शुरुआत – संध्या त्रिपाठी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  :शुरू में जब मैं यहां आई ..तो ये कॉलोनी के छोटे-छोटे घर ….मेरे तो कभी पैर की उंगलियों में …कभी घुटनों में …कभी हाथ की कोहनी में… सोफे पलंग से चोट लग जाया करता था …..बाप रे इतना कन्जेस्टेड…..भौं चढ़ाते हुए शीतल ने कहा …..बहू की बात सुनकर आरती (सास) चुप रही… उसने सोचा शायद बड़े घर से आई है इसलिए इसे ऐसा लग रहा होगा….. धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य हो जाएगा…।

भाभी एक बात बोलूं ….बुरा मत मानिएगा …आप सुबह नहा धोकर ही कमरे से बाहर निकला करें ….तब तक रसोई में चाय पानी की देखरेख मैं कर लूंगी …..क्या है ना भाभी …सुबह नहा कर पूजा कर लेने से बहुत आराम हो जाता है एक तरफ से हम निवृत हो जाते हैं ….नहाने वहाने का टेंशन खत्म…. ससुराल आई ननंद शिल्पा ने भाभी शीतल से कहा….।

अरे वो क्या है ना शिल्पा दी…. मैंने शुरू से ये देखा ही नहीं… की मम्मी जी नहाधोकर रसोई में आती है इसीलिए मैं भी बस उन्हीं की तरह ….अरे कोई बात नहीं भाभी …वो मम्मी अकेली थी ना तो सब के समय को ध्यान में रखकर मैनेजमेंट करती थीं…. चलिए कोई बात नहीं जैसी आपकी मर्जी कहकर शिल्पा ने मुस्कुरा दिया ताकि …ये बात सिर्फ एक बात ही रहे कोई इशू ना बन जाए…।

कभी-कभी शीतल की गैर जिम्मेदाराना बातें और अमीर मायके का घमंड… आरती को खराब लगती थीं… पर वह सोचती नए-नए में थोड़ा सबको अपने घर (मायके) का एटीट्यूट रहता है ..धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा मैं ही सह लेती हूं …सामंजस्य लाने के लिए किसी ना किसी को तो समझदारी दिखानी ही पड़ेगी… ये सोचकर वो कभी भी किसी बात का उत्तर या सफाई देना उचित नहीं समझती….।

शाम को मोहल्ले की कुछ महिलाएं आई थी …गपशप चल रही थी शीतल चाय लेकर आई …आरती ने कहा शीतल वो गोंद वाले लड्डू भी ले आओ…. मेरी सहेलियों को खिलाओ भाई ….आज मेरा जन्मदिन जो है..

हां मम्मी जी अभी लाई …कहकर शीतल लड्डू लेने चली गई…।

अरे यार तुमने बताया नहीं कि आज तुम्हारा जन्मदिन भी है…. हम ऐसे खाली हाथ तो नहीं आते ….

खैर… जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई

…. सभी ने आरती को बधाई

दी… इसी बीच शीतल गोंद के लड्डू लेकर आई…. महिलाओं ने कहा अरे बहू तुमने भी नहीं बताया कि आज तुम्हारी सासू मां का जन्मदिन है…! और तुमने अपनी सासू मां के बर्थडे स्पेशल की क्या प्लानिंग किया है….?

शीतल अपनी आदत से मजबूर लहजे में वही घमंड झलकाते रटारटाया वाक्य दोहराई…. दरअसल मम्मी जी ने कभी अपना जन्मदिन मनाया ही नहीं.. मैंने कभी देखा ही नहीं …मैं जो इस घर में देखती आई हूं वैसा ही करती हूं ….शीतल के इस बेबाकी पूर्ण और बेरुखी बातों ने आरती को अंदर तक झकझोर दिया …..।

वो सोचने लगी कितने त्याग परिश्रम और व्यवस्थित जिंदगी गुजारा की …तब जाकर बच्चों को पढ़ाया लिखाया…. अपने शौक इच्छा ताक पर रखकर इस घर के लिए जो बन पड़ा किया और अब जब शौक पूरा करने का समय आया है तो …पहले नहीं हुआ इसलिए अब नहीं जैसे शब्दों का सहारा लेकर बहु अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ रही है…..

अरे जो पहले नहीं हुआ वो अब हो जाएगा तो क्या अनर्थ हो जाएगा….. कौन सी आफत आ जाएगी …..आज आरती ने भी चुप्पी तोड़ी और कहा…..

अरे बहू… ये क्या बात हुई …पहले तो मैंने बहुत कुछ नहीं किया ….जैसे मैंने कभी किटी पार्टी नहीं खेली …अपने पति के साथ अकेले पिक्चर देखने नहीं गई ….ऐसी न जाने कितनी बातें …..पर अब तो ये सब तुम कर रही हो ना ….आरती के कहे एक-एक शब्द शीतल को यथार्थ दिखाते हुए लज्जित करने के लिए पर्याप्त थे…।

उस पर मोहल्ले की महिलाओं ने भी कहा …हां बेटा जो शौक.. अरमान ..इच्छाएं हमने मजबूरी वश अपने समय में पूरा नहीं किया ..तो अब समय आ गया है उन्हें पूरा करने का….

और यदि… बेटा बहू या बेटी दामाद… से कोई इस तरह का पहल या सरप्राइज मिलता है तो सच मानो… बेपनाह खुशी होती है…. उन्हीं सहेलियों में से विभा ने कहा…. मैंने भी पहले कभी …बर्थडे …मैरिज एनिवर्सरी नहीं मनाया ..हमारे जमाने में इन सबका इतना चलन भी नहीं था… या ये कहें इसके लिए जेब भी इजाजत नहीं देते थे ….पर अब बेटे बहू हर साल कुछ ना कुछ नया करते हैं ….सच में विभा… अब तो हम भी शामिल होते हैं तुम्हारे जन्मदिन में आरती ने भी हां में हां मिलाया…।

बेटा कोई भी ऐसी चीज अपनाने में संकोच कैसा….? जिसमें किसी का अहित ना हो …और सिर्फ खुशी मिले …..

शीतल सभी के सामने खुद को लज्जित महसूस करते हुए बोली…. हां मम्मी जी बीते समय को तो वापस नहीं ला सकते पर…. अब समय आ गया है कुछ नई शुरुआत करने की…. कुछ अच्छा करने की….. तो चलिए आज मम्मी जी का जन्मदिन सेलिब्रेट करते हैं …….शीतल के बदले इस व्यवहार से आरती मन ही मन खुश हो रही थी

स्वरचित मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित

श्रीमती संध्या त्रिपाठी

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