दोहरा मापदंड – डॉ. पारुल अग्रवाल

सुमित्रा जी बड़े बेटे रचित के प्राची से शादी करने से इस कदर नाराज़ हो गई थी कि वो अपना दिल्ली वाला घर छोड़कर अपने छोटे बेटा बहु के पास हैदराबाद आ गई थी। यहां भी पूरे समय उनके मन में प्राची के लिए गुस्सा ही भरा रहता। बीच-बीच में बाकी रिश्तेदार भी उनको फोन करके प्राची के विषय में कुछ बोलकर उनके गुस्से को बढ़ा देते थे। हालांकि प्राची बहुत ही प्यारी और रिश्तों की कद्र करने वाली लड़की थी पर कहीं ना कहीं सुमित्रा जी को लगता था कि उसने चालाकी से उनके बेटे रचित को अपने जाल में फंसाया है। इन्हीं सब बातों की वजह से वो यहां आ तो गई थी पर छोटी बहू उनसे घर के सारे काम लेती थी। ऐसे ही आज उसने सुमित्रा जी को सब्ज़ी लेने भेज दिया था।

सुमित्रा जी यहां के रास्तों से भी अनभिज्ञ थी, फिर भी किसी तरह से छोटी बहू द्वारा बताई गई सारी सब्जियों को लेकर वो वापिस लौट रही थी। रास्ते में कहीं से एक सांड ने आकर पीछे से टक्कर मारकर उनको गिरा दिया था। वो तो गनीमत रही कि कुछ लोगों ने सांड को भगा दिया, नहीं तो कोई भी अनहोनी घट सकती थी। चोट तो उनके बहुत अधिक आई थी, उन्होंने लोगों की मदद से अपने मोबाइल द्वारा अपने पति और छोटे बेटे को खबर दी। वो लोग वहां पहुंचे, सबसे पहले डॉक्टर के क्लिनिक पर लेकर गए। सुमित्रा जी दर्द से कराह रही थी, सारे एक्सरे और टेस्ट होते-होते शाम हो गई थी। moral stories in hindi

डॉक्टर ने सारी रिपोर्ट्स देखने पर बताया कि उनके बाएं हाथ की हड्डी टूट गई है और दाएं पैर की ऐड़ी के पास के लिगामेंट्स टूट गए हैं। डॉक्टर ने हाथ पर तो प्लास्टर चढ़ा दिया पर पैर पर प्लास्टर तो नहीं पर रोजाना सिकाई और मालिश के लिए बोला। जब वो पति और छोटे बेटे के साथ उसके घर पहुंची तब छोटी बहू ने सिर्फ एक बार उनका हाल-चाल पूछा और चली गई। उसका व्यवहार सुमित्रा जी को आहत कर गया। फिर भी उन्होंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया क्योंकि अभी वो अपने ही दर्द से बेहाल थी। वो अपने कमरे में आराम के लिए पहुंची ही थी पर नींद उनकी आंखो से कोसों दूर थी।




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तभी उनके कानों में छोटी बहू के तेज़ स्वर टकराए। छोटे बेटे और बहू में उनकी  देखभाल को लेकर झगड़ा चल रहा था। छोटी बहू कह रही थी कि नौकरी और छोटे बच्चे के साथ वो सुमित्रा जी की देखभाल नहीं कर सकती और ना ही छुट्टी ले सकती है। बेटा उसे समझाने की कोशिश कर रहा था पर वो कुछ सुनने को तैयार नहीं थी। सुमित्रा जी ने बेबसी और लाचारी से पति की तरफ देखा। आज उन्हें यहां आना अपनी सबसे बड़ी गलती लग रहा था वैसे भी उनके पति ने तो काफ़ी मना भी किया था।

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विवशता से सुमित्रा जी आंखें मूंद कर लेट गई अब उन्हें याद आने लगा कि किन परिस्थितियों में उनके बड़े बेटे रचित और प्राची की शादी हुई थी। असल में रचित की प्राची के साथ दूसरी शादी थी। रचित की पहली पत्नी थी ऋचा,जिसको वो अपनी पसंद से चुन कर लाई थी। शादी के बाद दोनों यूएस चले गए थे जहां वो एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। शादी के दो साल के बाद ऋचा मां बनने वाली थी,वीजा ना मिलने का कारण सुमित्रा जी वहां नहीं जा पाई थी।

पर ऋचा ने ऑनलाइन वीडियो कॉल के द्वारा सुमित्रा जी और अपनी मां की सभी सलाहों को ठीक से पालन किया था।पूरे नौ महीने के बाद उसने प्यारे से बेटे ध्रुव को जन्म दिया था। ऋचा और रचित ने सोच लिया था कि ध्रुव के छः महीने का होने पर वो लंबी छुट्टी लेकर भारत जायेंगे। पोते के स्वागत में आतुर सुमित्रा जी की खुशी देखते ना बनती थी। अभी उनके भारत वापस आने में दो-तीन ही शेष बचे थे कि एक ऐसी अनहोनी घट गई जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। ऋचा फोन पर बात करते करते सीढ़ियां उतर रही थी कि उसका पांव फिसल गया और वो सिर के बल गिर गई।

