इसे कहते हैं पढ़ा लिखा गंवार… रोनिता कुंडु : short moral story in hindi

बेटा..! तनु आ रही है… हमें उसकी हिम्मत बननी होगी… अब हम ही उसे दोबारा जीवन दे सकते हैं… इसलिए बेटा…! जितना हो सके उससे सामान्य तरीके से बात करना… 

उमा जी ने अपने बेटे प्रभात से कहा… प्रभात:   मां..! आप बिल्कुल भी चिंता मत कीजिए… मैं अकेला ही अपनी बहन के लिए काफी हूं…

 उसके बाद प्रभात जैसे ही अपने कमरे में जाता है, उसकी पत्नी मालती गुस्से में कहती है… आ गए मां के लाडले और बहन के प्यारे भैया..?

 प्रभात:  यह कैसे बोल रही हो तुम..?

 मालती:   तो और कैसे बोलूं..? मां बेटे तो ऐसे बात कर रहे थे, जैसे कोई किला फतह करके आ रही है तनु… अपने पति को तो खा ही गई… अब मेरे पति की छाती पर मूंग दलने आ रही है… अरे वह तो अब चाहेगी ही, यहां आना क्योंकि उसका और उसके बेटे का गुजारा जो चलाना है… पर आप..?

इसे कहते हैं पढ़ा लिखा गवार… एक तो पहले से ही हमारे हर महीने खींचातानी रहती है… ऊपर से मम्मी जी भी पूरे हमारे जिम्में ही है… अब 2 लोगों के और बढ़ जाने से कहीं, सड़क पर ही ना आना पड़े… खुद के भी दो बच्चे हैं… उनका क्या होगा..? अब तो उसके ससुराल वाले भी इस झंझट से छुटकारा पाने की फिराक में होंगे…

  प्रभात:   अरे सही में… यह बात तो मेरे दिमाग में आई ही नहीं… पर अब तो मां को कह कर आया हूं… अब क्या करूं..?

 मालती:   अब तो आप बस चुप ही रहिए, जो कहना है मैं कहूंगी… 

अगले दिन तनु आ जाती है… वह अपने मां से लिपटकर खूब रोती है और फिर थोड़ी शांत होकर कहती है… मां..! जब तक आयुष थे, उनके मम्मी-पापा, भाई बहन, सब कितने अपने से लगते थे… पर उनके जाते ही, मैं उन पर बोझ बन गई..? चलो मैं तो पराए घर से थी, पर रोहन..? यह तो उसी घर का बारिश है, इसे भी उन्होंने बोझ कहा… कैसे मां..? रिश्ते इतने खोखले कैसे हो जाते हैं..? जबकि आयुष की तो जान बसती थी अपने परिवार में..

उमा जी:   छोड़ बेटा..! यह सारी बातें.. हम हैं ना तेरा परिवार.. देखना रोहन की कितनी अच्छी परवरिश होगी यहां, के वे लोग भी देखते रह जाएंगे..

 मालती:   देखिए मम्मी जी..! सब पैसों की ही मोह माया है… जब तक आयुष जी जिंदा थे, उस घर में अपनी आमदनी का हिस्सा देते थे और अब जब वह नहीं रहे, तो मुफ्त में मां बेटे को कौन खिलाएगा..? अब आपके बेटे को ही ले लीजिए, इतनी सी तनख्वाह मिलती है… जिससे हम लोगों का गुजारा ही बड़ी मुश्किल से चल पाता है.. ऐसे में..?

उमा जी:   मालती..! यह क्या बोले जा रही हो तुम..? जब जमाईबाबू थे, तब तो महंगे महंगे तोहफे लेने में शर्म नहीं आई..? कितने मीठे बोल बोलती थी…. और आज उनके जाते ही, वही मीठे बोल, करेले से भी ज्यादा कड़वे हो गए..? यह मत भूलो अनहोनी कभी भी, किसी के साथ भी हो सकती है.. हमेशा स्वार्थी होना सही नहीं..

मालती:   अगर आपकी कमाई का कोई जरिया होता, तो आपको यह बातें शोभा देती… पर जब आप खुद ही किसी पर आश्रित है, तो इतना तेवर बेकार है…

उमा जी प्रभात से:   यह यहां इतना कुछ कह रही है,  और तू चुपचाप मौन खड़ा सुन रहा है..?

प्रभात:   मां..! क्या करूं..? जब आयुष  के घर वालो ने एक पल के लिए भी कुछ नहीं सोचा…. फिर मैं तो उनसे गरीब ही हूं.. मेरी आर्थिक स्थिति ने मेरा हाथ बांध रखा है मां..!

 इससे पहले उमा जी और कुछ कहती, तनु बोल पड़ती है… बस कीजिए आप लोग..? इसी युद्ध से बचने के लिए मैं वहां से यहां आई, पर यहां आकर भी वही सब देखना पड़ेगा, यह मालूम नहीं था…

भाभी..! आपने मेरी पूरी बात सुनी ही नहीं… मैं यहां हमेशा के लिए रहने नहीं आई, बस कुछ दिन आप लोगों के साथ बिताऊंगी, यही सोच कर आई थी… रोहन भी अपने पापा को बड़ा याद कर रहा था… तो सोचा यहां चिंटू और विक्की का साथ पाकर, वह अपने पापा से ध्यान हटा पाएगा…

रही बात मेरे गुजारे कि… वह आयुष, सब करके गए हैं… शायद उन्हें आजकल के खोखले रिश्तो का इल्म हो गया था,,, उनकी एक फ्लैट जिसमें अब हम मां बेटे रहेंगे और अपनी बिजनेस की जिम्मेदारी वह मुझ पर ही छोड़ कर गए हैं… मुझे नहीं लगता, इससे ज्यादा अब हमें जीने के लिए कुछ और चाहिए.. पता है भाभी..! भैया की आर्थिक स्थिति को देखते हुए, उन्होंने भैया के लिए भी कुछ छोड़ा है… 

  यह सुनकर मालती और प्रभात की आंखें फटी रह जाती है…

 उमा जी:   जो भी छोड़ा है जमाई बाबू ने तनु..! उसे अब तू अपने पास रख… इन लालचीओ को कुछ भी देने की जरूरत नहीं…

 तनु:   नहीं मां..! आयुष हमेशा कहते थे, हम खुद जैसे हैं, पूरी दुनिया हमारे लिए वैसी ही बन जाती है.. भैया..? आपको वह चंदनपुर वाली जमीन हमेशा से ही चाहिए थी ना..? अपने ईट के व्यापार को शुरू करने के लिए… वह जमीन आयुष ने आपके लिए खरीदी थी… यह लीजिए उसके कागजात और आयुष ने हम मां बेटे के लिए जितना किया है, वह काफी है हमारे लिए… फिर भैया के हक को क्यों मारूं…? मैं तो गर्वित हूं, कि मैं एक ऐसे पुरुष की पत्नी हूं, जिसको अपने आसपास के खोखले रिश्तो का पता होते हुए भी, खुद कभी अपने किसी भी रिश्ते को खोखला बनने नहीं दिया… और मांं..! आज से आप भी बोझ बनकर नहीं रहेंगी… आपकी बेटी के साथ रहेंगी, जहां आपके हर तेवर स्वीकार होंगे… 

यह कहकर तनु, उमा जी के साथ वहां से चली गई और पीछे छोड़ गई अपने सारे खोखले रिश्ते… जो सिर्फ पैसों के बलबूते पर आज तक सांस ले रहे थे…

स्वरचित/मौलिक/अप्रकाशित 

धन्यवाद 

#खोखले रिश्ते

रोनिता कुंडू

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