बदनुमा दाग ( भाग 4)- माता प्रसाद दुबे : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi :

“भैया एक बोतल पानी दें दीजिए” मालती प्रभात के बगल वाले दुकानदार से बोली। उस दुकानदार ने मालती को पानी की बोतल दे दिया। “यह दुकान कब खुलेगी?” मालती उस दुकानदार से बोली।

“क्या बताऊं बहन जी, बहुत गलत हुआ है प्रभात भैया और उनके परिवार के साथ?” वह दुकानदार मालती की ओर देखते हुए बोला। “क्या हुआ है, क्या आप मुझे बताएंगे?” मालती उस दुकानदार से विनती करते हुए बोली।

“आपका अगर कुछ लेना-देना बाकी हो,तो मुझे बताइए प्रभात भैया को खबर कर दूंगा,या तो उनका नंबर ले लीजिए बात कर लीजिए” वह दुकानदार मालती को संबोधित करते हुए बोला। “नही भैया ऐसी कोई बात नहीं है, मैं तों बस भैया के बारे में जानना चाहती थी बहुत दिनों से दुकान क्यूं बंद कर रखी है उन्होंने “मालती सहानभूति प्रकट करते हुए बोली।

“क्या करेंगी बहन जी जानकर जब अपनी ही बेटी गलत हो तो दुनिया मजे लूटती ही है” वह दुकानदार घृणा भाव दर्शाते हुए बोला। “ऐसा क्या हुआ भैया?” मालती चिंतित होते हुए बोली। “बेचारे रामप्रसाद जी, प्रभात भैया उनकी मां सब की जिन्दगी के लिए एक बदनुमा दाग बन गई उनकी ही बेटी मालती, पैसे की चमक देखकर एक अपराधी से शादी किया, मां बाप भाई भाभी सबके मुंह में कालिख लगा गई,

उसके बाद से रामप्रसाद जी बिल्कुल टूट गये वे बीमारी से ग्रस्त हो गये, प्रभात भैया भी किसी से बात नहीं करते कि कोई उनकी बहन के बारे में न पूछ ले,जिसकी इच्छा और जिद की पूर्ति के लिए उन्होंने दिल पर पत्थर रखकर उसकी शादी कर दी,बस वही है इस परिवार को तबाह करने का कारण” कहकर दुकानदार शांत हो गया।

“क्या हुआ उनके पिताजी को ” मालती दुकानदार से सवाल करती हुई बोली। “बाबूजी और भैया ने बेटी की खुशी जिद पूरी करने के लिए ना चाहकर भी उसकी शादी की,मगर वह एक हत्यारा था अभी एक साल पहले उसे उम्र कैद की सजा हो गई,यह बात पूरे कस्बे में फैल गई रामप्रसाद जी शर्म से सिर झुकाकर चलते थे,लोग तरह-तरह की बातें करते थे, प्रभात भैया भी हरदम परेशान रहते थे,इसी गम में बाबूजी को लकवा मार गया,वह बिस्तर पर पड़े रहते हैं,

माताजी का भी हाल ठीक नहीं है,पूरे परिवार पर ग्रहण लग गया है, प्रभात भैया दुकान छोड़कर घर पर ही रहने लगें,बहन जी यह समझ लीजिए कि बेटी को पलकों पर बैठाकर रखने वाले पिता मां भाई भाभी उन सभी के लिए एक बदनुमा दाग बन गई वहीं बेटी, जिसे देखकर शायद अब रामप्रसाद जी के प्राण भी न बचे,

भगवान करे वह यहा कभी भी ना आए, नहीं तो और भी गलत होगा और कस्बे के लोग बातें करके इस इज्जतदार परिवार को हमेशा जलील करते रहेंगे ” कहते हुए दुकानदार के चेहरे पर उनकी बेटी के लिए घृणा के भाव साफ़ नज़र आ रहे थे।
दुकानदार के मुंह से अपने हंसते खेलते परिवार की दुर्दशा की बात सुनकर मालती फूट-फूट कर रोने लगी। वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती थी, उसके एक गलत फैसले ने उसके साथ ही उसके परिवार का जीवन बर्बाद कर दिया था,

वह अपने परिवार की सबसे बड़ी गुनहगार थी, जिसने उनका अनादर करके जिल्लत भरी जिंदगी जीने के लिए मजबूर कर दिया था, उसे उसके कर्मों की ही सजा मिल रही थी,शायद उसने बेटी होने का फर्ज अदा नहीं किया बेटी की विदाई करके उसके मां बाप भाई उसको खुश देखना चाहते है

वह इतनी अंधी हो गई कि उसे कुछ दिखाई ही नहीं दिया, उसने यदि अपने पिता भाई मां की बातों का उल्लघंन ना करके उसे समझा होता तो शायद आज उसकी जिंदगी के साथ उसके अपनों की जिंदगी भी खुशहाल होती,आज तो वह अपने पिता भाई परिवार की इज्जत को तार-तार करके उनके लिए कभी ना मिटने वाला एक बदनुमा दाग बन चुकी है,

मालती फूट-फूट कर रोते हुए टैक्सी की ओर वापस आकर उसे वापस अपनी नर्क बन चुकी ससुराल की ओर जाने के लिए निकल पड़ी उसके लिए शायद अब और कोई ठिकाना नहीं बचा था। वह दुकानदार मालती को फूट-फूट कर रोते हुए टैक्सी में वापस बैठकर जातें हुए हैरानी से देख रहा था।
 

बदनुमा दाग ( भाग 3)

बदनुमा दाग ( भाग 3)- माता प्रसाद दुबे : Moral stories in hindi


माता प्रसाद दुबे
मौलिक स्वरचित अप्रकाशित कहानी लखनऊ

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