हम बूढ़े भले है पर लाचार नही ( भाग 2 ) – संगीता अग्रवाल : short moral story in hindi

” पर क्या उनकी पसंद ने आपको अपनाया ..ये कैसे रिश्ते है अम्माजी जहाँ बेटा माँ का त्याग भूल जाये , बहू सास को फालतू सामान सा समझ ले और एक माँ मजबूर सी एक कोठरी मे अपनी मौत की दुआ मांगे । अम्मा जी सास भी तो माँ ही होती है मैने तो अपनी माँ से हमेशा यही सुना और अपनी सास को माँ का दर्जा भी दिया आज भी मेरे घर मे सबसे ज्यादा महत्व मेरी सास को दिया जाता है ना कि पुराने सामान सा उन्हे अलग थलग डाल दिया जाता है ! आप काहे सहती हो ये सब !” कमला हल्के गुस्से मे बोली।

” अपनी औलाद है वो उससे क्या शिकवा करूँ वैसे भी शिकवा करने का फायदा भी क्या जब वो खुद मुझे पुराना सामान समझने लगा है !” शारदा जी फिर एक बार आँख के आंसू पोंछती हुई बोली।

” अम्मा जी जब रिश्तो मे स्वार्थ आ जाये तब वो खोखले हो जाते है। तब उनसे शिकवा नही किया जाता बल्कि उन्हे उनकी औकात बताई जाती है और अपनी कीमत जताई जाती है !” कमला ने कहा तभी बाहर से शारदा जी की बहू ममता जी आवाज़ आई तो कमला चली गई। 

कमला के जाने के बाद शारदा जी सोच मे पड़ गई । यूँ तो उनकी उम्र कोई ज्यादा नही लगभग साठ साल थी पर अपनों की बेरुखी ने वक्त से पहले बूढा कर दिया था उन्हे। अपने अकेले पन से जूझ रही थी वो कहने को बेटा बहू दो पोते थे पर उनके पास आ बैठने की फुर्सत किसी को नही इस बीमारी मे भी एक कमला ही थी जो उनकी सेवा कर रही थी। बेटे ने इंजीनियर बनते ही उनकी आंगन वाड़ी की नौकरी भी छुड़वा दी थी वरना वही मन लगा रहता। तब उन्होंने भी खुशी खुशी छोड़ दी थी नौकरी कि अब बेटा बहू के बच्चो को खिलाऊंगी पर बहू ममता को उनका घर भर मे घूमना ही पसंद नही था तो वो एक कमरे मे सिमट कर रह गई थी। अपने अतीत और वर्तमान की सोचते सोचते उनकी आँख लग गई।

” अरी तू मालकिन है इस घर की इसका पत्ता भी तेरी रजामंदी के बिना ना हिले !” नींद मे उन्हे पति राजेश जी की आवाज़ सुनाई दी जो वो अक्सर ममता जी से कहते थे। 

” देखिये इस घर मे सब मेरी मर्जी के बिना हो रहा है मैं तो इनके लिए कोई महत्व ही नही रखती अब !” शारदा जी बुद्बुदाई ।

” शारदा कमला ठीक कहती है जब कोई तुम्हारा महत्व ना समझे तो उसे बताया जाता है यूँ खुद को मन ही मन घुलाया नही जाता ।” राजेश जी बोले। 

” पर अपने बच्चो को कैसे कोई महत्व समझाये उन्हे तो खुद पता होना चाहिए ना !” शारदा जी बेबसी से बोली।

” जब रिश्तो मे खोखलापन आ जाता है तब औलाद माँ बाप की कीमत नही समझती ऐसे मे माँ बाप का फर्ज है अपने भटके बच्चो को सही राह लाये फिर चाहे उन्हे साम , दंड , भेद की नीति ही क्यो ना अपनानी पड़े पर ये बताना जरूरी है कि हम बूढ़े है पर लाचार नही !” राजेश जी बोले तभी बाहर कुछ गिरने की आवाज हुई और शारदा जी की नींद खुल गई उन्होंने आँखे मलते हुए चारो तरफ देखा पर वो जिसे ढूंढ रही थी वो तो वहाँ थे ही नही ।

शारदा जी मे एक बदलाव सा आया अब वो वक़्त पर खाना , दवा सब लेने लगी और कुछ दिन मे ही ठीक हो गई । हालाँकि शरीर मे कमजोरी थी पर इतनी नही कि चल फिर ना सके। 

” माँ आप बाहर क्यो आई है कुछ चाहिए था तो कमला से बोल देती ममता ने देख लिया तो गुस्सा होगी !” शारदा जी अपने कमरे से उठकर बैठक मे आकर बैठी तो उनके बेटे राघव ने कहा।

” क्यो गुस्सा होगी वो और किस हक से होगी मेरा घर है ये मैं चाहे जहाँ आऊं जाऊं वो कौन होती है मुझे मना करने वाली !” शारदा जी सहमने की जगह लापरवाही से बोली और टीवी चला लिया। 

” ये टीवी किसने चलाया इस समय !” तभी ममता अपने कमरे से ही बोली ।

” मैने चलाया है इस घर की मालकिन ने तुम्हे कोई एतराज है ?” शारदा जी जोर से बोली उनकी आवाज़ सुन ममता गुस्से मे बाहर आई। 

” आप यहाँ क्या कर रही है थोड़ी देर मे मेरी कुछ दोस्त आने वाली है आप अपने कमरे मे जाइये !” ममता बोली।

” नही आज मेरा टीवी देखने का मन है तुम अपनी दोस्तों को अपने कमरे मे बैठा लेना !” शारदा जी बिना बहू की तरफ देखे हुए बोली। 

राघव और ममता दोनो हैरान थे डरी सहमी सी रहने वाली माँ आज इतने आत्मविश्वास से कैसे बात कर रही है । 

” तुम कुछ नही बोलोगे अपनी माँ को ?” ममता पति की तरफ गुस्से से देखते हुए बोली।

” माँ आप अपने कमरे मे जाओ सुना नही आपने ममता की दोस्त आने वाली है !” राघव पत्नी के आगे बेबस हो माँ से बोला।

” देख बेटा तू भले बीवी का गुलाम है पर ये मत भूल ये घर मेरे नाम है और मैने आज ही वकील को बुलाया है !” शारदा जी टीवी बंद कर बेटे के पास आ बोली।

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