बदलाव – डॉ संगीता अग्रवाल

निशा की शादी विवेक से बड़ी धूमधाम से हो गई थी।निशा के पिता ने मुक्त हस्त पैसा लुटाया था,वो खुश थे कि उन्हें विवेक जैसा हैंडसम,काबिल और अमीर दामाद मिला था।कितनी बड़ी कंपनी में कार्यरत था वो और घमंड उसे छू तक नहीं गया था ,तभी तो उन्होंने उनकी निशा जैसी लड़की को जो कद में सामान्य और रंग में सांवली थी, उस लड़की को भी स्वीकार कर लिया था।

“हमारे कोई पिछले जन्म के कर्म उजागर हुए हैं निशा की मां!”वो प्रफुल्लित होते बोले थे अपनी पत्नी से।

“अभी लौट के तो आने दो बेटी को,वो बताएगी,तभी दिल को राहत मिलेगी मुझे तो जी!”वो गहरी सांस छोड़ते बोली।

“तुम औरते भी बहुत शक्की होती हो!”वो हंसते हुए बोले।

दो एक दिन में निशा आ गई।उसके खिले चेहरे,मुस्कुराती आंखों ने उसके दिल के भेद खोल दिए थे और पिता ने विजय भाव से उसकी मां को देखा था जिसका मुस्करा कर उसने अनुमोदन भी किया था।

निशा,कुछ दिनो बाद,हंसीखुशी ससुराल लौट गई थी।

विवेक की असलियत बहुत जल्दी निशा के सामने आ गई।शादी का खुमार उतरते ही वो निशा को कभी उसके छोटे कद पर तो कभी रंग पर जलील करने लगा।

आज विवेक के कुछ दोस्त शाम की चाय पर आने वाले थे।निशा को खास हिदायत थी विवेक की कि वो अपना चेहरा बहुत कम दिखाएगी लोगों को,उसके दोस्तों को सर्व उसकी मेड कर देगी।

निशा ने,उसकी बातों को दिल से न लगाते हुए,काफी सारी चीज़े तैयार कर ली थीं।घर की डेकोरेशन से लेकर,नाश्ता पानी सब लाजबाव था।

उसके दोस्त, राहुल,आकाश,उदित और संजय बहुत खुश थे।ये सब किसने बनाया?कैसे किया?

विवेक ने बहाना बना दिया था कि निशा की तबियत ठीक नहीं है और वो लोगों से बहुत ज्यादा मिलना जुलना पसंद नहीं करती है,इसलिए अंदर लेटी है।

पर राहुल मचल गया,यार!ऐसा भी क्या!एक बार तो भाभी से मिलवा हमें, हालचाल ही पूछने दे उनका।

हार कर,विवेक को निशा को बुलाना पड़ा।

सकुचाती हुई वो आई थी बाहर,पति से मिली उपेक्षा ने उसका उत्साह तो ठंडा किया ही था,साथ में एक डर भी था कि कहीं उसके दोस्त भी उसका मजाक न उड़ाएं।

चारों हो दोस्त बड़े प्यार से मिले थे उससे।विवेक को गुस्सा आ रहा था,वो चाहता था कि निशा जल्दी से अंदर चली जाए।उसकी हड़बड़ी देख कर राहुल बोला,”देख रहा हूं, तू भाभी को लेकर बड़ा पजेसिव है,हमसे बात तक नहीं करवाना चाह रहा,ऐसा क्या?”

नहीं!नहीं!ऐसा कुछ नहीं,वो हड़बड़ा गया।

वो लोग बहुत प्रभावित थे निशा से,””भाभी!आप इलेक्ट्रॉनिक्स में बी टेक हो,थापर में जॉब भी किया आपने?”

ये खाने का सब सामान आपने घर में तैयार किया?राहुल के हाथ से प्लेट छुटने को हुई।

“तो इसमें क्या बड़ी बात है?”

विवेक घमंड से बोला,”घर में रहेगी तो ये भी नहीं करेगी क्या?”

वो सब अवाक रह गए,ये कैसा व्यवहार कर रहा है भाभी से?इसने आजकल की लड़कियां देखी नहीं क्या?

लौट गए थे सब उस दिन लेकिन मन ही मन,विवेक की इज्जत बहुत कम हो गई थी उनके दिमाग में,विवेक को भी पहली बार महसूस हुआ,शायद वो निशा के लिए गलत सोच रखता है पर अपने पुरुष अहंकार में उसने, उस बात को ज्यादा महत्व न दिया।

समय बीतता गया।एक बार,महामारी के चलते, छंटनी हुई और विवेक की नौकरी उसकी भेंट चढ़ गई।

अब वो सारे दिन घर रहता,जगह जगह नौकरी ढूंढता पर बहुत कम रुपय देख वो अस्वीकार कर देता।

घर के खर्चे वैसे ही चलते रहे,उसे आश्चर्य था कि मैं निशा को कुछ देता नहीं पर ये सब कैसे मैनेज कर रही है।

एक दिन उसने पूछ ही लिया था उससे,”सुनो!तुम पर ये पैसा कहां से आता है?”

बहुत झिझकते हुए बताया था निशा ने,”मेरा दिल नहीं लगता था तो मैं कुछ ऑन लाइन ट्यूशंस कर रही थी,कुछ लिख लेती हूं मैगजीन्स और दूसरी जगह,उसकी आय हो जाती है,बस उसी से चल रहा था।”

वो भौचक्का होकर उसे देखता रहा,”क्या सादगी है इसके सांवले रूप रंग में,अहंकार इसे छू के भी नहीं गया और एक मैं हूं..इसे कभी समझा ही नहीं।”

उसने निशा को अपने करीब खींचा,उसका हाथ पकड़ा और प्यार से उसे चूम लिया,”मुझे माफ कर दो निशु!तुम बहुत अच्छी हो,सोने जैसे उजली, मैं ही अपने घमंड में तुम्हारे गुण नहीं देख पा रहा था।

दोनो बहुत देर तक लिपटे रोते रहे,तब तक जब तक,विवेक का सारा अहंकार आंसू में घुल कर बह न गया।

समाप्त

डॉ संगीता अग्रवाल

वैशाली,गाजियाबाद

#घमंड

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!