लोभ का त्याग

बहुत पुरानी बात है रोजाना  माधवपुर का राजा सुबह-सुबह अपने मंत्रियों के साथ राज्य भ्रमण पर निकलते थे. आसपास के जितने भी राज्य थे उन सभी राज्यों में महाराज केशव प्रताप सबसे अमीर थे उनके मन में हमेशा यही लालसा रहती थी कि आसपास के सभी राज्यों को जीतकर अपने राज्य में मिला लें.  इस कारण वह हमेशा चिंतित रहते थे हमेशा यही बात सोचते रहते थे। कभी भी उनके मन को शांति नहीं मिल पाती थी हर पल उन्हें कोई ना कोई चिंता सताए रहती थी। 

 1 दिन सुबह-सुबह राज्य भ्रमण पर निकले हुए थे तभी उनकी नजर एक साधु की कुटिया पर पड़ी और उन्होंने देखा कि वहां पर कुछ लोग बैठे हुए हैं और साधु बैठे लोगों को प्रवचन सुना रहे हैं, राजा को साधु की प्रवचन बहुत प्रभावित किया और वह भी उन लोगों के बीच बैठकर सत्संग सुनने लगे.

 राजा को वहां बैठे देख सभी लोग उठ गए राजा ने कहा कोई बात नहीं आप सब लोग भी बैठिए मुझे सत्संग अच्छा लगा इसलिए मैंने सुनने के लिए बैठ गया.

 थोड़ी देर के बाद सत्संग समाप्त हो गया और सभी व्यक्ति अपने-अपने घर चले गए लेकिन राजा वहीं बैठे रहे राजा को काफी देर से बैठे देख साधु राजा के पास आए और उन्होंने पूछा, “राजन आप इतना परेशान क्यों दिखाई दे रहे हैं अगर आप ही परेशान होंगे तो प्रजा खुश कैसे रहेगी, आप हमें अपनी परेशानी का कारण बताइए जरूर हम आपको कुछ हल बताएंगे।”

  राजा ने साधु से कहा,” गुरुजी मेरे पास सब कुछ है लेकिन मेरे जीवन में शांति नाम की चीज नहीं है पूरे दिन कोई न कोई बात सोचता रहता हूं और यही सोच कर परेशान रहता हूं मैं सोचता हूं इस पृथ्वी का सबसे बड़ा राजा बन जाऊं और जितने भी राज्य हैं और सारे राज्य मेरे अंदर में आ जाए.



 साधु ने कहा राजन परेशान मत हो अभी 1 मिनट में मैं तुम्हारी परेशानी दूर कर देता हूं.  तुम सिर्फ 1 मिनट आंखें बंद कर कर ध्यान के मुद्रा में बैठ जाओ. राजा ध्यान मे तो बैठ गया लेकिन उसके मन के अंदर इधर-उधर की बातें आने लगी दूसरे राज्यों पर कैसे चढ़ाई करें, कैसे जीते, उसका खजाना और कैसे भरे, यही सब सोचता रहा थोड़ी देर बाद वह ध्यान मुद्रा से उठ गया.  और बोला. गुरुजी चलिए जंगल में घूम कर आते हैं साधु भी राजा के साथ जंगल की तरफ चल दिया जंगल में राजा को एक सुंदर सा वृक्ष दिखाई दिया. राजा उस वृक्ष को छूने के लिए अपने घोड़े से उतरकर वृक्ष के पास गया जैसे ही उसने वृक्ष को छुआ उसके हाथ में एक कांटा चुभ गया और राजा बुरी तरह से चिल्लाने लगा जल्दी से राजा के सिपाहियों ने घोड़े पर बैठाकर साधु की कुटिया ले आए.  साधु राजा के कटे हुए हाथ पर नीम का लेप लगाया और कपड़े से बांध दिया। उसके बाद साधु ने बोला राजन जरा सा आपको कांटा चुभा तो आप इतने परेशान हो गए अब आप ही सोचो जिस इंसान के दिल में इतने सारे ईर्ष्या, क्रोध लालच भरे कांटे छिपे हुए हो वह इंसान भला शांत कैसे रह सकता है. 

 राजा को साधु की  बात समझ आ गई और राजा उस दिन के बाद वापस जाने के बाद दूसरे राज्यों पर चढ़ाई करने के बारे में सोचना छोड़ दिया और राजा के पास जितना  खजाना था अपने प्रजा की भलाई में लगा दिया और राजा इतिहास में अमर हो गया.

दोस्तों हम मनुष्य भी यही करते हैं हमारे पास जो है उसका हम उपभोग नहीं करते हैं बल्कि और ज्यादा पाने की लालच में जो हमारे पास है उसको भी खो  देते हैं.

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!