जब तक उसे इलाज़ मिल पाता तब तक सिर पर लगी अंदरूनी चोट से उसकी मृत्यु हो गई। इस दुखद घटना को जिसने सुना उसका ही दिल भर आया। कहां तो खुशी-खुशी रचित और ऋचा नन्हें ध्रुव को अपने देश ले जाकर सबसे मिलवाना चाहते थे वहीं आज ऋचा की मृत्यु की सारी औपचारिकताएं निभाकर रचित ध्रुव को किसी तरह अकेले संभाले हुए वापस लौट रहा था। 

बड़े बेटे और पोते के घर आने पर सुमित्रा जी और उनके पति किसी तरह हिम्मत बांधे हुए थे। वैसे भी जाने वाला तो चला गया था पर छोटे बच्चे को तो पालना ही था। ध्रुव के लिए तो ये वातावरण भी नया था साथ-साथ मां की गोद भी नहीं थी। सुमित्रा जी को समझ नहीं आ रहा था कि कैसे छोटे बच्चे को पाला जायेगा क्योंकि कोई आया या काम वाली मां की जगह नहीं ले सकती। दूसरी तरफ सुमित्रा जी भी अब बूढ़ी हो रही थी और रचित की भी नौकरी थी। वो तो गनीमत थी कि रचित की कंपनी ने उसके हालातों को देखकर उसको गुड़गांव वाली शाखा में स्थानांतरित कर दिया था।




ध्रुव कई बार बहुत रोता था। कई रिश्तेदारों ने सुमित्रा जी को रचित की दूसरी शादी के लिए बोला। सुमित्रा जी को भी ये बात उचित लगी उन्होंने एक दिन बातों-बातों में रचित से दूसरी शादी का जिक्र किया। सुमित्रा जी ने ये भी कहा कि ध्रुव अभी बहुत छोटा है मां के बिना नहीं रह सकता। रचित उनकी बात से सहमत था पर उसने साथ-साथ ये भी कहा कि वो दूसरी शादी अगर करेगा भी तो किसी विधवा या तलाकशुदा लड़की से ही करेगा क्योंकि वो शादी किसी काम वासना की पूर्ति के लिए नहीं ध्रुव को मां की गोद देने के लिए करना चाहता है। उसकी किसी विधवा या तलाकशुदा से शादी की बात सुमित्रा जी के गले नहीं उतरी। ख़ैर उन्होंने रचित के लिए लड़की देखनी शुरू कर दी। एक-दो रिश्ते भी आए पर रचित अपनी बात पर अटल था। उधर ध्रुव कभी-कभी बहुत रोता था और किसी की संभाले नहीं संभलता था।

तभी एक दिन सुमित्रा जी के पास उनकी सहेली संध्या जी का फोन आया। सुमित्रा जी का दुख सुनकर संध्या जी ने बताया कि उनकी बेटी प्राची फुलवारी नाम से छोटे बच्चों का एक डेकेयर केंद्र चलाती है। वहां वो तीन महीने से सात साल के बच्चे तक रखती है। तुम थोड़े समय के लिए ध्रुव को वहां छोड़ना शुरू करो क्या पता इसका मन बहल जाए। सुमित्रा जी भी प्राची से भलीभांति परिचित थी। अपनी सहेली की बात सुनकर सुमित्रा जी ध्रुव को दिन में कुछ समय के लिए प्राची के पास उसके फुलवारी केंद्र में ले जाने लगी। ये प्राची के ममता भरे हाथों का स्पर्श था,या दूसरे बच्चों का साथ ध्रुव वहां बहुत आराम से रहने लगा। अब तो रचित खुद भी ऑफिस जाते हुए ध्रुव को वहां छोड़कर जाने लगा।

फिर तीन-चार घंटे बाद सुमित्रा जी उसको वापस ले आती। अब प्राची को भी ध्रुव का इंतज़ार रहता। एक दिन ध्रुव नहीं आया,प्राची ने फोन किया तो रचित ने बताया कि उसको तेज़ बुखार है। प्राची से रहा नहीं गया, किसी तरह शाम को बाकी बच्चों के जाने के बाद वो सुमित्रा जी के घर पहुंच गई। ध्रुव उसको देखकर तुरंत उसकी गोदी में आ गया। वो अभी भी ज्वर में तप रहा था। प्राची ने पूरी रात उसकी देखभाल की। अगले दिन ध्रुव की हालत में सुधार था। रचित भी प्राची से बहुत प्रभावित था। उसने अपनी मां के सामने प्राची से शादी का प्रस्ताव रखा। 

