संयुक्त परिवार-मनीषा सिंह

” मैं नहीं रह पाऊंगी यहां••! चार महीने से गर्भवती शक्ति पसीना पोछते पति अनिल के सामने वाली कुर्सी पर बैठते हुए बोली। 

अब तनिक आराम तो कर लो श्रीमती जी••!

अनिल फौरन शक्ति के पैरों को अपने गोद में रखते हुए बोला ।

आराम••? ये आराम वाली बात  ना ही बोल तो अच्छा है••! कूढते हुए शक्ति बोली।

  क्या हुआ ••?बताओ तो सही! अनिल पूछा।

अब हर दिन तुमसे एक ही बात कहते रहूं••?

 कौन सी बात ?

 देख लो अजी••

मैं कहती हूं कि•• कभी तो मेरी बातों को सीरियस होकर सुना करो! फिर तुम्हें पूछने की नौबत ही ना आए! 

“भाग्यवान” तुम्हारी छोड़ किसकी सुनता हूं•• चलो अब तो बता दो! 

देखो•• अब अंतिम बार कहे देती हूं समझना है तो समझो•• वरना भाड़ में जाओ!

 दिन-रात वहीं धमकी भाड़ में जाओ-भाड़ में जाओ! 

मैंने क्या बिगड़ा है तुम्हारा••जो ऐसी बातें करती हो?

 अनिल बोला। 

 हां•• तुमने तो नहीं•• परंतु 15 लोगों से बना तुम्हारा परिवार ! सबकी कर-कर के मैं परेशान हो गई हूं! अब मैं नहीं सह सकती! शक्ति बोली। 

 शक्ति क्या तुम एकल परिवार से आई हो•• जो तुम्हें संयुक्त परिवार के गुण-दोष की जानकारी नहीं? सब कुछ जान-समझ कर ही तुम्हारे पिताजी ने हमारे घर रिश्ता जोड़ा था!

 हां ••पता तो सब कुछ था उन्हें और मुझे भी•!

  उन्हें परिवार में उलझा देख ,मुझे अच्छा नहीं लगता लेकिन उन्हें संयुक्त परिवार में ही आनंद आता ! मेरी ख्वाहिश थी कि मेरा एक छोटा सा परिवार हो!

उस समय पिताजी की इच्छा को देखते हुए मैंने कुछ नहीं बोला  लेकिन अब तो बोल सकती हूं ना••?

इसीलिए कहती हूं कि 

  बाबूजी और मां से बात कर , चले चलो! 

“मैं यह नहीं कहती कि हमें शहर ही छोड़ना है!

 रहना तो इसी शहर में है•• परंतु अलग••ताकि सुकून से रह सकूं!कोई चिक-चिक नहीं, कोई झंझट नहीं ,कोई बंदीसे  नहीं ,कोई पाबंदी नहीं! बस आराम ही आराम! शक्ति एक लंबी गहरी सांस छोड़ते हुए बोली!

 क्या गारंटी है कि तुम तब भी दुखी नहीं रहोगी••? अरे यहां कम से कम तुम्हारी देखरेख में दोनों भाभी मौजूद रहती हैं और वहां जब मैं स्कूल चला जाऊंगा तो पीछे से तुम्हारा ख्याल कौन रखेगा?

 मुझे किसी की जरूरत नहीं••! अपना ख्याल खुद रख सकती हूं! शक्ति ने तो जैसे आज यहां से जाने की जिद मचा दी। पत्नी की जिद के आगे अनिल अपने आप को बेबस महसूस करने लगा। तुमने अलग रहने की जिद पकड़ ही ली है•• तो मुझे भी 10 दिन का समय चाहिए ताकि मैं सोच समझ कर फैसला ले सकूं••! अनिल अपना अंतिम निर्णय सुनाते वहां से चला गया।

 शक्ति आज फाइनली अनिल की इस कथन से काफी खुश थी क्योंकि पिछले चार महीनों में वह जाने कितनी बार इस बात को बोल चुकी थी परंतु हर बार अनिल नकार जाता और उसे यहीं रहने के लिए मना लेता। और आज जब इस तरह की सकारात्मक जवाब सुनने को मिली तो उसकी थकावट कोशों दूर चली गई। और मन ही मन अलग रहने की ख्याली पुलाव पकाने लगी।

