सुनों अम्मा ने आज सफेद वाली रोटी और सफेद वाला भात बनाया है लगता है कोई मेहमान आने वाला है वो भी खास,वरना वो कहां ऐसे भोजन बनाती है,पर कौन ये पता नहीं और हां सुनों आज दाल भी बनी है। कहते कहते चिंकी का मुंह लटक गया,जिसे पास बैठी रानी से समझ गई ,पर चुप रही वो ही क्या करती ,अभी जरा सा पूछ लेती तो वो फरफरा के रो मारती जिसे चुप करना मुश्किल हो जाता।
“समझती काहे ना आखिर यही सब देखकर तो वो भी बड़ी हुई है। “
इसलिए खामोश रही,पर उत्सुकता बनी रही की आखिर आने वाला कौन है घर में।
फुआ आने से रही ,जब से उनके बच्चे विदेश में जाके बस गए,वो नैहर की ढेहरी नाही कचरी,कचरती कैसे फुफा रहे नहीं तो वो भी जो उन्हीं के साथ रहने लगी।
शुरू शुरू में तो चिट्ठी पत्री आती जाती थी, पर जब से दादी बाबा मरे वो भी नहीं आती।
बड़की दीदी पहले तो आती थी पर जब से लडकोर भई,कम ही आती है।
होई सकता है काका आवे के होते।
भाई शहरी बाबू है,उनका भला बजरी की रोटी चौराई,बथुआ,का साग और बजरी कोदो के भात कहां अच्छा लगेगा, उन्हें तो शहरी खाना ही अच्छा लगता है।
वो जब भी आते हैं अम्मा ऐसे ही सफेद सफेद खाना बनाती है पर हम सबको कोई फायदा नहीं होता ,ब, देख देख ललचाते है खाने को तब मिलता है जब उनसे बचता है।
ये मान लो की घर में मेहमानों का खाना कुछ और बनता और रोज का कुछ और।
इतने में कुंडी खट्टी तो छुटकी दौड़कर गई,खोल आई।और सामने अपने भाई को देख खिल उठी।
अरे वाह भाई तुम……….।
इस पर चिंकी सोचने लगी तो ये खाना भाई के लिए बन रहा था।
बने भी क्यों ना बाबू ने सारा पैसा इनकी पढ़ाई में झोंक दिया।
और किल्लत हम सब झेल रहे।खैर वो भी उठी और भाई से मिली।
इतने में घर के सभी सदस्य मिलने आए। अम्मा दौड़ी दौड़ी गई छाछ बनाकर ले आई।
फिर वो स्नान ध्यान करके सबसे पहले खाना उसे दिया गया।
और वो खाकर आराम करने चला गया तो बाबू ने खाया।फिर उन दोनों बहनों ने।
पर बात यही खत्म नहीं हुआ ये भेदभाव उसके दिमाग में कहीं घर कर गई,कि अम्मा सफेद बात यानि चावल और सफेद रोटी यानि गैंहू और साग की जगह अच्छी सब्जी मां तभी बनाती है जब घर में कोई मेहमान या शहर से आता है।
तो क्यों ना हम भी पढ़ लिख कर कुछ ऐसा करें कि शहर पहुंच जाए , कम से कम मोटिया अनाज से तो छुटकारा मिलेगा।
फिर उसने चोरी छिपे ” सबके खिलाफ जाकर भाई के सहयोग से”खूब पढ़ाई की ,और एक रोज अफसर बन गई।
पली पोस्टिंग उसकी शहर में जब हुई तो नौकरी से ज्यादा उसे इस बात की खुशी थी कि मुझे भी अम्मा अब मेहमानों वाला खाना देगी।
यहां जब पोस्टिंग करके आई तो देखी हर घर में यही बनता ही है और तो और होटलों और वैवाहिक कार्यक्रमों में फेका भी बहुत जाता है।
इस पर वो सोचने लगी,देखो तो सही जिस अनाज को हम कभी कभार मेहमानों से बचने पर खाते हैं,वही शहरों में हर रोज खाते भी है और बेकद्री भी करते हैं।
खैर पोस्टिंग के बाद जब वो पहली बार घर गई,तो अम्मा ने उस दिन भी वहीं करने जा रही थी , जो अब तक करती आई है।तो इसने कहा, अम्मा आज से सबके लिए खाना एक सा बनाना , बहुत तकलीफ़ सह लिया।अब नहीं सहना,राशन की व्यवस्था हम करेंगे।
ये सुन अम्मा की आंखे भर आई,दादी खुशी से खिल उठी और बाबू का सीना गर्व से चौड़ा हो गया।” बेटी हो तो ऐसी”
स्वरचित
कंचन श्रीवास्तव आरजू