किस्मत के साथ समझौता – सोनिया कुशवाहा!

रात के दो बजे हैं, घर में सब लोग सो रहें हैं लेकिन रागिनी की आँखों में नींद का नामो-निशान भी नही है। हारे हुए खिलाड़ी की तरह उदास, परेशान सी वो पुरानी फोटो एल्बम के पन्ने पलट रही है।किसी फोटो को देखकर चेहरे पर फीकी सी मुस्कान खिल जाती तो कभी दर्द सा उभर जाता उसके चेहरे पर। पिछली चार पाँच रातों से यही क्रम चल रहा है।रागिनी के मन की बेचैनी उसे सोने नही दे रही है। लेकिन रागिनी की परेशानी की वजह क्या है यह जानने के लिये आपको मेरे साथ २० बरस पीछे चलना होगा।

सत्रह बरस की चंचल नटखट रागिनी ,पढने लिखने की शौकीन थी। सिलाई कढाई हर कला में प्रखर थी। बारहवीं में बहु़त अच्छे अंकों से पास हुई थी और बाबा से आगे पढ़ने की रट लगाये थी। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मन्जूर था। अठ्ठारह बरस पूरा करते ही उसकी शादी कर दी गई। गाँव में उन दिनों बेटियों के इसी उम्र में ब्याह कर दिये जाते थे।दुख तो उसे बहु़त हुआ लेकिन इसी को अपनी तकदीर समझ , आंखों में आंसू छिपाये वह ससुराल आ गई। ससुराल में आने पर पता चला कि शंकर ,जिससे रागिनी का ब्याह हुआ है पहले से ही तीन बच्चोंं का पिता है। पहली पत्नी का निधन हो चुका था। 

पहले तो रागिनी को बहु़त धक्का लगा लेकिन कुछ ही दिनों में रागिनी को वो बिना माँ के बच्चे बहु़त प्यारे लगने लगे।शंकर की सरकारी नौकरी थी और यही देखकर रागिनी के माता-पिता ने अपनी अठ्ठारह बरस की बिटिया की शादी तीस बरस के शंकर से कर दी थी।रागिनी अब ६ वर्ष के सूरज ,४ वर्ष की छाया और २ वर्ष की चन्दा की माँ थी।तीनों बच्चों को उसने कभी माँ की कमी महसूस नही होने दी। साल भर के भीतर ही रागिनी ने भी एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया।

अब चार बच्चों की जिम्मेदारियों में घिरी रागिनी की जिन्दगी उन चारों के आसपास ही घूमने लगी। लेकिन मन में कहीं आगे पढने की चाह अभी भी बाकी थी। पति से कह कर बहु़त मिन्नतों के बाद प्राईवेट बी ए का फार्म भरवाया लेकिन परीक्षा ना दे सकी।क्योंकि सासु माँ ने बच्चोंं की जिम्मेदारी उठाने से इन्कार कर दिया था ।छोटे छोटे बच्चों को किस के भरोसे छोड़ती?? एक बार फिर उसने किस्मत के साथ समझौता कर लिया।पति और बच्चोंं की ज़रूरत और खुशियों के लिये उसने अपनी हर इच्छा ,हर सपने का गला घोंट दिया। जिम्मेदारियों ने उसे उसकी उम्र से कहीं ज्यादा बड़ा बना दिया था।आंखों के नीचे काले घेरे ,सिर पर सफेद बाल,बेतरतीब बेमेल से कपड़े बस कुछ ऐसी ही पहचान हो गई थी रागिनी की।बच्चोंं को पूरा समय देने के लिये उसने खुद का ध्यान देना कब का बन्द कर दिया था। बस कभी कभी अपने बचपने की बातों पर हँसी आती थी,वो बाबा से बोलती थी सरकारी अफसरनी बनूँगी पढ लिखकर।



समय पंख लगा कर उड़ता जा रहा था।बड़ा बेटा सूरज अब २५ बरस का हो  गया था और छोटा बेटा १८ बरस का। दोनो बेटियाँ भी बड़ी हो गई थी।रागिनी को चारों बच्चे बहु़त प्यार करते थे। रागिनी के प्यार और समर्पण का परिणाम यह था कि दूर दूर तक लोग रागिनी के त्याग और सौतेले बच्चों से उसके प्यार का उदाहरण देते थे।लेकिन सौतेले बच्चों की माँ बन पाना इतना आसान नही था!! कभी किसी को चोट लग जाती , तीनो में से कोई भी बीमार हो जाता या परीक्षा में कम अंक आते तो शंकर झट से बोल देता सौतेली हो ना तभी ऐसा हुआ इनकी माँ अगर जिन्दा होती तो ऐसा कभी न होता!!रागिनी खून का घूँट पीकर रह जाती।शंकर ने रागिनी को कभी भी एक अच्छी माँ नही माना।कोई न कोई बहाने से वो यह साबित कर ही देता कि रागिनी कितनी लापरवाह माँ है।लेकिन जब चारों बच्चोंं की आँखों में वह स्वयं के लिये प्रेम देखती तो खुद से कहती ” मेरे बच्चे मुझसे प्यार करते हैं,और उनकी नजर में मैं दुनिया की सबसे अच्छी माँ हूँ”।

