फूल ही फूल खिल गए – सीमा प्रियदर्शिनी सहाय : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : एक तरफ आए हुए फोन ने मुझे चौंका दिया था दूसरी तरफ पुरानी यादें भंवर बनकर मुझपर हावी होने लगी थी।

 मेरे बेटे शलभ ने मुझे बधाई देते हुए कहा था

“मां,तुम्हारी तपस्या पूरी हो गई।तुम्हारा बेटा जूडिशियल परीक्षा निकाल लिया है।मां अब तो गर्व है ना मुझपर।

तुम्हारे वो चांटे, वो मार…हाहा…!मुझे आखिर जज की कुर्सी पर बिठा दिया ना…!”शलभ की दुलार भरी हँसी ने मुझे हँसा दिया ।

“हाँ,हाँ।मैं हँस पड़ी।कब आ रहा है तू?”

“बस आज शाम ही तुम्हें लेने। मैं कल से मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट का कार्य भार संभालने वाला हूँ।

मेरे सभी समारोह में तुम रहोगी।तुम्हारे बिना कुछ भी नहीं मां…!शलभ की आवाज़ भर्रा गई।

उसने फोन रखते हुए कहा

“मां अब फोन रखता हूँ।”

“ठीक है बेटा अपना खयाल रखना।”

फोन रखते ही मैं पुरानी यादों में खो गई थी।

“आइए मिसेज कुमार!,प्रिंसिपल सर की तल्खी भरी आवाज ने मुझे डरा दिया था।

” मिसेज कुमार,आपके पति कहाँ हैं?”

“सर…वो टूर पर हैं इसलिए मुझे ही आना पड़ा।”

“ओके नो इशू…,आपका बेटा परीक्षा में चीटिंग करते हुए पकड़ा गया है।ओनली वन चांस…आई कैन गिव….उसके रिएक्जामिनेशन होंगे।

अगर वो पास होता है तो फिर ठीक है नहीं तो फिर आपलोग कोई और स्कूल देख लीजिए….!”

“पर…सर….!,प्रिंसिपल के लाल और तमतमाए चेहरे को देख कर मेरी आवाज लड़खड़ा गई।

सर.. वो…!”

मेरी बात काटकर प्रिंसिपल ने कहा

“देखिए मैडम, हम आपके बेटे के लिए अपने स्कूल का रुल बदल नहीं सकते।

आपको अपने आप में शर्मिंदा होना चाहिए, आपलोग किस तरह के पेरैंट्स हैं?आपका बेटा क्या कर रहा है, यह आपको पता भी नहीं रहता…आश्चर्य है…आई एम सरप्राइज्ड…!”

मैं शर्म से गड़ गई।मगर वह बोलते रहे….

अगर आपके बेटे का परफॉर्मेंस ठीक नहीं रहा तो यह हमारे स्कूल के लिए ठीक नहीं होगा।

हम अपने संस्थान के ऊपर आंच नहीं आने देंगे।

हमारे स्कूल का रेटिंग स्टार खराब होगा।

आपके पास दो महीने का टाइम है।आप मैनेज कर लीजिए।”

मैं अवाक थी।काटो तो खून नहीं।शर्मिंदगी से मेरा सिर झुक गया था।

समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ।

 शलभ को पालने में कहाँ कमी रह गई थी…!

जैसे ही मैं घर पहुंची अनिकेत का फोन आ गया।

“अनु, आ गई घर। क्या कहा प्रिंसिपल ने?”

“शलभ  एक्जाम में चीटिंग करते पकडा गया…प्रिंसिपल ने वार्निंग देने के लिए बुलाया था…!”मैं रो पड़ी।

“क्या….!शलभ ने चिटिंग किया?…आई एम टोटली एम्बैरैस्ड…! करती हो अनु तुम?अपने बेटे का ध्यान भी नहीं रख सकती…!बस तुम्हें तो अपनी ही चिंता रहती है।तुम्हारी शॉपिंग, तुम्हारी किटी…!”

