कर भला हो भला

बनारस  में घाट के पास ही एक भिखारी रहता था.  रोज सुबह चार बजे ही गंगास्नान कर  भिक्षाटन के लिए चल देता था. कुछ दिनो बाद उसने देखा की नदी मे से एक लडकी निकलती है और कहती बाबा मुझे भी अपने साथ अपने घर ले चलो. भिखारी यही सोचता अगर इस जवान  लडकी को मै अपने घर ले जाऊंगा तो  मेरे परिवार वाले क्या सोचेंगे मेरे पांच-पांच  बेटियां  है सब मुझे गलत सोचेंगे। यह सोचकर  लडकी के बात को  सून कर भी अनसुना  कर देता था. 

एक दिन अपनी पत्नी के साथ सोया हुआ था पत्नी ने कहा मै आपको देख रही हूँ   आप  किसी न किसी  तनाव मे है. भिखारी अपनी पत्नी से बोला तुम  सही कह रही हो, उसने अपने पत्नी से नदी वाली बात बता दिया।  भिखारी  की पत्नी ने कहा इस  छोटी सी बात को लेकर परेशान हो. तुम  लडकी को घर लेकर आओ, पहले से  पांच  बेटियां है उसके आ जाने से छह: हो जाएगी यही होगा न. इतने लोगो का गुजारा चल रहा है उसका भी गुजारा इसी में  से चल जायेगा। 

अगले  दिन भिखारी जब नदी मे नहाने गया तो उस लडकी को अपने साथ अपने घर लेकर आया. उस लड़की को घर लाने के बाद भिखारी जब भिक्षा मांगने   के लिए गया तो उसने महसूस किया रोज से आज से ज्यादा भिक्षा मिला है. 



शाम को जब भिखारी की पत्नी खाना बनाने लिए चावल धो रही थी तो वह लड़की बोली लाओ माँ चावल  धो देती हूँ. वह लड़की  जब चावल धोने लगी तो चावल का बर्तन चावल से  भर गया.  माँ  जब खाना  बनाने जाने लगी तो लड़की बोली,  माँ आज खाना मैं बना देती हूं. भिखारी की पत्नी बोली ना बेटी  तुम्हे अभी खाना बनाने कहाँ आता होगा तुम्हारे हाथ जल जायेंगे लेकिन वो लडकी नही मानी खाना बनाने लगी. 

रसोई में खाना बनाने गई तो नाना प्रकार के व्यंजन बना डाले। सभी परिवार ने आज भरपेट खाना खाया।  इससे पहले वह आधा पेट ही खाकर सोया करते थे. 

रात में सब सोए हुए थे तभी अचानक से किसी ने दरवाजा खटखटाया भिखारी  की पत्नी ने जब दरवाजा खोला तो उसका भाई आया था और उसने बोला दीदी मैं बहुत भूखा हूं मुझे खाने को कुछ दे दो.   भिखारी की पत्नी ने सोचा खाने को तो कुछ है ही नहीं इसको क्या खाने को दिया जाए.  

लड़की अपनी मां को परेशान देखकर पूछी मां तुम क्यों परेशान हो?  भिखारी की पत्नी बोली बेटी तुम्हारा मामा आया है और वह खाने के लिए कुछ मांग रहा है लेकिन हमारे यहां तो रसोई में कुछ खाने को बचा ही नहीं।  लड़की बोली मां मैं रसोई में जाती हूं और मामा के लिए खाना बना देती हूँ. जैसे शाम को नाना प्रकार के व्यंजन बनाए थे उसी तरह उस मामा के लिए भी व्यंजन बना डाले।  मामा ने भरपेट खाना खाया और कहा आज तक मैंने अपने पूरे जीवन काल में ऐसा स्वादिष्ट खाना नहीं खाया था. भिखारी की पत्नी ने कहा कि भाई तेरी पावनी भांजी है उसी ने खाना बनाया है. 



 शाम होते ही लड़की ने अपने मां से बोला मां चौका लगाकर चौकी का दिया जला दो आज मैं छत के ऊपर ही सोऊंगी  भिखारी की पत्नी बोली ना बेटी छत पर मत सो डर जाएगी लेकिन लड़की बोली नहीं माँ नहीं डरूंगी, मैं छत के ऊपर ही जाकर सोऊंगी।  रात को वह लड़की छत के ऊपर जाकर सो गई जब आधी रात हुई तो लड़की सो कर उठी और चारों तरफ अपनी आंख मारी जहां उसने देखा वहां धन ही धन हो गया. आधी रात  को ही बाहर जाने लगी तो भिखारी दरवाजे पर ही सो रहा था उसने लड़की को जाते हुए देखा तो पूछा बेटी तू कहां जा रही है, उस लड़की ने बोला बाबा मैं आपकी दरिद्रता दूर करने आई थी वह दूर कर दिया है भिखारी ने चारों तरफ देखा तो  रुपए, पैसे, सोने-चांदी के जेवर से उसके घर भरे हुए थे. 

सुबह हुई तो भिखारी की पत्नी उस लड़की को ढूंढने लगी तो भिखारी बोला उसे मत ढूंढ वह तो चली गई वह तो साक्षात लक्ष्मी माता थी  जो हमारी बेटी बनकर हमारे घर में हमारी दरिद्रता दूर करने आई थी. 

कहानी का आशय यह  है कि आपको अगर कभी भी कोई असहाय व्यक्ति चाहे वह पुरुष हो या महिला अगर दिखे तो उसकी सहायता करो आप यह मत देखो कि मेरे पास तो कुछ है ही नहीं मैं कैसे सहायता कर सकता हूं या कर सकती हूं आपके पास जो भी संसाधन है, उससे ही जितना हो सके उस व्यक्ति की सहायता करनी चाहिए बाकी सब कुछ ईश्वर देख रहा है वह आपके लिए अच्छा सोच रखा है वह आपका बुरा कभी नहीं होने देगा।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!