एक दिन अचानक शंकर की सड़क हादसे में मौत हो गई।रागिनी की पूरी दुनिया ही हिल गई। शंकर की मौत से परिवार में जैसे फूट पड़ गई थी।दोनों भाईयों में पिता की नौकरी पाने की होड़ सी लग गई। छोटा बेटा जो बड़े भाई के सामने कभी ऊँची आवाज में बात तक नही करता था अब अक्सर नौकरी के लिये बड़े भाई से बहस करने लगा था।रागिनी को बहु़त दुख पहुँचा जब उसने दोनों को समझाने की कोशिश की तो घर में बहु़त बड़ा तमाशा खड़ा हो गया।छोटे ने तो यहाँ तक कह दिया कि आप तो मेरी माँ कभी बन ही नही पाई आज भी आपको भईया ही सही लग रहे हैं।दूसरी तरफ जब सूरज के पास माँ पहुंची तो उसने कहा “” आप तो चाहती ही हैं कि छोटे को नौकरी मिले , आखिर वो आपका सगा बेटा है और मैं सौतेला!! आज आपने दिखा ही दिया अपने पराये का फर्क!! “”रागिनी ठगी सी दोनों का मुँह देखती रह गई।आज उसकी परवरिश को मानो गाली दी थी दोनों ने। रागिनी ,जो आजतक इस भ्रम में जी रही थी कि बच्चे उसे अच्छी माँ समझते हैं ,को यथार्थ के धरातल पर लाकर पटक दिया था। दोनों बेटियाँ तो कुछ कह पाने की हालत में ही नही थी।पिता की मौत और भाइयों के व्यवहार ने उन्हे मौन कर दिया था। बहु़त गहरी चोट पहुंची थी रागिनी को।बरसों की तपस्या से बना उसका यह परिवार बिखर रहा था। उसके त्याग और निस्वार्थ प्रेम का उसको यह परिणाम मिलेगा उसने सोचा भी ना था।यही रागिनी की परेशानी का कारण था जो उसे सोने नही दे रहा था। किसे पिता की नौकरी दे ?? परिवार की खुशियों के लिये अपना सब समर्पित करने वाली माँ की खुशी की किसी को परवाह नही थी। 



रागिनी को अब निर्णय लेना था जिससे समाधान भी मिल सके और बरसों की मेहनत से बना उसका परिवार भी न बिखरे।अगले दिन रागिनी ने सरकारी दफ्तर में जाकर कुछ कागजी कार्यवाही पूरी की और घर आकर दोनों बेटों को कहा कि तीन दिन बाद एक लैटर आयेगा उसमें पता लगेगा नौकरी किस को मिलेगी।दोनों बेटे उत्सुकता वश इन्तज़ार करने लगे।तीसरे दिन लैटर आयी,जैसे ही बड़े ने खोल कर पढा वो आश्चर्य से माँ की ओर देखने लगा।माँ ने मुस्कुरा के कहा हाँ तुमने ठीक पढा है ये नौकरी मेरे पति की है उनके जाने के बाद इस पर सबसे पहला हक मेरा है।तुम दोनों को यह नौकरी क्यों मिलेगी?? बेहतर होगा तुम दोनों अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो और मेहनत करके नौकरी हासिल करो।

बड़े ने कहा माँ आपकी अब नौकरी करने की उम्र कहाँ हैं आप नही कर पायेंगी। रागिनी ने कहा बेटा अभी इतनी बूढी भी नही हुई हूँ मैं ।अभी मेरी उम्र ३८ साल है ,२२ साल नौकरी कर सकती हूँ।तुम लोगों की जरूरतों का ध्यान रखते रखते मैं तो भूल ही गई थी कि मेरा अपना भी एक अस्तित्व है,खुद को अपनी आयु से ज्यादा बड़ा बना लिया मैंने।हमेशा यही सोचा कि परिवार खुश तो मैं खुश।लेकिन परिस्थितियों ने मुझे सिखाया कि परिवार भी तभी खुश रह सकेगा जब मैं खुश रहूँगी।आज मैं खुद के बारे में न सोच कर यदि तुम दोनों में से किसी भी एक को नौकरी दे देती तो मेरा परिवार पल भर में बिखर जाता ,तुम दोनों के अलावा दो बिना ब्याही बहनेें भी हैं जिनको तुम दोनों अपने आपसी क्लेश में भूल गये थे।तुम तो उनको पैसे पैसे के लिये मोहताज कर देते।अब इस घर की मुखिया मैं हूँ इसलिये सबको कायदे में रहना होगा।पापा चले गये तो तुम लोग छोटे बड़े का लिहाज भूल गये??

दोनों बेटे सर झुकाये खड़े थे। गलती के अहसास से दोनों की आंखें नम थी।बिना मेहनत के नौकरी पाने के स्वार्थ में हमने आपकी परवरिश को शर्मसार किया है ।हम दोनों की बजाय खुद जॉब जॉईन करके आपने बहु़त सही कदम उठाया है माँ।आपको पूरा हक है कि आप अपनी जिन्दगी पूरे स्वाभिमान के साथ आत्मनिर्भर होकर जीयें।हम दोनों ने अपनी खुशी के आगे आपकी खुशी को नज़र अन्दाज किया। दोनो ने माँ से माफी मांगी और एक साथ कहा आज से माँ खुश तो परिवार खुश। आपकी खुशी में ही हमारी खुशी है।आपने आज हमारी आंखें खोल दी है। आज से घर में सबसे पहले आपकी खुशी का ध्यान रखा जायेगा।

रागिनी ने नौकरी जॉईन करी।उसे क्लर्क की जॉब मिली।पहली बार जीवन में खुद को आर्थिक रूप से सशक्त महसूस किया।घर से बाहर निकल कर काम करने से उसमें एक नया आत्मविश्वास आ गया।रागिनी आज भी अपने बच्चोंं से बहु़त प्यार करती है लेकिन खुद को नज़र अन्दाज करके नही।अपनी खुशी भी ज़रूरी है अब रागिनी सबको यही समझाती है।

 इस कहानी पर आपकी प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा।

सोनिया कुशवाहा!

 

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