कसाई का भक्ति प्रेम

 बहुत पुरानी बात है एक कसाई था। वह पूरे दिन प्रभु की भक्ति करता था।  ऐसा करते हुए लोग जब उसे देखते थे तो बहुत आश्चर्यचकित भी होते थे, काम कसाई का करता है और दिनभर भगवान का नाम लेते रहता है।  लेकिन वह क्या करें उसका धंधा ही मांस बेचना था तो वह अपना धंधा कैसे छोड़ सकता था। 

 एक दिन सुबह-सुबह नदी में स्नान कर रहा था और प्रभु की कीर्तन करने में मगन था तभी उसके पैरों में एक पत्थर टकराया।  उसने झुककर हाथ से उस पत्थर को उठाया और देखा कि पत्थर देखने में भले काला है लेकिन है बड़ा सुंदर सा उसने सोचा इस पत्थर को अपनी दुकान पर ले चलता हूं यह  मांस तोलने के काम आएगा। 

उसके बाद जब वह अपनी दुकान पहुंचा तो उसी काले पत्थर से मांस को तोलने लगा कुछ देर बाद उसे एहसास हुआ यह कोई साधारण पत्थर नहीं है इस पत्थर से वह तो जितना किलो मांस तोलना चाहता है उतना ही किलो का यह पत्थर हो जाता है। 

 धीरे-धीरे यह बात  जंगल में आग की तरह पूरे नगर में फैल गई।  कसाई के पास एक ऐसा जादुई पत्थर है जिससे जितना चाहे भार तोला जा सकता है। अगर जिस व्यक्ति को आधा किलो मांस देना होता था  तराजू में उसी पत्थर को एक तरफ डालने पर और दूसरी तरफ मांस रखने पर आधा किलो तोल जाता था। अगर किसी व्यक्ति को 5 किलो की मांस देना होता था तब भी उसी पत्थर का कसाई इस्तेमाल करता था। 



 इस चमत्कार को देखने के लिए आसपास के नगर और गांवों से लोग जुटने लगी ऐसे में कसाई की बिक्री पहले से दिन दूनी रात चौगुनी हो गई थी। 

 यह बात पास में रहने वाले एक महात्मा जी को भी पता चला।  उनको भी इस पत्थर को देखने की तीव्र इच्छा जागी। लेकिन उनका मन इस बात के लिए गवाही नहीं दे रहा था कि वह एक कसाई के दुकान में जाएं लेकिन उस जादुई पत्थर को देखने के लिए  उनके अंदर इतनी ज्यादा उत्सुकता थी कि वह अपने आप को रोक नहीं सके। 

 महात्मा जी ने जब कसाई के दुकान में देखा कि सचमुच में जैसा सुना है वैसा ही हो रहा है वह पत्थर जितना भी वजन तोलना होता था उतने ही का बन जाता था। 

 उसके बाद महात्माजी कसाई के दुकान में गए महात्मा जी को देखकर कसाई बहुत ही प्रसन्न हुआ उसने कहा महात्मा जी मैं तो कसाई हूं मैं आपको अपनी दुकान में बैठने को भी नहीं कर सकता हूं नहीं तो मेरा धर्म भ्रष्ट हो जाएगा लेकिन मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं। 

महात्मा जी ने कहा कि मैंने तुम्हारे जादुई पत्थर की चर्चा सुनी थी इसीलिए यहां आया हूं लेकिन क्या तुम्हें पता है जिससे तुम मांस तोल रहे हो वह कोई साधारण पत्थर नहीं है बल्कि भगवान शालिग्राम जी हैं और इस तरह शालिग्राम जी से मांस के टुकड़े को तोलना बहुत बड़ा पाप है।  तुम स्वयं प्रभु की कितनी भक्ति करते हो क्या तुम्हारा अंतरात्मा गवाह देता है कि शालिग्राम से मांस का टुकड़ा तोला जाए। 



कसाई एक धार्मिक व्यक्ति था उसने  जैसे ही महात्मा जी की बात सुनी उसने महात्मा जी के पैरों में अपने आप को झुका लिया और उनसे कहा महात्मा जी आप ही शालिग्राम जी को अपने पास ले जाइए आप तो बहुत पहुंचे हुए महात्मा हैं। 

महात्मा जी शालिग्राम जी को कसाई के दुकान से अपने मंदिर में लेकर आए पहले तो शालिग्राम जी को उन्होंने दूध से स्नान करवाया फिर  पंचामृत से अभिषेक किया और उसके बाद पूजा-अर्चना आराम कर दिया। 

 अभी कुछ दिन ही हुए थे कि महात्मा जी के सपने में शालिग्राम भगवान ने दर्शन दिया और कहा हे महात्मा मैं तुम्हारी सेवाओं से बहुत प्रसन्न हूं लेकिन मैं उस कसाई के पास ही रहना चाहता हूं । महात्मा जी ने भगवान से कहा भगवान आप उस कसाई के दुकान में कैसे रह सकते हैं वहां पर  मांस का टुकड़ा आप से तोला जाता है। 

 शालिग्राम जी ने महात्मा जी से कहा महात्मा जी आप मेरी  पूजा अर्चना करते हो मुझे बहुत पसंद आता है लेकिन जो भक्त मेरे नाम का दिन भर गुण-गान और कीर्तन करते रहते हैं उनके लिए तो मैं कुछ भी कर सकता हूं। 

 मैं मानता हूं कि वह कसाई है वह आपकी तरह मेरी पूजा अर्चना नहीं करता है लेकिन पूरे समय वह मेरा ही नाम गुनगुनाता रहता है जो कि मुझे बहुत प्रिय लगता है इसीलिए तो मैं उसके पास गया था। 

 महात्मा जी अगली सुबह ही शालिग्राम जी को लेकर कसाई की दुकान के पास गए और कसाई के चरणों में गिर गए और कसाई से रात के सपने वाली बात बताया। 

 कसाई ने जब यह सुना तो उसकी आंखों से अश्रु धारा बहने लगे और उस दिन से उसने कसम खाया अब वह मांस बेचने का व्यापार नहीं करेगा बल्कि कोई और काम कर लेगा और ज्यादा से ज्यादा अपना समय प्रभु जी की कीर्तन करने और दूसरे लोगों को भी प्रभु जी के भक्ति के बारे में बताएगा।

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