आज भी बिलकुल नहीं बदली
नब्बे के दशक ,वाली मेरी सखियाँ
आज भी यादें सहेजे नजर आयी
जैसे पलकों तले ,सहेजी गयी अखियाँ
आज भी सखियों को मैंने मासूम पाया
जैसे स्कूल काॅलेज का, बीता वक्त लौट आया
आज भी वो स्वभाव से शरारते करती नजर आयी
जैसे फिर जी रही हैं बचपन,और अल्हड़ तरुणाई
आज के दौर में सखियाँ समय के साथ चलती जाती हैं
माँ,बहू,पत्नी बेटी के किरदार सभी निभाती हैं
आज मन ने सब किरदारों से बीता हुआ समय मांगा
एक दिन सखियों के साथ, हमने भी भूतकाल में झाँका
आज सखियो ने कुछ सुनहरी यादों की महफिल फिर सजाई
जैसे जीवन की तपती धूप में,शीतल फुहारो वाली ठंडक छाई
हर रिश्ते से निराला सखियों का रिश्ता पाया जाता हैं
दूर रहकर भी अपने अस्तित्व का अहसास पल-पल कराता हैं।
पायल माहेश्वरी।