उसके इस प्रस्ताव को सुमित्रा जी ने नकार दिया क्योंकि प्राची एक शादी के एक साल के अंदर अपने होने वाले बच्चे और पति को खो चुकी थी। उसके ससुराल वालों ने उसको अपशगुनी कहकर निकाल दिया था। रचित का इस तरह की बातों में कोई विश्वास नहीं था। उसने सुमित्रा जी को बोला अगर प्राची अपशगुनी है तो फिर तो वो और उसका बेटा ध्रुव भी हैं क्योंकि वो तो जिंदा है और पत्नी तो उसने भी खोई है। ऐसे ही ध्रुव के जन्म के छः महीने के अंदर ऋचा चल बसी। रचित की इन बातों ने सुमित्रा जी को निरुत्तर कर दिया था पर उन्होंने फिर भी यही कहा कि वो खुली आंखों से देखते हुए मक्खी नहीं निगल सकती। वो इस तरह के ग्रहों वाली लड़की से अपने बेटे रचित की शादी नहीं कर सकती। रचित ने फिर भी कहा कि मां आप एक औरत होकर दूसरी औरत का दर्द नहीं समझ रही पर सुमित्रा जी ने उसकी कोई बात नहीं सुनी। रचित ने सुमित्रा जी के दोहरे मापदंड का पुरजोर विरोध किया। 




सुमित्रा जी ने ध्रुव को फुलवारी भेजना भी बंद कर दिया। प्राची ने फोन करके पूछा तो उसको भी बड़े रूखे शब्दों में बोल दिया कि उसका ध्यान वो रख सकती हैं अब यहां फोन करने की जरूरत नहीं है। उधर ध्रुव कुछ कह तो पाता नहीं था पर प्राची को याद करता था। ध्रुव की हालत और सुमित्रा जी की ज़िद को देखते हुए रचित बिना किसी से कुछ कहे प्राची से कोर्ट में विवाह कर अपने घर ले आया। सुमित्रा जी के पति ने तो उन लोगों को खुशी-खुशी आर्शीवाद दे दिया पर सुमित्रा जी ने प्राची को नहीं स्वीकारा। वो जब देखो तब उस पर ताने की बौछार करती रहती। उसके हाथ से बना खाना नहीं खाती। इन सबके बाबजूद प्राची बिना कुछ कहे अपने काम में लगी रहती। एक दिन उन्होंने ऐसे ही अपने छोटे बेटे बहू के पास जाने का निर्णय ले लिया। सुमित्रा जी के पति और रचित ने उनको बहुत समझाया पर वो नहीं मानी।

सबको पता था कि छोटी बहू बहुत तेज़तर्रार है पर उस समय तो सुमित्रा जी को सबसे बड़ी दुश्मन सिर्फ प्राची नज़र आ रही थी। आज सुमित्रा जी को प्राची का सभी को अपना मानने वाला स्वभाव और सेवा भाव याद आ रहा था। सुमित्रा जी के पति भी उनकी मनोदशा समझ रहे थे। उन्होंने बड़े बेटे रचित और प्राची को उनको लेकर जाने के लिए फोन भी कर दिया था जिसका अभी सुमित्रा जी को पता नहीं था।

अतीत की इन बातों को सोचते-सोचते कब सुमित्रा जी की आंख लग गई उन्हें पता ही ना चला। सुबह उनको लगा कि कोई बहुत प्यार से उनके पैर सहला रहा है तो देखा कि प्राची बैठी हुई है। सुमित्रा जी को लगा कि वो सपना देख रही हैं पर जैसे ही उन्हें रचित और अपने पति की आवाज़ सुनाई दी तो उन्होंने प्राची से माफ़ी मांगते हुए उसे गले से लगा लिया। बड़े बेटे-बहू और ध्रुव को देखकर सुमित्रा जी के आंसू बहने लगे। प्राची ने उनके आंसू पोंछते हुए कहा कि मां आप रोते हुए नहीं डांटते हुए ही अच्छी लगती हैं। हम आपको और पापा की लेने आए हैं आज शाम की ही हमारी फ्लाइट है। आपका घर आपका इंतजार कर रहा है। आज सुमित्रा जी की आंखों से अंधविश्वास की पट्टी पूरी तरह हट गई थी। अब वो बेसब्री से अपने घर लौटना चाहती थी।

दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी?अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। कई बार हम किसी स्त्री के पति की मृत्यु होने पर उसको तो अपशगुनी बोल देते हैं पर जब किसी पुरुष की पत्नी कालगलवित होती है तो उसको कोई कुछ नहीं बोलता। पता नहीं कब तक ये दोहरा मापदंड चलता रहेगा।अब समय आ गया है कि हम इन बातों से ऊपर उठ जाएं तभी हम आने वाली पीढ़ी से लिंगभेद की समस्या को दूर कर सकते हैं

#मासिक_अप्रैल 

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

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