बारात – मंजू तिवारी

जब बच्चा जन्म लेता है चाहे वह बेटी के रूप में हो या बेटे के रूप में उसी दिन से अगर बेटी है तो एक पिता अपनी बेटी के लिए धन जोड़ने लगता है उसे बेटी की बारात की बड़ी फिक्र रहती है कई सालों तक वह उसके अच्छे से विवाह संपन्न होने के लिए बड़ा परिश्रम करता है साथ में अपनी बेटी को शिक्षित भी करता जाता है। अब आप अनुमान लगाइए बेटी के पिता पर कितना बोझ होता है जो सत्य है कि उसको तो अपनी बेटी पढ़ानी भी है और उसके लिए विवाह करने के लिए व्यवस्था भी करनी है जिसमें बहुत सारा धन लगता है लेकिन वह खुशी-खुशी इस व्यवस्था को करता है कर्ज भी लेता है और बेटी को सक्षम भी बनाता है जब वही बेटी सक्षम बन जाती है अपने मन से जीवनसाथी का चुनाव करती है और कोर्ट में जाकर शादी कर लेती है तो उस पिता की व्यथा को समझने की प्रयास करिए अगर वह शहरी क्षेत्र में रह रहे हैं तो कोई बात नहीं ,,,थोडा बहुत सुनना तो यहां भी पढ़ना पड़ता है लेकिन ग्रामीण क्षेत्र की बेटी अगर इस तरह से कदम उठाती है तो बहुत सारी बेटियों का भविष्य प्रभावित हो ही जाता है लोग बेटियों को बाहर भेजने से कतराने लगते हैं।

यदि बेटी सक्षम भी नहीं है फिर भी उसने यह कदम उठा लिया और ग्रामीण क्षेत्र की है तो अपने साथ-सथ बहुत सारी बेटियों की शादी उम्र से पहले ही कर दी जाएगी गांव का समाज संगठित होता है। गांव में भागी हुई बेटी या अपनी मनपसंद से अपनी जाति में या दूसरी जाति में विवाह करने पर माता-पिता भाई का जीना दूभर हो जाता है। पिता चार लोग में बात करने लायक नहीं रहता है भाई को भी ताने सुनने पड़ते हैं। धीरे-धीरे वह समाज से कटने लगते हैं।

 बेटी तो अपने मनपसंद लडके से शादी करके चली जाती है लेकिन वे उस बेटी से सदा के लिए रिश्ता खत्म कर देते हैं। बेटियो पर भी नैतिक अधिकार उनके माता-पिता का है। क्योंकि उन्हीं की वजह से तो आप सक्षम हुई हो आपकी मर्जी से की हुई शादी में कोई परेशानी आती है तो आपके लिए आपके माता पिता का घर हमेशा के लिए बंद हो जाता है। माता पिता की याद सदा सभी को आती है उम्र के किसी न किसी पड़ाव में जरूर आएगी तब सिर्फ पछतावा होगा




जब बेटी की बारात द्वार पर आती है तो पिता भाई का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। खुशी-खुशी भाई और पिता हर संभव प्रयास करते हैं कि बारात की आवभगत और मेरी बेटी के विवाह में कोई कमी ना रह जाए मेरी बेटी को सुनना ना पड़े,,, यह बात बेटियों के लिए भी बड़ी  होती है कि उनकी बारात आई हजारों लोग उसके विवाह के साक्षी बने बेटियां बड़े गर्व से कहती हैं जब कोई उन्हें परेशानी आती है या उन्हें उसके हक से वंचित किया जाता है तब वह डंके की चोट पर बोलती हैं।

मैं कोई अपने आप से भागकर नहीं आई हूं हजारों लोगों के साथ बारात लेकर मेरे घर गए थे तब मैं आई हूं।