 इधर अनिल शक्ति के स्वास्थ्य का ध्यान रखते कि उसे किसी तरह का टेंशन ना हो 10 दिन का मोहलत मांग लिया पर  इस घुटन से जूझने लगा कि अगर सच में अलग रहना पड़े तो परिवार के बिना रहना संभव नहीं ••पर करें तो क्या करें? इसी उधेड़बुन में उसे एक खयाल आया कि क्यों ना सारी बात मां-बाबूजी को बता, उनसे ही राय लूं ।आखिर उनसे बेहतर बता भी कौन सकता है। दोपहर के भोजन के बाद जब रमेश बाबू और कमला जी आराम फरमा रहे थे तभी अनिल उनके कमरे में आता है•• उसको आता देख, कमला जी बिस्तर से एक और सरक उसे अपने पास बैठने को कहती हैं ।अनिल मां के पैर के पास बैठ उनके पैरों को दबाने लग जाता है।

 क्या बात है बेटा !आज पता नहीं क्यों तू मुझे किसी उधेरबून में दिख रहा है? सब ठीक है ना?  कमलाजी प्रेम-पूर्वक बेटे से बोलीं।

 मां सब ठीक है••! वह आज•• कहते-कहते अनिल रुक गया। आज क्या••? पूरी बात बताओ हमें !रमेश जी बेटे से पूछे।

 फिर अनिल शक्ति की सारी बातें उन्हें बता देता है।

 मां-बाबूजी उसके कॉम्प्लिकेशंस की वजह से मैं ज्यादा जोड़ भी नहीं दे सकता! 

कुछ देर कमरें में शांति सी हो गई फिर रमेश जी चुप्पी तोड़ते हुए बोले••बेटा जब शक्ति की यह जिद है तो तू अलग ही रह ले!

 नहीं नहीं बाबूजी ऐसे कैसे अलग रह लूं ?आपको भी पता है कि मेरी कमजोरी परिवार है !

 बाहर न जाऊं इसलिए मैंने बैंक की जॉब नहीं की!पर स्कूल की नौकरी मैंने सिर्फ और सिर्फ आप सबके साथ रह सकूं इसलिए किया••और आप कहते हो अलग रह लो? अनिल के चेहरे पर पसीने चलने लगे ।

अरे नहीं पगले मैं तो सिर्फ कुछ महीनों के लिए बोल रहा हूं! फिर तू देखना शक्ति खुद-ब-खुद तुझे हम सब के साथ रहने को बोलेगी! बेटे के पसीने को अपने गमछे से पूछते हुए रमेश जी बोले।

 वह कैसे बाबूजी•••? उत्सुकता बस अनिल पूछ बैठा ।

बेटा यह बाल मैंने यूं ही नहीं सफेद किए हैं वर्षों का अनुभव है•• इसलिए बता रहा हूं! तू सिर्फ अलग-बगल ही मकान लेना ताकि तुझे भी दिक्कत ना हो! अब टेंशन मत ले•• और धैर्य रख! हम इस समय शक्ति को कोई भी टेंशन देना नहीं चाहते और ना ही  उसे फोर्स कर सकते हैं क्योंकि जब तक उसे परिवार के लाभ का खुद ब खुद समझ नहीं आता आप लाख जतन कर लो उसे समझा नहीं पाओगे! इसलिए बच्चे यह सब उसके ऊपर ही छोड़ दे!

रमेश जी की बात को समझते हुए अनिल कुछ दिन बाद अगल-बगल ही किराए का मकान लेकर शक्ति के साथ रहने लग जाता है। अब शक्ति काफी खुश रहने लगी। उसने आते ही दिन भर के लिए काम वाली लगा ली।   बस मुझे तो ऐसी ही जिंदगी चाहिए थी जहां परिवार वालों का रोक-टोक ना हो! 

 धीरे-धीरे समय भी बीतता जा रहा था और एक दिन उसने एक प्यारी सी बच्ची को जन्म दिया। घर में सभी  खुश थे। अस्पताल में परिवार के हर एक सदस्य बारी-बारी से शक्ति से मिलने आये लेकिन किसी ने भी उसे घर चलने को नहीं बोला।

  उसे ये बहुत बुरा लगा कि किसी ने उसे घर जाने को नहीं पूछा ।

 क्यों बोलेंगे तुम्हें चलने को? ये सब कुछ तो तुम्हारी ही मर्जी है! अनिल शक्ति से बोला।  

