असली रंग –  डॉ  संगीता अग्रवाल

विभा  बिलकुल तैयार नहीं थी आकाश से शादी करने के लिए क्योंकि वो उससे उसकी क्लास वन जॉब छोड़ने पर जोर दे रहा था और साथ ही तर्क ये से रहा था कि हमारे घर में लड़कियां शादी के बाद जॉब नहीं करतीं,घर संभालती हैं,पैसा तो जितना भी आ जाए, कम ही लगता है,

हपस की खोपड़ी कभी भरती नहीं है।विभा के मां बाप,आकाश की ये दलील सुनकर निहाल थे कि ऐसा दामाद चिराग लेकर भी ढूंढे तो न मिलेगा,बस यही वजह थी कि विभा की शादी आकाश से करा दी गई और उसने अपनी पी सी एस की स्थाई जॉब छोड़ दी ,एक बैंक अधिकारी के लिए।

शादी बाद,विभा को अकेलापन खलने लगा,उसने आकाश को मना लिया दोबारा जॉब करने के लिए।थोड़ी बहुत नानुकर के बाद उसने सहमति दे दी।

विभा,आकाश के साथ,पास के इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रोफेसर के इंटरव्यू के लिए गई।उसके शैक्षिक सर्टिफिकेट्स,प्रोफाइल बहुत मजबूत थी,शानदार इंटरव्यू हुआ लेकिन उसका सिलेक्शन नहीं हुआ।

आकाश ने उसे बाहों में भरते हुए कहा, “जानू!तुम्हें क्या कमी है, मैं हूं ना।”

विभा को अटपटा लगा पर उसके प्यार में भूल गई सब बात वो।कुछ समय बाद,फिर वो एक इंटरव्यू में जाने लगी।आकाश ने ज़िद की कि वो भी संग जायेगा।

इस बार भी पिछली बात दोहराई गई,विभा का 

आत्मविश्वास डगमगाया था इस दफा।”क्या वाकई में कंपटीशन बहुत है, मै सब कुछ भूल रही हूं?”जैसा आकाश मुझे लगातार समझा रहे थे।

तीसरी,चौथी बार जब ये प्रक्रिया दोहराई गई तो विभा बौखला गई।सिलेक्शन कमेटी ने उससे उसे क्या सब्जेक्ट देने हैं,ये तक डिस्कस कर लिया और सिलेक्शन उसका नहीं हुआ।

“दाल में कुछ काला तो जरूर है”सोचते हुए विभा ने कॉलेज ऑफिस में फोन लगा दिया और वो जानकर हतप्रभ रह गई कि सिलेक्शन तो उसीका हुआ था लेकिन उसके पतिदेव ने साफ मना कर दिया था उन लोगों को कि उनकी पत्नी इतनी कम सैलरी पर वहां काम न करेगी।

विभा भोंचक्की थी,तो आस्तीन का सांप उसका अपना पति ही था जो हर बार उसकी नौकरी की राह में रोड़े अटका रहा था और साथ ही अपनी पत्नी का विश्वास तोड़ रहा था।

घेर लिया था उसने आज आकाश को उसके ऑफिस से लौटते ही,”तुम क्या समझते थे कि मुझे पता नहीं चलेगा तुम्हारी करतूत?”

“क्या हुआ जानू?”,भोले बनते हुई बोला।

विभा उसे देखती रह गई,,कितना नाटकबाज है ये आदमी,अभी कल  ही जब मैंने इससे कहा था कि सारी दुनिया मेरे गीतों की दीवानी है और तुमने मुझसे कभी कुछ सुना ही नहीं,ये कह रहा था,”अपनी गजल से भी कोई गजल सुनता है भला?”

आज ये फिर नाटक कर रहा है,अब और नहीं सहूंगी,विभा चिल्लाई,”एक्टिंग मत करो आकाश! मैं तुम्हारी सच्चाई जान चुकी हूं,तुम आस्तीन के सांप हो,तुम ने छुप के वार किया है मुझपे,लेकिन अब मैं ये सब नहीं चलने दूंगी।मैंने जॉब ज्वाइन कर ली है कल वाली।”

आकाश,विभा को कमरे में जाते हुए देखता रह गया,वो अब कुछ नहीं कर सकता था क्योंकि विभा ने अपना अधिकार इस्तेमाल कर लिया था।

 डॉ  संगीता अग्रवाल

वैशाली,गाजियाबाद

#आस्तीन का सांप

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