धैर्यवान पुरुष

कामिनी और राज की गृहस्थी हँसी- खुशी से बीत रही थी। एक प्यारा- सा बेटा भी था। कामिनी और राज एक ही काॅलेज में पढ़ते थे। दोनों की विचार धाराएँ मिली, प्रेम का पौधा पनपा और दोनों एक सूत्र में बंन्ध गये।

परिवार वाले भी खुशी-खुशी इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया था। कामिनी को माँ के रूप में सास मिल गयी थी। राज अपने माँ- बाप का एकलौता बेटा था। पिता बचपन में ही गुजर गये थे। सास भी कामिनी जैसी बहू पाकर बहुत खुश थी।

 न जाने किसकी नजर कामिनी को लगी और उसका सबकुछ लूट गया। पति ऑफिस से लौटते समय एक दुर्घटना  का शिकार हो गया। कामिनी की तो दुनिया ही लूट गयी। बेटा स्वराज की उम्र अभी महज आठ साल की ही थी।

बूढ़ी माँ की आँखें कभी सूखी नहीं। कामिनी को शोक मनाने का भी वक्त नहीं था। सास और बच्चे की जिम्मेवारी उसे और सचेत कर दिया। नाते-रिश्तेदार, मायके वाले और दोस्तों की जमात भी इकठ्ठी हुई। तेरह दिन बाद सभी चले गये।

अब कामिनी को समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे? घर सम्भालना, बच्चे की परवरिश  पढ़ाई सबको कैसे  व्यवस्थित करे? दस साल की नौकरी में कोई खास बचत भी नहीं हो पाई थी। सिर्फ राज अपना एक घर खरीद लिया था।

          राज का एक अभिन्न मित्र था शेखर, जो उसी के कार्यालय में काम करता था। वह बीच- बीच में खोज- खबर लेते रहता था और कामिनी को उचित सलाह भी देता था। अब कामिनी अपनी नौकरी की तलाश में जुट गयी।

शेखर की मदद से कुछ दिनों में उसे नौकरी मिल गयी।  कामिनी राहत की साँस ली। धीरे- धीरे जिन्दगी पटरी पर आने लगी। शेखर अब भी कामिनी के घर आता था और माँ के पास ही बैठता था।

उसके स्नेहिल स्वभाव के कारण माँ को भी उससे बातें करने में अच्छा लगता था। शेखर भी बरसों पहले अपनी पत्नी को खो चुका था। उसकी एक बेटी है, स्वराज की उम्र की ही थी। एक दिन माँ ने उससे पूछा-

” बेटा, तुमने दूसरी शादी क्यों नहीं की?”

” सुधा (उसकी स्वर्गीय पत्नी )जैसी कोई लड़की अभी तक मिली ही नहीं और यदि मिल भी जाए तो क्या पता वो मेरे साथ रहना पसंद करे या नहीं।”

और फिर कभी इस बात पर दूसरी बार चर्चा हुई ही नहीं।

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एक दिन सासु माँ ने कामिनी से पूछा-

” बेटा, तुम्हें शेखर कैसा इंसान लगता है?”

” माँ, आपने ऐसा क्यों पूछा। अच्छे आदमी हैं।”

“देखो कामिनी, मुझे गलत मत समझना। तुम्हारी उम्र ही अभी क्या है? और फिर जिम्मेवारियों को निभाते समय अकेलापन महसूस नहीं होता है। सोचो, जब स्वराज बड़ा हो जायेगा, उसकी अपनी गृहस्थी होगी, मैं भी नहीं रहूँगी तो तुम अकेले कैसे जीवन बीताओगी?”

“माँ, आज के बाद कभी ऐसा मत कहियेगा। राज की यादों के साथ पूरी जिन्दगी बीत जायेगी।”

“व्यवहारिक बनो बेटा।”

“माँ, जरा सोचिए! कभी भी स्वराज किसी और को अपना पिता मान सकता है? वह अन्दर ही अन्दर मुझसे नफरत करने लगेगा। स्वराज की कसम, आज के बाद ऐसी बातें नहीं कीजिएगा।”

और एक झटके के साथ कमरे से निकल गयी। उसके बाद कभी भी चर्चा नहीं हुई। हाँ,धीरे-धीरे शेखर का आना कम होता गया और एक दिन पता चला कि शेखर का तबादला हो गया।

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बारह साल गुजर गये। स्वराज की पढ़ाई का अंतिम साल था। वह छात्रावास से छुट्टी में घर आया था। दादी अपनी उम्र की अंतिम पड़ाव पर थी। अक्सर बीमार रहती थी। 

एक दिन स्वराज को अपने पास बुलाकर कहतीं हैं-

“बेटा, मैं तुझसे एक बात कहना चाहती हूँ।” 

“क्या दादी?”