 जब डिस्चार्ज होकर वह अपने घर आई तो नौकरानी को सख्त हिदायत देते हुए बोली कि अब रोज तुझे आना होगा !पैसे चाहे जो मर्जी तू ले लेना लेकिन एक दिन भी नागा नहीं होना चाहिए।   दिन भर काम वाली होती तो शक्ति बच्ची का ख्याल रख लेती परंतु रात में बच्ची संभालना उसके लिए मुश्किल सा हो जाता।  कई रात तो वह सो भी नहीं पाती। जिसकी वजह से वह चिड़चिड़ी सी रहने लग गई ।

  शक्ति!जल्दी से नाश्ता लगा दे•• मैं स्कूल के लिए लेट हो रहा हूं! अनिल टेबल पर अख़बार ले बैठते हुए बोला।

 तुममे थोड़ी भी अकल है या अकल बेच आए हो? गुस्से से शक्ति बोली।

 क्या मतलब?

 मतलब यह कि रात भर बच्ची ने मुझे जगाया और तब तुम घोड़ा बेचकर सोए थे! उस समय तुम थोड़ी देर बच्ची संभाल लेते तो मुझे भी थोड़ा सोने का मौका मिल जाता। 

अब तक कामवाली दीदी नहीं आई? शक्ति घड़ी देखते हुए बोली।

 तो मैं क्या करूं मेरी आज स्कूल में जरूरी मीटिंग है जाना तो मुझे पड़ेगा! बगैर नाश्ते के ही मैं चला जाता हूं लेकिन मुझसे ऐसी उम्मीद मत रखना कि मैं तुम्हारे साथ साथ जागूं!

 क्यों यह अकेली मेरी ही बच्ची है? आंखें तरेरते हुए बोली।

 हां तो मैं भी कर रहा हूं ना उसके लिए! शाम 5:00 बजे से तो तुमने मेरी ड्यूटी दे रखी है!अब रात में मैं यदि जागूंगा•• तो स्कूल के लिए लेट हो जाऊंगा!

 हां बात तो तुम्हारी ठीक है तुम्हें भी सोना जरूरी है! बात स्वीकारते हुए शक्ति बोली।

 देखो 10:00 बज गए दीदी अब तक नहीं आई? तभी शक्ति के मोबाइल पर काम वाली का फोन आता है।

 क्या आपको बुखार है ••?

हां मैडम मैं दो-चार दिन नहीं आऊंगी!

 फिर तो रहने दो !

मायूस होकर शक्ति ने फोन रख दिया । 

आज मैं सब के साथ रहती तो इतनी समस्याएं नहीं होती!

 मैं ना सोने की वजह से चिड़चिड़ी रहने लगी हूं!घर पर सभी मेरा कितना ख्याल रखते थे! 

आज मुझे बच्ची को अकेले संभालना नहीं पड़ता सारा काम हाथों-हाथ हो जाता! 

अब तो ठीक से अपना नित्य -कर्म भी नहीं कर पाती हूं! कहते हुए शक्ति की आंखें भर आई।

 तो मैंने नहीं कहा था•• तुम्हें अलग रहने के लिए ?तुम्हारी इच्छा थी!  अनिल बोला। 

 हां•• मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई अब इतनी भी शर्मिंदगी महसूस मत कराओ।

  परिवार की क्या अहमियत होती है•• इस समय मुझे एहसास हो रहा है!

चलिए अपने घर•• मुझे नहीं रहना!  मां-बाबूजी तथा अन्य सभी सदस्यों से मुझे माफी मांगनी है! 

अनिल अब काफी खुश था। उसे बाबूजी की कही बात समझ में आने लगी कि क्यों वह शक्ति की इच्छा को बड़े आसानी से मान गए। शायद वह सब जानते थे कि समय आने पर वह सब समझ जाएगी और अभी अगर हम उसे जाने से मना करेंगे तो फिर उसे परिवार की अहमियत पता नहीं चल पाएगा।

दोस्तों #संयुक्त परिवार या एकल परिवार सभी में कुछ ना कुछ गुण- दोष होते  हैं। 

परिवार की अहमियत हमें उस समय महसूस होती है जब हम किसी संकट में होते हैं और उस समय वही हमें काम आते हैं।  

होली हो या दीपावली, ईद हो या क्रिसमस सभी त्योहार परिवार के बिना अधूरा है।

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 धन्यवाद।

 मनीषा सिंह।

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