इस विवाह में आपको भावनात्मक साथ मिलता है अगर कोई परेशानी आती है तो आपके माता-पिता आपके साथ खड़े होते हैं आसान नहीं है कि आपके साथ गलत कर जाएं सामाजिक दवाव होता है मैं यह नहीं कहती इस तरह की शादियों में परेशानी नहीं आती  है लेकिन आपको सपोर्ट भी मिलता है। आपके माता-पिता के घर के दरवाजे आपके लिए सदा खोले होते हैं।,,,,, वही आपकी अपनी मर्जी से कोर्ट में की हुई शादी मैं यह विकल्प मौजूद नहीं होता कि आप अपने घर वापस लौट पाएंगी

 बिना माता-पिता के जिंदगी भर एक बेटी तड़पती रहती है वही तड़प उन मां-बाप की होती है जिनकी बेटियां इस तरह के कदम उठाती हैं क्योंकि उनका खून का रिश्ता होता है दोनों के ही दिल रोते रहते हैं आवेश में इस तरह के कदम तो उठा लेती हैं लेकिन पछतावा होता ही होता है।

बेटों को भी अपनी बारात ले जाने के हक से पिता को परिवार जनों को कभी भी वंचित नहीं करना चाहिए क्योंकि जब बेटा बहुत छोटा होता है तभी मां उस को दूल्हा बना कर देखती है कैसा लगता है कभी उसके लिए सेहरा खरीदती है। घर वालों को भी पता होता है कि मेरे बेटे के लिए किस तरह की दुल्हन चाहिए वह यथासंभव प्रयास करते हैं । मां बेटे की दुल्हन के लिए सपने सजाती हैं। बहन के भी बहुत अरमान होते हैं। भारतीय माताएं  बेटे के बचपन से ही उसकी दुल्हन की कल्पना करने लगती है। पाई पाई जोड़ कर बेटे की दुल्हन के लिए जेवर बनाती है।




बेटे के हिसाब से ही उसके लिए दुल्हन का चयन करते हैं। 

बेटा अपने मनपसंद से कोर्ट में शादी करके माता-पिता परिवार जन के अरमान  जो बरसो सजाए बहू के लिए जेवर बनवाए उन्हें पल भर में तोड़ देता है।,,, आप समझदार हो बालिग हो सक्षम हो,,, लेकिन माता-पिता की भावनाएं तो आपके लिए अमूल्य है उन्हें थोड़ा समझने का प्रयास करना चाहिए

मैं यहां प्रेम विवाह का विरोध नहीं कर रही हूं समस्याएं किसी भी विवाह में आ सकती है। 

 अगर आप प्रेम विवाह करते हैं तो अपने माता-पिता को मनाइए आखिरकार वह तो आपके माता-पिता हैं मान ही जाएंगे जब आप उनसे विरुद्ध जाकर विवाह कर लेते हैं दो-चार 10 साल में वह आपको माफ कर देते हैं क्यों ना उन्हें मनाया जाए उनकी रजामंदी से विवाह किया जाए,,,,

 ऐसा ही मैं बेटियों के लिए कहना चाहूंगी बेटियां अच्छे से नई बुलंदियों को छुएं अपने कैरियर पर फोकस करें

 आपके माता-पिता को बखूबी पता है कि आपके लिए किस तरह का योग्य वर चाहिए यदि आपको कोई पसंद भी है तो एक बार अपने माता-पिता से रजामंदी जरूर ले मान जाएंगे अगर नहीं भी मानते हैं तो थोड़ा उन्हें समय देना चाहिए आखिरकार हां कर देंगे,,, 

आप उन्हें मनाएंगे तो वह समाज के सामने कोई ना  कोई ना कोई कारण बताकर आपकी शादी को रजामंदी दे देंगे

 कई माता-पिता जो इस तरह की शादी करवाते हैं कहते सुने  है। आजकल के बच्चे मानते कहां है इसलिए मैंने इनकी मर्जी की शादी में हां कर दी वे खुश तो हम भी खुश,,,

कहीं बच्चों ने कुछ कर लिया तो हम जीकर क्या करेंगे मेरे बच्चे सदा सुखी रहे इसलिए मैंने इनकी मर्जी में ही अपनी मर्जी समझी,,,