जब तुम नौकरी करने लगोगे और मैं भी नहीं रहूँगी तब तुम्हारी माँ अकेले कैसे रहेगी?”

” अकेले क्यों? मेरे पास रहेगी।”

कहीं भी रहे, पर एक साथी की जरूरत हर किसी को होती है।। अकेले जवानी कट जाती है पर बुढ़ापा मुश्किल होता है।”

“आप कहना क्या चाह रही हैं दादी?”

“समझदार हो बेटा।अब आगे क्या कहना है। शेखर अंकल तुम्हें याद हैं?”

” कौन शेखर अंकल?”

तभी माँ की आवाज सुन

स्वराज वहाँ से चला गया और दादी की बातें उसका पीछा करती रही। रात को दादी सोई तो सुबह उठी ही नहीं।———-

माँ के श्राद्ध में शेखर को देखकर कामिनी स्तब्ध रह गयी।

“आपको कैसे पता चला कि माँ जी अब नहीं रहीं?”

” मैं माँ के सम्पर्क में हमेशा था। दो-चार दिन से कोई खबर नहीं मिली तो मैंने पता किया।”

कामिनी स्तब्ध खड़ी रही। सोचती रही- माँ जी और शेखर एक दूसरे के सम्पर्क में थे और मुझे पता भी नहीं था।

तभी वहाँ से स्वराज को गुजरते हुए देखकर शेखर ने अपने पास बुलाया।

“मुझे पहचानते हो बेटा?”

“ठीक से तो नहीं,लेकिन शायद आप शेखर अंकल हैं।”

” शायद नहीं बेटा, मैं शेखर अंकल ही हूँ।”

अचानक स्वराज के दिमाग में दादी की बात क्रौंध गयी। 

श्राद्ध खत्म होने के बाद सभी जाने लगे। जाते समय स्वराज शेखर से उनका सम्पर्क नम्बर मांग लिया।

———————स्वराज की नौकरी लग गयी। ट्रेनिंग समाप्त होते ही वह घर आया। साथ में शेखर अंकल भी थे। शेखर को देखकर कामिनी घबराई हुई सी असमंजस में थी। 

तभी स्वराज बोल पड़ा।

“माँ, अंकल अगले साल नौकरी से निवृत हो रहे हैं। इनकी बेटी स्वीटी की शादी हो गयी। मैं ने सोचा, अब ये अकेले वहाँ कैसे रहेंगे? क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि अंकल भी यहीं रहें। इनका जाना- पहचाना पुराना शहर भी है। “

” ऐसा कैसे हो सकता है बेटा?लोग क्या कहेंगे?”

“यही निवेदन तो आपसे करने आया हूँ। स्वीटी भी आई है, लेकिन वह डर से गाड़ी में ही बैठी रह गयी।”

कामिनी बुत बनी खड़ी रही। जो बात बरसों पहले सासु माँ ने पूछा था आज बेटा पूछ रहा है।

“क्या कभी तुमसे दादी ने कुछ कहा था?”

” हाँ माँ……”

“तभी तो..”

वह रोती हुई अपने कमरे में चली गयी। पीछे- पीछे स्वराज और शेखर दोनों गये।

शेखर ने कहा-

“कामिनी, इसमें रोने की बात क्या है? तुम्हें ये रिश्ता पसंद नहीं है तो मना कर सकती हो।”

कामिनी अपने बेटे को गले लगाकर फूट- फूट कर रोने लगी।

“आज तुम्हारे पापा की याद आ गयी। वो भी मेरा ऐसे ही ख्याल रखते थे।”

“पापा की जगह तो कोई ले ही नहीं सकता है, लेकिन जिन्दगी तो जीनी है। पापा भी तुम्हारे हाँ से काफी खुश होंगे।”

तभी वहाँ स्वीटी आ गयी और कामिनी से कहती है-

मेरी मम्मी की कमी पूरी कर दीजिए आँटी। 

कामिनी ने स्विटी को अपने अंक में भर लिया।

#पुरुष

पुष्पा पाण्डेय 

राँची,झारखंड। 

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