संयुक्त परिवार में  बिटिया नहीं ब्याहना … – रश्मि प्रकाश 

हरीश जी और गायत्री अपनी इकलौती बेटी काव्या की शादी के लिए परेशान थे और बहुतेरे घर ,परिवार और लड़का देखने के बाद भी उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था… कहीं परिवार पसंद नहीं आ रहा था तो कहीं लड़का नहीं जम रहा था…। 

बहुत सोच विचार और खोज बीन करने के बाद एक रिश्ता हरीश जी को भा गया पर उनकी पत्नी गायत्री की एक ही रट थी जिसको लेकर सहमति बन ही नहीं रही थी… गायत्री जी की बस एक ही ज़िद्द थी जिसकी वजह से वो इस रिश्ते को भी नकार रही थीं वो बार बार एक ही बात अपने पति से कहे जा रही थी ।

“देखो जी अपनी बिटिया को मैं संयुक्त परिवार में तो बिल्कुल नहीं ब्याहने वाली… अपनी मुश्किलें देखी है मैंने…उसे मुश्किल में नहीं धकेलना मुझे…. जो भी हो चार लोगों वाले परिवार में ही  बिटिया को भेजना है ।” गायत्री ने पति हरीश से कहा 

“ कमाल की ज़िद्द किए बैठी हो तुम … अरे लड़का भाई साहब के ससुराल वालों का बहुत करीबी है… भरा पूरा परिवार है उनका अच्छा ख़ासा बिज़नेस चल रहा है…लड़का भी देखने में एक नजर में सबको भा गया है… तुम एक बार काव्या को पूछ तो लो… वो क्या चाहती है… अपनी सोच को उसपर थोपने की कोशिश सही नहीं है।”हरीश जी ने पत्नी को समझाते हुए कहा 

बहस ज़्यादा बढ़ती देख हरीश जी काव्या को कमरे में बुला कर ले लाए और उसे उसके लिए आए रिश्ते के बारे में  सब कुछ बताने के बाद उससे उसकी राय जानना चाहे…इधर गायत्री जी कुछ बोलने को हुई ही थी कि वो काव्या के जवाब से सकते में आ गई। 

“ ये क्या कह दिया तुने…जानती भी है कितना मुश्किल होगा?” गायत्री जी ने झल्लाते हुए कहा 

“ अब काव्या ने जो कह दिया वो बात फ़ाइनल समझो… और अब सगाई की तैयारी करो।” हरीश जी ने अपना फ़ैसला सुनाते हुए कहा 

“ बेटा ये फ़ैसला सोच समझ कर ही लिया है ना.. बचपन से तू देखती आ रही है संयुक्त परिवार में रह कर मैं एकदम परेशान हो गई हूँ….तू सब जानते हुए भी परेशान होना चाहती है?” गायत्री काव्या से पूछी

“ माँ..तुम जिन बातों में परेशानी देख रही हो ,मैं उसमें खुश रहने के तरीक़े देख रही हूँ… तुम ये देखती हो इतने लोगों के साथ मिलकर चलना… खाना बनाना … पर ये भी तो देखो ताई जी भी मदद कर देती है… जब तुम्हारी तबियत ख़राब हो जाती है तो सब मिलकर तुम्हारा ध्यान रखते… तुम्हें मेरी दोस्त स्नेहा याद है…

बेचारी अकेले रहती है… एक तो जॉब और फिर घर के हज़ारों काम… मेड आकर काम कर  तो जाती है पर और भी तो घर में छोटे बड़े काम होते हैं जिन्हें उसे ही करना पड़ता है…वो कहती रहती है यार अकेले थक जाती हूँ  लगता है ससुराल में सबके साथ ही रहती तो ज़्यादा अच्छा था…कम से कम लोग तकलीफ़ तो समझते…

यहाँ तो खुद ही सब करना और समझना पड़ता है। तुम भी तो चाहती हो मैं अपनी जॉब करती रहूँ…जिसके लिए  उन लोगों ने हामी भी भर ही दी है फिर सबके साथ रहकर मुझे सबको समझने का मौक़ा भी मिल जाएगा और मैं आसानी से अपना जॉब भी कर सकती हूँ।” काव्या ने कहा 

अपनी बेटी की बात सुनकर गायत्री जी ने महसूस किया कि काव्या कुछ ग़लत तो नहीं बोल रही है ….बड़ी भाभी हमेशा मिलकर ही काम करती है….चेहरे पर एक शिकन नहीं आने देती थी…शुरू शुरू में जब सब काम करने पड़े तो पहाड़ महसूस होने लगता था.. सिर घुमने लगता था….

