सुधा टीचर थी उसे छुट्टी नहीं मिल रही थी ।बहुत मुश्किल से उसे 1 दिन की छुट्टी मिली ।उसने अपने पति अनिल से भी छुट्टी लेने कहा प्राइवेट नौकरी में छुट्टी कहां मिलती है दोनों को बहुत मुश्किल से छुट्टी मिलती है घर में बहुत सारे कार्य थे। बेचारा नन्हा सा राकेश उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, कि यह क्या हो रहा है ।वह दादी के पास जाता है, और पूछता है कि आज घर में इतने सारे पकवान क्यों बन रहे हैं ।दादी ने कहा कि आज तुम्हारे दादा जी घर आएंगे। उनकी पसंद का भोजन बन रहा है उनके पसंद का भोजन, उनको खिलाएंगे यह सुनकर राकेश बहुत खुश हो जाता है बहुत दिनों बाद दादा जी आएंगे। दादा के साथ समय बिताए गा। उनके साथ खेलेगा उसे याद आता है कि वह दादा के साथ खेलने जाया करता था.| खुश होकर दादाजी उसे चॉकलेट खिलाते थे |स्कूल से आते ही हो दादा जी के साथ घूमने जाता था |दादा जी आएंगे उनके साथ खूब खेलेगा| मस्ती करेगा| यह सोच कर बहुत खुश हो जाता है|
स्कूल जाने की देर ना हो इसलिए दादी राकेश को स्कूल जाने के लिए तैयार करती है और कहती है कि तुम स्कूल से आओगे तब तुम्हारे दादा जी आएंगे |नन्हा राकेश बार-बार जिद करता है कि दादाजी घर आएंगे इसलिए मैं स्कूल नहीं जाऊंगा| दादा के साथ बहुत सारी बातें करूंगा| उनके साथ खेलूंगा बार-बार राकेश को जिद करते देखकर दादी उसे घर में रहने की इजाजत दे देती है|
पंडित जीआते हैं श्राद्ध कार्य संपन्न होता है| उसके पश्चात भोजन प्रारंभ होता है। सभी आगंतुक को भोजन कराया जाता है। राकेश की मां राकेश को भी भोजन देती है, परंतु राकेश दादा जी का रास्ता देखता है, और कहता है कि मैं दादा के साथ ही खाना खाऊंगा, अभी नहीं खाऊंगा, बार-बार बोलने के बाद भी वह भोजन नहीं करता धीरे-धीरे दिन ढलने लगता है!
राकेश को भूख लग जाती है परंतु वहां दादा जी के साथ खाने की जिद में शाम तक भूखा रह जाता है। शाम को अपनी दादी से कहता है दादी दादा जी कब आएंगे? राकेश की दादी कहती है कि बेटा वह तो खाना खाकर चले गए । राकेश दादी से नाराज हो जाता है कहता है की यह क्या दादी मैं दादाजी का सुबह से इंतजार कर रहा हूं ,और दादा जी मुझसे मिले बिना ही चले गए? मैं उनका रास्ता देखता ही रह गया। मुझसे आपने बताया क्यों नहीं मुझे अंधेरे में रखा आपने मैं आपसे नाराज हूं। चलो दादा जी ढूंढ कर लाते हैं। दादी का मन बहुत उदास हो जाता है ।वह कहती हैं बेटा जो इस दुनिया से चले गए वह वापस नहीं आते ,भोजन पर उन्हें बुलाए थे ।भोजन करके चले गए वे हमें देखते हैं, परंतु हम उन्हें नहीं देख पाते, क्योंकि वह भगवान हो गए हैं ।जिस प्रकार भगवान हमें देखते हैं परंतु हम उन्हें नहीं देख पाते बिल्कुल उसी तरह तुम्हारे दादा जी भी आए थे और चले गए यह सुनकर राकेश बहुत उदास हो जाता है और सोचता है कि दादा जी मुझसे मिले बिना ही चले गए?
यह तो अबोधबालक के निश्चल मन के उदगार हैं परंतु। हम सभी हिंदुओं के मानस पटल पर यह प्रश्न चिन्ह अवश्य आता होगा की वास्तव में क्या जो लोग इस दुनिया में नहीं है वह पितृपक्ष के विभिन्न तिथियों में अदृश्य रूप में उनके घरों में भोजन करने एवं अपने संबंधियों से मिलने आते हैं?
आरती झा कुशालपुर रायपुर