महत्वाकांक्षा – अनुराधा श्रीवास्तव | family moral stories

“अरे मुक्ता, तुम्हारे बेटे का तो आज रिजल्ट आया है ना, कोैन सी रैंक आयी है, मन्टू की।’’

“हाॅं रमा भाभी आ गया रिजल्ट, सांतवी रैंक है क्लास में।’’ मुक्ता ने रमा को बता तो दिया लेकिन जानती थी कि वो आगे सिर्फ अपनी बेटी रिंकी की बड़ाई ही करने वाली है।

“रिंकी तो क्लास में फर्स्ट  रैंक आयी है। मेरी रिंकी बचपन से ही इतनी तेज है कि हमेशा क्लास में फर्स्ट ही आती है। मन्टू पर ध्यान दो वरना हाईस्कूल में तो पास होना मुश्किल हो जायेगा।’’ रमा तंज कसती कुटिल मुस्कान के साथ अपने घर चली गयी। रमा की बात सुनकर मुक्ता के साथ खड़े मन्टू का चेहरा उतर गया। 

” तुम्हारा मुुह क्यों मुॅंह लटक गया? रमा भाभी की बात का बुरा मत मानना। मुझे पता है कि तुम अपनी पूरी मेहनत करते हो और आगे भी करोगे। क्लास में हर बच्चा फर्स्ट  रैंक नहीं ला सकता। हर बच्चे की अपनी अपनी खूबी होती है। तुम जो भी करो दिल लगाकर करो, ये जरूरी है।’’ मन्टू ने भी खुशी से हाॅं में सिर हिला दिया और मुक्ता ने उसके मुंह में मिठाई का टुकड़ा रख दिया। 

रमा और मुक्ता दोंनो ही पड़ोसन हैं और मन्टू और रिंकी छठी क्लास में पढ़ते हैं। रिंकी मेधावी छात्रा है और मन्टू एक एवरेज छात्र है। ना मेधावी ना फिसड्डी लेकिन रमा मन्टू की पढ़ाई को लेकर तंज कसने का कोई मौका नहीं छोड़ती थी। मन्टू और मुक्ता दोनों ही रमा के इस व्यवहार से दुखी हो जाते थे लेकिन मुक्ता मन्टू को समझा बुझाकर कर ढांढस बंधा देती थी। 




रमा ने अपनी प्रतिस्पर्धा को हमेशा ही रिंकी पर थोपा है ताकि वो खुद अपनी बेटी की उपलब्धियों को आधार बनाकर दूसरों का उपहास उड़ा सके। क्लास बढ़ने के साथ साथ रिंकी पर स्कूल और कई कोचिंग क्लासेस के साथ साथ उसकी माॅं की महत्वाकांक्षाओं का भार भी बढ़ गया था। देखते ही देखते रिंकी और मन्टू दोनों ही हाईस्कूल में पहुंच गये। रमा दिन भर रिंकी पर बस पढने का ही दबाव बनाती रहती थी। रिंकी अब पास होने के लिये नहीं बल्कि फेल न होने के लिये पढ़ती थी। रिंकी धीरे धीरे डिप्रेशन में जाने लगी थी लेकिन रमा की महत्वाकांक्षा ने उसकी आंखों पर पर्दा डाल दिया था।

हाईस्कूल की परीक्षा शुरू हुई। रिंकी ने भी परीक्षा में भाग लिया लेकिन उसके पेपर अच्छे नहीं जा रहे थे। डर की वजह से वो क्लास में कुछ भी लिख नहीं पा रही थी और वो इस बारे में अपनी माॅं से भी कुछ नहीं कह पा रही थी क्योंकि उसके डर पर उसकी माॅं की उम्मीदे हावी हो जाती थी। रिंकी अन्दर ही अन्दर घुट रही थी और एक दिन उसने इस डर से निकलने का रास्ता ढूढ लिया।   

रमा के घर से चीखने चिल्लाने की आवाजें आ रही थी। रिंकी अपनी स्टडी टेबल पर औंधे मुंह पड़ी थी। उसका एक हांथ जमीन की ओर लटक रहा था और पूरी जमीन खून से लबालब भर गयी थी। उसने अपनी नस काट ली थी। साथ में एक चिट्ठी लिखी हुई रखी थी जिसमें रिंकी ने अपनी माॅं से माफी मांगी थी- 

’’मम्मी, मुझे माफ कर दो। मेरे पेपर अच्छे नहीं जा रहे। मुझे नहीं लगता मैं हाईस्कूल की परीक्षा पास कर पाउॅंगी। मैं आपकी उम्मीदों को पूरा नहीं कर पायी इसलिये मेरा जीना बेकार है। मैं जा रही हूॅं हमेशा के लिये।’’




रमा अस्पताल में रिंकी के पास बैठी बार बार ये चिट्ठी पढती और अपने आपको कोसती रहती। आज रिंकी को अगर सही समय पर अस्पताल न लाया जाता तो वो रमा अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाती। रिंकी द्वारा मांगी जा रही माफी वास्तव में रमा की महत्वाकांक्षा और अपनी ही बेटी पर अनावश्यक दबाव के अपराध को दर्शा रही थी जिसकी वजह से वो ये भी भूल गयी कि रिंकी उसकी बेटी है ना कि उसकी महत्वाकांक्षाओं और उम्मीदों का पिटारा। मुक्ता भी अस्पताल में ही थी और रमा को समझाने के साथ साथ ही उसने मन्टू को भी समझाया कि ’’अगर तुम्हे जीवन में कभी लगे कि तुम हार जाओगे तो जीवन का मैंदान छोड़ कर भागने के बजाय दोबारा जीतने की उम्मीद में मेहनत करना। जीवन में हार जीत तो लगी रहती है लेकिन जिन्दगी एक अनमोल तोहफा है एक छोटी सी हार की वजह से ऐसा गम्भीर कदम उठाकर तुम न सिर्फ अपने साथ बल्कि अपने परिवार के साथ भी गलत करोगे। किसी भी हार या जीत से बढ़कर तुम अपने परिवार के लिये कीमती हो।’’ मुक्ता की बातें सुनकर रमा को अपनी गलती का एहसास हो रहा था। रिंकी अब ठीक हो गयी थी। हाईस्कूल के रिजल्ट आ गये थे। मन्टू अच्छे नम्बर से पास हुआ था। रिंकी अगले साल फिर से हाइस्कूल की परीक्षा देने के लिये पूरे उत्साह और आत्मविश्वास के साथ नयी शुरूआत कर रही थी और इस बार रमा भी अपनी बेटी का साथ देने के लिये पूरी तरह से तैयार थी। 

मौलिक

स्वरचित

#पछतावा 

 अनुराधा श्रीवास्तव

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