एकल परिवार में रहने की आदत इस भीड़भाड़ को देख कर हमेशा मुझे रुला जाते… हरीश जी बहुत समझाते ….सास ससुर ने कितने जतन से अपना ये संसार संवार के रखा था जिसमें मेरी वजह से थोड़ी कलह भी हुई थी पर फिर भी सबने मुझे कभी कुछ नहीं कहा बस यही कहते थे

इतने लोगों के साथ कभी नहीं रही है इसलिए परेशान हो जाती है ….धीरे -धीरे सब ठीक हो जाएगा … सबके प्यार ने मुझे तो अपना लिया पर मैं आज भी उन्हें नहीं अपना पाई……अब मैं भी अपने परिवार के साथ प्यार से रहूँगी… काव्या के मन में भी अब परिवार के प्रति 

संवेदना,सहानुभूति, प्यार और  विश्वास की 

बातें भरनी  चाहिए ना कि अलग रहने का विचार देना चाहिए ।

गायत्री हरीश जी ने काव्या का ब्याह बहुत धूमधाम से मेहुल के साथ बड़े से संयुक्त परिवार में कर दिया।

गायत्री जी बेटी की बात समझ कर मान तो गई थी पर उन्हें अभी भी चिंता सताए जा रही थी कि जो अभी तक यहाँ बेटी थी …बहू वाली ज़िम्मेदारियों से परे….यहाँ मन मर्ज़ी से रहती थी पर वहाँ बहु बनकर ज़िम्मेदारी निभाने की बारी आई है तो पता नहीं इतने बड़े परिवार में कैसे सब कर पा रही होगी ।

गायत्री जी का ये भ्रम भी उस दिन टूट गया जब काव्या पगफेरे के लिए घर आई ।

 सब ने जल्दी आने को इतना कहा कि काव्या ज़्यादा दिन रूक ही नहीं पाई ।

काव्या को लेने  उसकी सास देवर ननद सब आए हुए थे 

गायत्री जी ने जब अपनी समधन बेटी को कुछ दिन और रोकने के लिए बात कर रही थी तब काव्या की सासु माँ ने हँसते हुए गायत्री जी से कहा ,“ बहन जी काव्या हमारे घर की बहू है…हम सब उसे इतना प्यार  और मान देंगे कि एक दिन वो आप सब को भूल जाएगी..फिर अपनी बेटी से मिलने आपको आना पड़ेगा …..अब हमारा मन हमारी बहू के बिना लग ही नहीं रहा क्या करें…इतने सालों तक आपके साथ रही है अब तो उसे हमारे साथ रहने दीजिए।”

 “ कोई भी माँ अपनी बेटी का ब्याह करते वक़्त यही तो सोचती है समधन जी की उसकी बेटी को मायके से ज़्यादा ससुराल में  मान सम्मान और भरपूर प्यार मिले… आप ने ये कहकर मुझे धन्य कर दिया ।” गायत्री ने समधन का हाथ पकड़कर कहा

जाने से पहले काव्या गायत्री को अलग ले कर गई और बोली ,“ माँ बहुत नसीब वाली हूँ मैं  और तुम भी जो हमें ऐसा परिवार मिला है… वादा करो अब आप भी कभी अपने परिवार के खिलाफ ना सोचोगी ना पापा से बोलोगी….जो हमें हमारी कमियों के साथ दिल खोलकर अपनाएँ और भरपूर प्यार दे ऐसे परिवार का साथ मिलता रहे तो कोई परिवार कभी ना टूटे… सब फिर संयुक्त परिवार में रहने का ही सोचें ।”

“ हाँ बेटा तेरी बात समझ रही हूँ ….मैं तो तेरी शादी भी अलग घर लेकर करने की सोच रही थी पर तेरी बातें सुनकर लगा एक हाथ काम करे तो थक  भी जाते मिलकर करते हैं तो जल्दी भी हो जाता है और थकान भी नहीं होती…फिर साथ रहने से एक दूसरे को समझने का मौक़ा भी मिल जाता ।” गायत्री जी ने कहा

काव्या माँ को परिवार की अहमियत बता कर अपने ससुराल चली गई ।

गायत्री जी ने भी अब सबके साथ मिलकर खुद को खुश करने का संकल्प लिया और साथ मिलकर ख़ुशी ख़ुशी रहने लगी।

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

#संयुक्त परिवार 

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