दूसरों की गलतियों को माफ करना ही असली बड़प्पन है.

 एक  सेठ के  2 पुत्र थे दोनों अब जवान हो चुके थे सेठ ने सोचा कि अपने दोनों पुत्रों का विवाह करअब वह इस मोह माया की दुनिया से अलग होकर सत्संग करेगा और अपना बाकी का जीवन मथुरा और वृंदावन में जाकर बिताएगा। 

 कुछ दिनों के अंदर ही बड़े धूमधाम से अपने दोनों बेटों की शादी कर दिया. शादी के कुछ दिनों बाद ही उसके दोनों बेटे आपस में लड़ाई झगड़े करने लगे यह देख सेठ बहुत हुई दुखी रहने लगा.

  उसने जीवन भर भलाई का कार्य किया था वह आज तक एक रुपए के लिए किसी से भी लड़ाई नहीं किया लेकिन उसके खुद के बेटे आपस में पैसों के लिए लड़ाई करते थे.  एक दिन तो दोनों बेटों ने लड़ाई करते करते अलग रहने की ठान ली यहां तक कि दोनों बेटों की पत्नियों ने भी सेठ से जाकर कहा कि बाबूजी अब हम लोग एक घर में नहीं रह सकते हैं आप हमारा बंटवारा कर दीजिए, लेकिन सेठ जीते जी अपने घर का बटवारा नहीं करना चाहता था और इसी गम  में वह एक दिन मर गया. 

कुछ दिनों के बाद सेठ के दोनों बेटों ने आपस में बहुत ज्यादा ही लड़ाई झगड़ा हुआ यहां तक कि सेठ के छोटे बेटे ने बड़े भाई को बहुत सारा गाली दिया. सेठ के बड़े बेटे ने भी तय  कर लिया था कि वह दोनों एक साथ नहीं रह सकते हैं और कुछ दिनों के बाद दोनों भाई अलग रहने लगे. 

 दुकान का भी बंटवारा हो गया दोनों की दुकान एक जगह ही थी, सिर्फ दुकान के अंदर एक दीवार का अंतर था दोनों भाई रोजाना दुकान से आते-जाते आपस में मिलते जुलते लेकिन नजरें झुका कर चले जाते कोई भी किसी से बात नहीं करता।  ऐसा करते-करते कई साल बीत गए. पर दोनों भाइयों में कभी भी आपस में बातचीत नहीं होता था. 



 छोटे भाई ने अपनी लड़की के विवाह ठीक कर दिया था छोटे भाई की पत्नी ने कहा कि हमें आपके बड़े भाई को अपनी बेटी की शादी में जरूर बुलाना चाहिए आखिर है तो आपके बड़े भाई, रिश्ते कभी खत्म होते हैं क्या आप माफी मांग लो और अपने बड़े भाई को अपनी बेटी की शादी में आशीर्वाद देने के लिए बुला लाइए। 

 छुट्टी का दिन था दुकान उस दिन बंद था छोटे भाई अपने बड़े भाई के घर गया और अपने बड़े भाई के  पैरों में गिरकर पिछली बातों के लिए क्षमा मांगने लगा और बोला भैया मुझे माफ कर दीजिए और जो हुआ  उसे भूल जाइए आपके छोटे भाई की बेटी की शादी है अगर आप नहीं आएंगे तो मैं अपनी बेटी की विदाई नहीं करूंगा. 

लेकिन बड़े भाई को कोई भी फर्क नहीं पड़ा वह अपने छोटे भाई की बात मानने को तैयार नहीं हुआ और अपने छोटे भाई की बेटी की शादी में जाने से बिल्कुल ही मना कर दिया. 

 छोटे भाई को इस बात का बहुत ही दुख हुआ उसकी बेटी की शादी में उसके अपने बड़े भाई शामिल नहीं हो रहा है. 

छोटा भाई अपने घर आकर अपनी पत्नी से बोला कि बड़े भाई को मैंने बहुत मनाया लेकिन बड़े भाई हमारी बेटी की शादी में आने को तैयार नहीं हो रहे हैं. मुझे समझ नहीं आ रहा है कैसे भाई को मनाया जाए. 

 छोटे भाई की पत्नी ने कहा कि आपके बड़े भाई कुछ दिनों से हमारे शहर में एक संत आए हैं उन्हीं के यहां सत्संग सुनने जाते हैं मैं तो कहती हूं जाकर आप संत से मिलिए वह उनकी बात नहीं टालेंगे. 