जिस अग्नि को साक्षी मानकर वर और वधू फेरे लेते हैं उसमें जो मंत्रों का उच्चारण होता है जो वचन दिए जाते हैं वह आज भी ग्रस्त जीवन को चलाने के महामंत्र है। कल भी महामंत्र रहेंगे 

हमारे सनातन पद्धति में जब विवाह होता है तो ना उसमें वधु को छोटा दिखाया जाता है न बर को छोटा दिखाया जाता है कभी फेरों में वर आगे होता है तो कभी बधू आगे होती है। दोनों का महत्व बताया गया है।

 कोर्ट में जाकर सिग्नेचर करने वाली शादी में ना हमारे माता पिता का आशीर्वाद होता है ना ग्रस्त जीवन का मूल मंत्र देने वाले वचन होते हैं ऐसे विवाह कागज के एक सिग्नेचर से आसानी से टूट जाते हैं।




 माता-पिता द्वारा कराए गए विवाह में यह नहीं कहा जा सकता कि नहीं टूटेगा लेकिन टूटने की गुंजाइश थोड़ी सी कम होती है अगर टूट भी गया तो बेटी के पिता भाई साथ खड़े होते हैं जबकि कागज पर सिग्नेचर करने वाले विवाह में यह सुविधा नहीं है घर के दरवाजे भी बंद होते हैं बेटी के लिए,,,,, बेटे के लिए तो घर के दरवाजे माता-पिता खोल ही देते हैं लेकिन बेटियों को यह सुविधा प्राप्त नहीं है।

इसलिए मैं बेटियों से कहना चाहती हूं कि आपने बेटी का जन्म लिया है आप बहुत महत्वपूर्ण हो अपने भाइयों पिता के लिए आप की बारात आपके द्वार आएगी और दूल्हे राजा आपको जब लेने आएंगे हजारों लोगों के साथ यह आपके लिए गर्व की अनुभूति है।

आपकी बारात में हजारों लोग बाराती बनकर आपके दरवाजे पर दूल्हे के साथ लेने आए थे यह बात आपके लिए जिंदगी भर फक्र की रहेगी

 आपके पिता और भाई का सीना सदा चौड़ा रहेगा,,,,,, कोई गलत कदम उठा कर जिंदगी भर आपको यह पछतावा ना करना पड़े काश मेरी भी बारात आती,,,,,, हजारों बारातियों के साथ मैं अपनी नई जिंदगी में कदम रखती जिसमें मेरे माता-पिता सास-ससुर का आशीर्वाद होता,,,, नहीं तो एक बेटी के लिए चारों तरफ के दरवाजे बंद होंगे अगर आप आर्थिक रूप से सक्षम भी है तब भी बिना माता-पिता के अकेली ही होंगी 

सिर्फ पछतावा ही रह जाएगा सिर्फ पछतावा,,,, बारात आने का और बारात ले जाने का हक बेटा और बेटी दोनों को ही अपने माता-पिता  देना चाहिए

काश मैं भी घोड़ी चढ़ता,,,, मेरी भी बारात की निकासी होती,, मैं भी बारात के साथ अपनी दुल्हन को लेने जाता,,, मेरी भी दुल्हन  बारात का इंतजार करती काश काश काश,,,,

काश मेरी भी बारात आती,,,, घोड़े पर चढ़कर मेरा भी दूल्हा आता ,,, और मैं पिता के घर से पिया के घर तक सभी के आशीर्वाद के साथ डोली में बैठकर जाती,,, काश काश काश,,,,,,, 

बेटे और बेटियों के लिए प्रश्न विचारणीय है। यह मेरे व्यक्तिगत विचार है। आप की महत्वपूर्ण टिप्पणी का इंतजार है। अपने विचार अवश्य बताएं,,,,

#पछतावा

प्रतियोगिता हेतु

मंजू तिवारी गुड़गांव

स्वालिखित, मौलिक रचना

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