आखिर क्यों… – मोनिका रघुवंशी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : दीवार पर लगी घड़ी रात के 12 बजा रही थी कमरे में बहुत हल्की नीली रोशनी, मैं बिस्तर पर अकेले पड़ी पड़ी नींद का या शायद राघव का इन्तजार कर रही थी। आंखों से नींद कोसों दूर थी, पगफेरे के बाद ये हमारी पहली रात थी मन मे अनगिनत बातें थी जो सगाई के बाद से ही राघव को बताना चाहती थी पर बता ही नही पाई।

आज तो मैं  हाथों में उनका हाथ लिए उनही के कंधे पे सिर रख के अपने दिल की सारी बातें उन्हें बताऊंगी। आज की रात तो मधुर मिलन की रात थी उनके स्पर्श की कल्पना मात्र से ही मेरा रोंम रोम पुलकित हो रहा था भला कोई अपनी नई नवेली दुल्हन की ऐसी ‘उपेक्षा’ करता है क्या आने दो राघव को… पर कब आएंगे राघव… 

3 बजे के आसपास राघव के आने की आहट से मैं संभलकर उठ बैठी। राघव कमरे मे आते ही बोले, सोई नही अभी तक…,.. इससे पहले कि मैं कुछ कहती राघव मेरे ऊपर झपटते हुए बोले मुझे क्या पता था कि तुम इतनी बेसब्री से मेरा इंतजार करोगी।

एकदम से मैं इसके लिए तैयार न थी अचकचाकर खुद को उनसे दूर करने का प्रयास किया पर असफल रही।

आओ न मधु कितना तरसाया तुमने मुझे। चार दिन हो गए हमारी शादी को और मैं अब तक तुम्हे छू भी नही पाया।

सारे मधुर सपने पल भर में ही भरभराकर बिखर गए। मन तो किया हाथ छुड़ाकर कंही भाग जाऊं। तो ये है शादी की हकीकत, मन मिले न मिले, तन मिलना चाहिए फिर चाहे कितनी ही चूड़ियां टूटे, टूटकर हाथों में चुभ जाए आखों में सपने मर जाये लेकिन बस तन का रिश्ता बन जाये।

राघव अपनी इच्छापूर्ति कर सो चुके थे, और मैं आंखों में आंसू लिए उस पल को कोस रही थी। अब तो ये रात का किस्सा बन चुका था और मैं इसका विरोध नही कर पा रही थी। राघव सुबह कमरे से बाहर निकलते तो सीधे रात 11 बजे तक ही फिर उनके दर्शन होते। कुछ कहने से पहले ही अपने तर्क देने लगते। क्या तुम मुझसे प्यार नही करती, क्या मैं तुम्हे पसंद नही, फिर क्यों खिंची खिंची रहती हो मुझसे। 

हर सुबह सिर भारी लगता नींद न होने के कारण या रात भर रोने के कारण तय करना मुश्किल था।

किसी तरह उठकर खुद को घसीटते हुए बाथरूम तक ले जाती नहा धोकर एक नई  सुबह से भिड़ जाती, दिन भर यही सोचती की आज तो मैं राघव से साफ साफ बात करके ही रहूंगी, फिर उनके तर्को के आगे हार जाती। कभी सोचती दोनो के घर वालों को सारी बात बता दूं। घर के बड़े ही कोई फैसला कर दें फिर अगले ही पल लगता कि भला मेरी बात कौन सुनेगा और क्या कहूंगी मैं सबसे।

ससुराल हो या मायका मेरे हर हाल में समझौता मुझसे ही करवाया जाता, संस्कारों की दुहाई दी जाती। दोनो कुलों की लाज जो मुझे संभालनी थी 

स्त्री की उपेक्षा कर उससे अपेक्षाएं रखना भारतीय पुरुषों का जन्मजात हक़ है।जो स्त्री पुरुष से दबे नही तो चरित्रहीन समझी जाती है। कोमल तन और मन वाली नाजुक स्त्री के सपनों को कुचलकर उस पर राज करना पौरुष की निशानी माना जाता है यंहा तभी तो किसी कवि ने लिखा है नारी जीवन तेरी यही कहानी…..

आंचल में है दूध और आंखों में पानी

स्वरचित व अप्रकाशित

मोनिका रघुवंशी

#उपेक्षा

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