“क्यूं रे सुरेसवा !इन छोरियों को पढ़ा लिखाकर कलेक्टर वनावेगा क्या?टैम रहते ब्याह दे ना तो कोई दिन नाक कटवा कै हाथ मैं धर दैंगी!फिर ना कहियो अम्मा ने समझाया ना था”सुरेश की अम्मा को पोतियों का स्कूल जाना एक आँख नहीं भाता था।
सुरेश हंसकर अम्मा की बात को टालता सा बोला
“मेरे घर की शान हैं बेटियां
मेरा मान और अभिमान हैं बेटियां
इनके पंखों को परवाज़ दूंगा
इनके कदमों को रफ्तार दूंगा
इनके हौसलों को उड़ान दूंगा
इन्हें उड़ने के लिए पूरा आसमान मैं दूंगा! “
कुमुद मोहन