“यह क्या बोल रहे हैं आप अनिकेत….!मैं और कुछ भी नहीं करती…!”मैं रोती रही।

मेरे रोने का कोई असर अनिकेत पर नहीं पडा।

उलटा उन्होंने हजारों जलीकटी बातों से मुझे छलनी कर दिया।

मैं अपने आप पर शर्मिंदा थी।तभी शलभ के आने की आहट हुई।

वह शर्मिंदा सा खड़ा था।

मैं ने प्रिंसिपल और अनिकेत दोनों का गुस्सा उसपर निकाल दिया।उसे ताबड़तोड़ पीटने लगी।

वह रोता रहा, कलपता रहा।”मम्मी मुझे माफ कर दो…!”

पर मैं रुकी नहीं।

“आने दो पापा को फिर बताती हूँ।”

यह सुन कर शलभ घबरा गया। उसने अपने आप को नॉर्मल दिखाने की पूरी कोशिश की।

तीसरे दिन अनिकेत को वापस आना था।उनके आने के पहले ही शलभ चुपचाप घर से भाग निकला।

अनिकेत के आते ही घर में अफरातफरी मच गई।शलभ के भागने की जिम्मेदारी मुझपर आ गई।

पुलिस, प्रशासन सबकी मदद के बाद शलभ एक गुमनाम रेलवे स्टेशन पर मिला।

बालसुधार गृह के अधिकारियों ने हमें सौंपते हुए कहा।

“शलभ पर किसी भी तरह का जोर जबर्दस्ती मत कीजिएगा।

उसे मनोवैज्ञानिक सहारे की जरूरत है।”

इस बड़ी घटना ने मेरे भीतर के सारे जज्बातों पर ग्रहण लगा दिया था।

शलभ ने मुझे सबके सामने पूरी तरह से शर्मिंदा कर दिया था लेकिन अब मैं बदल चुकी थी।

मैं उसे ज्यादा कहना छोड़ दिया था। बोर्ड के बाद बारहवीं में भी उसने साधारण नंबर ही लाया।

बड़ी मुश्किल से एल एलबी में दाखिला मिला।

परिवार के सारे बच्चे अच्छे पढ़ाई और नौकरी में थे।

शलभ को अब अपनी गलतियों पर पछतावा था।

वह दिन रात अपनी पढाई में जुटा रहता था।ग्रेजुएशन की पढ़ाई के साथ साथ ही उसने जूडिशियल परीक्षा की तैयारी करनी शुरू कर दिया था।

कई सालों की मेहनत के बाद आखिरकार वह दिन आ गया था जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी।

यकीन नहीं हो रहा था कि शलभ ये पद हासिल कर सकता है।

“अनु…कहाँ खोई हो?”अनिकेत के झिंझोड़ने से मेरा ध्यान टूटा।

“आज भला तुम्हारी आँखों में आँसू क्यों हैं?चलो आज शलभ के फंक्शन मे चलना है।

आज उसके ज्वाइनिंग का दिन है।जाओ जल्दी से तैयार हो जाओ।”

“हाँ हाँ…!,मैं जैसे जागती हुई बोली। और तैयार होने चली गई।

शलभ आज मजिस्ट्रेट की पोशाक में सजा हुआ मेरे सामने खड़ा था।उसे देख कर मेरी आँखों से आँसू बह निकले।

राज्यपाल ने अपने हाथों से उसे मजिस्ट्रेट का बैज लगाया और उसे सम्मानित करते हुए उसे कार्य भार सौंपा।

 पूरे सभागार  तालियों से गूंज रही थी।

मेरे  चारों ओर फूल ही फूल खिल गए थे।

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प्रेषिका सीमा प्रियदर्शिनी सहाय

प्रेषिका सीमा प्रियदर्शिनी सहाय

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