी हैँ…एक तो खड़ी ही रहती हैं …अगर गाड़ी से ड्राईवर जायेगा छोड़ने तो कितने की पेट्रोल खर्च होगी अन्दाजा हैँ…पैसा  बचाके रख…आड़े बख्त में काम आता हैँ…ईश्वर ना करें कभी सामने वाले रविशंकर की तरह कोई गंभीर बिमारी लग जायें…कितना अभिमान था उसे पैसों का …सब दो महीने में चला गया …घर तक बेचना पड़ा उन्हे ….पैसे के पैर होते हैँ…पता नहीं चलता कब चला जायें …मुझे क्या जो करना हो करो ..मैं कौन हूँ कुछ कहने वाला…तेरा घर …विन्नी (बेटी ) आती हैं तो उसे 500 रूपये विदा देते हो ..बेचारी कुछ नहीं कहती ..तुम लोग अपनी पार्टी में बिजी रहते हो ..मेरे साथ ही 10 दिन बिताकर चली जाती हैं …उसका  किराया ही 3000 हजार लग ज़ाता हैँ…य़ा तो तू सक्षम नहीं होता …दामाद जी से झूठ बोल देती हैँ..अपने जोड़े हुए पैसे से अपनी शान बना लेती हैँ ससुराल में..मैं भी नहीं दे सकता…मेरा हैँ ही क्या ….इतना बोल विनोद जी दुखी मन से अपने कमरे में चले गए…सोचने लगे आज विमला (पत्नी ) होती तो उस से मन हल्का कर लेता….




अमित और नीता (बहू ) कुछ नहीं बोले..पर अगले दिन विनोद जी पौधों में पानी दे रही थे …तभी नीता आयी …उनके पैर छुये ..सालों से  गैराज में पड़ी धूल मिट्टी से सनी स्कूटी को उसने साफ किया ..ज़िसे वो बहुत शौक से चलाया करती थी ..पर जब से पैसा आया ..सोच बदली …उसे चलाने में शर्म आने लगी…उसने दोनों बच्चों को बैठाया..उड़ान भरती हुई बच्चों को स्कूल छोड़ने चली गयी …विनोद जी बहू को देख मुस्कुरा दिये..दोनों हाथ उठा दूर से ही उसे आशिर्वाद देने लगे…अब से ना तो बाहर का खाना आता ..कभी स्पेशल दिन पर बाहर चले ज़ाते ..नीता ने भी किटी पार्टी में जाना बंद कर दिया…विनोद जी को मनाकर एसी लगवा दी उनके कमरे में ..ननद विन्नी आती तो उसे भी पूरे मान सम्मान के साथ विदा किया ज़ाता…अमित  छोड़ने जाता …अब फिजूलखरची ना होती ..

आज विनोद जी दुनिया से निश्चिंत हो गए हैँ कि समय रहते बच्चों में मितव्ययिता की आदत आ गयी….अमित ने जोड़े हुए पैसों से बेटे का दाखिला डॉक्टरी में करवा दिया…बेटी भी एम .टेक कर अपने ससुराल चली गयी….अमित ,नीता विनोद जी की एक एक बात के बारें में सोचते हैँ..अगर पापा ने समय रहते जीवन की सीख नहीं दी होती तो आज अपने अभिमान में सब बर्बाद हो जाता …..

स्वरचित

मौलिक अप्रकाशित

मीनाक्षी सिंह

आगरा

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