 छोटा भाई ने ऐसा ही किया वह सुबह होते ही उस संत महात्मा के पास गया और उसने अपनी सारी बात बताई और उसने बोला कि मैं चाहता हूं कि मेरे बड़े भाई मेरी बेटी की शादी में शामिल हो लेकिन वह जिद पर अड़े हैं. बरसों पुरानी बातों को अभी तक दिल पर लगाए हुए हैं.  महात्मा आप किसी भी तरह मेरे भाई को मेरे घर आने को तैयार कर दीजिए. संत महात्मा ने बोला ठीक है मैं कल कोशिश करूंगा. 

 अगले दिन जब बड़ा भाई महात्मा के आश्रम में पहुंचा  महात्मा बोले अरे ओ भाई धर्मचंद मैंने सुना है कि तुम्हारे छोटे भाई करमचंद के यहां उसकी लड़की का विवाह है मैं सोच रहा हूं कि तुम्हारे साथ मैं भी तुम्हारे छोटे भाई की बेटी के शादी में शामिल हो. 



 धर्म चंद ने बोला महात्मा जी मुझे माफ कर दीजिए मैं छोटे भाई की बेटी की शादी में शामिल नहीं हो पा रहा हूं क्योंकि जब पिताजी की मृत्यु हुई थी उस समय मेरे और छोटे भाई में काफी लड़ाई झगड़ा हुआ और उसने मुझे बहुत ही कड़वे  वचन कहा जो आज तक मेरे हृदय मेंचुभते रहते हैं. 

महात्मा ने कहा ठीक है कोई बात नहीं आप पहले सत्संग सुनो लेकिन घर जाने से पहले एक बार मुझसे मिलकर जाना. 

 सत्संग के समाप्त होने पर धर्मचंद महात्मा जी के पास गया महात्मा जी ने धर्म चंद से पूछा अच्छा मुझे यह बताओ पिछले रविवार को मैंने क्या सत्संग सुनाया था क्या तुम्हें याद है? धर्म मौन चुपचाप खड़ा रहा और बोला महात्मा जी मैं अपने  व्यापार में इतना व्यस्त हो जाता हूं यहां से जाने के बाद मुझे कुछ याद ही नहीं रहता है. वह तो 1 दिन रविवार मिलता है तो मैं सोचता हूं सत्संग ही कर लिया जाए बाकी दिन तो आदमी अपने कर्मों में लगा ही रहता है. 

 महात्मा जी ने कहा कि देखो भाई धर्म चंद यही तो बात मैं तुम्हें बताना चाहता हूं जब तुम मेरे बताए हुए अच्छी बात 1 सप्ताह में ही भूल गए और तुम्हारे भाई ने कई साल पहले इतने कड़वे वचन बोले थे लेकिन वह तुम अभी तक याद कर रखे हो और कहते हो कि वह मेरे हृदय में कांटों की तरह चुप रहे हैं.

  मेरे भाई धर्मचंद जब तुम अच्छी बात को याद नहीं रख सकते तो बुरी बात याद रखने का क्या फायदा उसे तो जीवन में ऐसे ही भूल जाना चाहिए मुझे तो लग रहा है कि तुम्हें सत्संग में आने से कोई लाभ ही नहीं हो रहा है इसीलिए कल से तुम मत आया करो. 

 धर्मचंद की आंखें खुल गई और उसने अपनी गलती स्वीकार किया और महात्मा जी के पैरों में गिर गया और बोला महात्मा जी मैं आज ही अपने छोटे भाई के घर जाऊंगा और छोटे भाई की बेटी की शादी पूरे जिम्मेवारी मैं ही  लूँगा.

दोस्तों हमारे साथ भी हमारे जीवन में ऐसा ही होता है अक्सर हम दूसरों की कही बातों को अपने दिल पर लगा लेते हैं और उनसे सालों तक बुरा मान जाते हैं और उनसे बेवजह की दूरी भी बना लेते हैं लेकिन अगर छोटी-छोटी बातों को हम ऐसे दिल से लगाएंगे तो ऐसे हम अपने सारे दोस्त मित्र रिश्तेदारों से दूरी बना लेंगे अगर आपके साथ भी ऐसा हुआ है तो इस कहानी के पढ़ने के बाद आप उस मित्र से मैसेज द्वारा फोन द्वारा बात कीजिए क्योंकि यही तो इंसानियत है  और दूसरों की गलतियों को भुला देना यही तो सबसे बड़ा बड़प्पन है.  

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