मैं बहू से माफी मांग लूँगी.

देख रहे हो अपनी बहू को…. इस घर में आये हुए 7 साल होने को आयें उसे ….. मजाल है कभी समय से उठी हो …. सूरज सर पर आ जाता है…. सुबह की चाय भी मैं ही बनाके पिलाती हूँ तुम्हे …. तुम जब दफतर ज़ाते थे…. देखते थे 4 बजे ही उठ ज़ाती थी मैं … बच्चे स्कूल ज़ाते थे… तो समय से पहले ही उनका खाने का डब्बा तैयार कर देती थी….

ये महारानी तो अपने पति ,,मेरे पूत को,,,भी बिना खाना दिये ही भेज देती है …. वो भी जोरू का गुलाम है … मजाल है कभी डांटा हो उसने अपनी पत्नी को…. तुम होते तो मेरी खाल उतार देते… हां नहीं तो….. आजकल की बहुएं सर चढ़ गयी है …. कोई देसी पकवान नहीं बनाती…. पूरे दिन फ़ोन से चिपकी रहती है ….

आज तक मेरे पांव ना दबाये इसने… चाहे इसके सामने कितने भी पैर पकड़े रोती रहूँ मैं ……. एक मैं थी तुमायी अम्मा के घंटो तेल से मालिश करती….. जब तक हाथ भर भर आशीर्वाद ना दे देती….. तब तक ना उठती… चाहे कितनी भी थकी हूँ….

तुम भी तो जब नौकरी से महीनों के बाद आतें तो मेरे पास ना आकर अम्मा बाऊ जी के पास ही बैठ ज़ाते… उनकी खैर खबर लेते… दूसरी तरफ तुम्हारा लाल अपनी जोरू के पास ही जाता है आतें ही….. मन तो कर रहा मेरा…..

आज देविका जी का गुस्सा सांतवे आसमान पर था….

भाग्यवान अब चुप भी करो… अगर बहू ने सुन लिया ना तो तुम्हारी खैर नहीं…. इतनी जोर जोर से चिल्ला रही हो… सो रहे है सब…. आवाज साफ जा रही होगी….

देविका जी के पति प्रनव जी बोले…..

तो क्या मैं किसी से डरती हूँ….. सास हूँ… डरना हो तो वो डरें …. मैं ना डरती किसी से…. मेरा घर है ये….

हां नहीं तो….

माँ कितनी देर से चिल्ला रही हो आप… आज संडे है …. आज तो सोने दो…. मैं सोचा अब चुप हो ज़ाओगी…. आपकी रोज रोज की सुबह की महाभारत से तो हम परेशान हो गए है …. इसलिये मैने और उर्मिला ने फैसला किया है कि अब इस घर में नहीं रहेंगे हम …

बाहर घर देख लिया है किराये पे ,,वहीं जा रहे है कल से रहने… रहना आप आराम से इस बड़े से घर में …. पापा आपको चलना हो तो चल सकते है …… आपको सफाई देने की ज़रूरत महसूस नहीं होती मुझे माँ ….. अब चिल्लाना मत माँ…. मुन्नी को रात  से बुखार है …. रात को उल्टी कर थोड़ी देर पहले ही सोयी है ….

बेटा राजन और बहू देविका जी के सामने खड़े थे….

माँ जी… कोशिश बहुत की कि ये घर ना छोड़ना पड़े…. पर आपने मजबूर कर दिया है ये कदम उठाने पे….

बहू उर्मिला सुबक रही थी…

चलो उर्मिला अब… तैयारी करनी है जाने की…. आज़ ही सामान ले जाना है …..

राजन उर्मिला का हाथ पकड़ कमरे में चला गया….

लो चला ली ना तुमने देविका अपनी ही गर्दन पर छुरी…. जो दो रोटी चैन की मिल रही थी हमें वो भी बंद करा दी…… बेचारी बहू के दो दो छोटे छोटे बच्चे है … रात भर जागती है वो… नहीं उठ पाती सुबह ….. उठने के बाद तो चकरघिन्नी सी घुमती है वो…. आज तक अपना एक कपड़ा भी तुमने अपने हाथ से धुला है जबसे बहू आयीं है ….. एक कप चाय क्या अपने हाथ से बना लेती हो सुबह … पूरे दिन वही गाती रहती हो…. राजन समझता है बहू को…. वो भी जानता है उर्मिला अपनी जगह सही है …… उसके ऑफिस में कैंटीन है … खाना खा लेता है वहां तो क्या बुराई है …. समय के साथ तुम नहीं बदली देविका …. मैं तो सोच रहा मैं भी …..

प्रनव जी पत्नी से बोले जा रहे थे…..

तो क्या आप भी मुझे छोड़के बहू बेटे के साथ चले जाओगे…..

देविका जी की आँखों में आंसू भरे थे….

नहीं… सोचा तो था… पर पत्नी का साथ देना पति का धर्म है …. इस हाल में तुम्हे बुढ़ापे में छोड़कर नहीं जा सकता…. .

जी मैं बहू से माफी मांग लूँगी…. उन्हे कहीं नहीं जाने दूँगी…..

कैसे रहूँगी अपने बच्चों के बिना… पहले ही समझा देते मुझे आप ये बात तो…..

दरवाजे के पीछे खड़े बहू बेटे देविका जी से आकर चिपक गए….

हम कहीं नहीं जा रहे माँ… हम क्या आपके बिना रह पायेंगे….

जा बहू तू मुन्नी को देख….. मेथी का साग मैं काट दूँगी ….

प्रनव जी गर्दन पर हाथ रख इशारे में बोले…. गर्दन पर छुरी चलने से पहले बचा ली तुमने देविका…..

मीनाक्षी सिंह की कलम से

आगरा

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