धोखा आपको कब ,कौन और कहां दे जाए,..कुछ नहीं पता होता।…परायो से मिले धोखे को इंसान एक बार सहन भी कर लेता है पर धोखा देने वाला जब अपना कोई हो तो बड़ा असहनीय हो जाता है।
आज मैं एक सच्ची घटना को कहानी के रूप में आप सबके सामने प्रस्तुत कर रही हूं जिसमें सिर्फ पात्रों के नाम बदले हैं, बाकी कहानी पूरी तरह सत्य घटना पर आधारित है, जिसकी मुख्य गवाह मैं खुद हूं,..तो कहानी कुछ इस प्रकार है….
“घनश्याम जी बेहद सुलझे, थोड़े गुस्सैल लेकिन बेहद मेहनती व्यक्ति थे। परिवार में पत्नी लताजी के अलावा तीन बच्चे(दो बेटे और एक बेटी) ही थे।”छोटा सा हंसता खेलता सुखी परिवार था।….सब कुछ ठीक चल रहा था की एक बीमारी के कारण पेट में उठने वाला भयंकर दर्द उन्हे बहुत परेशान करने लगा।..
दर्द में जल्दी आराम आ जाए इसलिए उन्हें एक इंजेक्शन दिया जाता था।.. हफ्ते में दो-तीन बार, दर्द उठने पर, घर के पास ही रहने वाले डॉक्टर की सलाह पर इंजेक्शन घनश्याम जी को लगने लगा था।
पर तब घनश्याम जी को नहीं पता था कि यह कितना घातक हो सकता है। “इंजेक्शन लगाने के बाद दर्द में तो राहत मिलती ही थी साथ मे नींद भी बड़ी अच्छी आती, एक खुमारी सी रहती थी पूरा दिन।”..
अब दर्द हो ना हो, पर घनश्याम जी को इंजेक्शन की ऐसी लत लगी कि वह अब कई कई इंजेक्शन रोज़ लगाने लगे, फिर धीरे-धीरे संख्या बढ़ती चली गई और नौबत यहां तक आ गई की घनश्याम जी को डॉक्टर से भी लगवाने की जरूरत नहीं पड़ती थी, अब वो खुद ही लगाने लगे।पहले दोनों हाथों में, फिर दोनों पैरों में भी नशे के इंजेक्शन लगाने लगे।
पूरा शरीर इंजेक्शनों के निशानों से बिंधा पड़ा रहता।खुद भी नशे की हालत में बेसुध रहने लगे।
पत्नी ने बहुत समझाने का प्रयास किया,बच्चे बेचारे छोटे ही थे, तो ना तो वह कुछ कह सकते थे और ना ही उन्हें उस समय इतनी समझ थी। घर के हालात भी दिन-ब-दिन बदतर होते जा रहे थे।..खाता पीता परिवार था, रुपए पैसे की कमी तो नहीं थी पर इतने महंगे इंजेक्शन दिन में 15-20 लगाते थे। कमाई कुछ रही नहीं तो पहले जमापूंजी समाप्त हुई और फिर जेवर तक भी गिरवी रखने पड़े।”बच्चों की पढ़ाई का खर्चा , खाने पीने का खर्चा भी मुश्किल से ही पूरा हो पाता,”शारीरिक और मानसिक रूप से अपना संतुलन खो चुके घनश्याम जी को नशे की लत ने बुरी तरह जकड़ लिया था।
लता जी 12वीं पास महिला थी, उन्होंने किराए पर कुछ कमरे दे रखे थे,तो किसी तरह बच्चों का गुजर-बसर चल रहा था। झोलाछाप डॉक्टर के गलत उपचार की वजह से आज एक परिवार बरबाद होने की कगार पर आ गया था। घनश्याम जी को भी ग्लानि होती, पर आदत इतनी लग चुकी थी कि अब सिर्फ “नशा मुक्ति केंद्र” ही आखरी उपाय रह गया था। घनश्याम जी के बड़े भाई ने भी बहुत समझाया की ये आदत छोड़ दे, लता जी ने भी उन्हें बच्चों का वास्ता देकर किसी तरह बहला-फुसलाकर अस्पताल में भर्ती तो करा दिया, पर इलाज के दौरान नशा ना मिलने से वो बैचेन और हिंसक हो गए, उन्हें बांधकर रखा जाने लगा तो चीखते चिल्लाते।
एक बार मौका देखकर अस्पताल से भाग निकले।लताजी वाहनों से भरी सड़क पर दौड़ते हुए घनश्याम जी के पीछे पीछे भागी जा रही थी। किसी तरह उन तक पहुंच पाई। घनश्याम जी को भी आज बहुत दुख हो रहा था, उनकी एक गलत आदत से उनका पूरा परिवार बिखर गया था, बच्चो के मासूम चेहरे याद आने लगे।
घनश्याम जी ने बहुत पहले जमीन खरीदी थी।जिस की रजिस्ट्री बाकी रह गई थीं। उन्होंने अपने बड़े भाई को बुलाकर जमीन के कागज उनके हाथ में देकर कहा “आप इस जमीन को लता के नाम करा दो,”
“कल को अगर मुझे कुछ हो जाए तो मेरे बीवी बच्चों को किसी के सामने हाथ ना फैलाने पड़े, गुजर बसर आराम से हो जायेगी। ये कहकर उन्होंने पेपर अपने बड़े भाई के हाथो में सौंप दिए। पर ईश्वर की ऐसी कृपा हुई की घनश्याम जी ने अच्छे इलाज और मानसिक बल से नशे की आदत से मुक्ति पा ली।
कुछ समय बाद वो अपनी पत्नी के साथ जमीन देखने गए और अचंभित रह गए, जब देखा वहा उनकी भाभी यानी बड़े भाई की बीवी के नाम का बोर्ड लगा है। पता चला ये जमीन लताजी के नही बल्कि उन्होंने अपनी बीवी के नाम करा दी थी।
“बड़ा भाई जिसपर उन्होंने इतना भरोसा किया, उस बड़े भाई को बिलकुल भी लज्जा ना आई, मृत्यु के द्वार पर पहुंचे हुए अपने सगे छोटे भाई के साथ कोई इतना बड़ा धोखा भी कर सकता है, सोचते हुए भी घृणा हो रही है।
मान लो अगर घनश्याम जी को कुछ हो जाता तो उनके बीवी बच्चों का क्या होता? इतना बड़ा विश्वासघात, इतना घिनौना धोखा बाद में पता चलता तो लता जी और उनके बच्चो का भविष्य क्या होता।… “कैसे कैसे धोखेबाज इस दुनिया में भरे हुए है। कैसे कोई अपने सगे भाई के साथ भी इतना बड़ा धोखा कर सकता है। यकीन नही होता।…
बस कुछ पंक्तियां याद आ रही है….
“गैरो से बद्तर होते है वो,
जो अपनो को ही धोखा देते है”
#धोखा
स्वरचित
कविता भड़ाना