उस जमाने की लड़कियां – रवीन्द्र कान्त त्यागी

सर्दियों का मौसम और गुनगुनी धूंप में बैठकर मूंफली कुड्कूड़ाने का मजा एक फोन ने खराब कर दिया था। शहर के एक बड़े ट्रांसपोर्टर मेरे एक अनन्य मित्र थे। उनका फोन आया कि गुड़गांव (तब यही नाम था) से उनका ट्रक चोरी हो गया है। लछमन यादव नाम का ड्राइवर अभी जॉब पर रखा था। वही ट्रक लेकर भाग गया है। मगर लक्षमन का हमारे पास न कोई फोटो है न पता।

खैर गाजियाबाद के पूरे ट्रांसपोर्ट नगर में पूछताछ के बाद पता चला कि लछमन यादव नाम का ड्राइवर पहले भी खालसा ट्रांसपोर्ट पर ड्राइविंग कर चुका था। उनके पास उसका पता लिखा हुआ था।

“अरे वही न, दुबला सा है, सांवला सा।”

“हाँ हाँ। दुबला सा था। सांवला सा। मैंने तो एक बार ही देखा था।”

“माथे पर चोट का निशान था। लगभग तीस साल का होगा।”

“हूँ… हाँ शायद था। हाँ इतनी ही उम्र होगी। पक्का वही होगा जी। आप पता दो। हम दबोचते हैं साले को गाँव में जाकर।” इस छोटी सी अपुस्ट वार्ता के आधार पर हमारा काफिला हरयाणा पुलिस के दो हवलदार और एक सब इन्सपैक्टर को लेकर बताए गए पते की तरफ कूच कर गया। गाँव कूल्हेरिया की ढाणी, जिला इटावा।

रास्ते भर हरयाणा पुलिस का कड़क जवान दरोगा अपनी मूछों पर ताव देते हुए अपनी बहदुरी और जासूसी दिमाग की डींग हाँकता रहा। “अजी म्हारे हरयाणा की पुलिस सै उप्पी के बदमास इतना खौफ खावें कि जमना पार करने का ताव ना लात्ते। तभी थारे उप्पी में इतना क्राइम है पर हमारे हरयाणा में शांति। हम तो सीधे गोली से उढ़ाते हैं जी।”

दोपहर तीन बजे हमारा चार गाड़ियों का काफिला संदिग्ध के गाँव पहुँच गया था। पुलिस और इतनी बड़ी संख्या में लोग देखकर भीड़ इकट्ठी हो गई। लछमन के बारे में पूछने पर लोगों ने बताया कि वो तो अरसे से गाँव में नहीं आया। यहाँ तो उसकी बुढ़िया माँ अकेली रहती है।

दरोगा जी भीड़ के आगे आगे चलते हुए पूरे रुआब के साथ बुढ़िया के टूटे से मकान में पहुंचे। एक कृशकाय सी वृदधा चूल्हा फूँक रही थी।

“कहाँ है तेरा लड़का। कितने बहन भाई हैं। बाकी लोग कहाँ रहते हैं। कौन कौन रिश्तेदार हैं जिनके यहाँ लछमन जा सकता है। बता बुढ़िया। चोरी का माल तो यहीं लता होगा।”

“हमन्ने कछु नाय पतो भैया। एक लरिका और एक मौड़ी है। और कोई नाय मेरौ। काऊ सै पूछ लो गाम मेँ। छोरा को गाम में आए छह महीना है गए।”

“ तेरी लड़की कहाँ रहती है बुढ़िया।”

“फीरोजाबाद भ्याई है जी। दामाद चूड़ी के कारखाने में मुलाज़िम है।”

“चलो, लड़की का घर बताओ। वहीं मिलेगा हरामखोर। डालो जी बुढ़िया को गाड़ी में।”

गाँव के कुछ लोगों ने हल्का एतराज किया मगर दरोगा जी की दबंगई के सामने उनकी एक न चली और वृद्धा को गाड़ी में बिठकार काफिला वहाँ से लगभग 60 किलोमीटर दूर फीरोजाबाद के लिए दौड़ पड़ा।

रास्ते में एक और मजेदार घटना हुई थी जिस से हरियाणा के सुपर कौप साहब के हौसले का पता भी चल गया।

रात होने लगी थी और हमारा काफिला एक सूनसान सी सिंगल रोड पर दौड़ रहा था। आगे नहर के किनारे से दो रास्ते कटते थे। वहाँ पुलिस की गारद पड़ी हुई थी। उन्होने हमारी गाड़ी को रुकने का इशारा किया। इत्तेफाक से बलैरो की अगली सीट पर मैं बैठा था बीच में अन्य लोग और पीछे की सीट पर हरियाणे के दरोगा जी बैठे थे। यूपी पुलिस का एक इंस्पेक्टर मेरे नजदीक आया। उसने धीरे से कहा “आगे छवीराम का गैंग पड़ा हुआ है। इस रास्ते से जाना सेफ नहीं है। आप लोगों को बीस किलोमीटर घूमकर दूसरे रास्ते से जाना होगा।”

मैं भी हरियाणे के दरोगा जी की डींगों से पक चुका था। छेड़छाड़ के मूड में आ गया। मैंने कहा “अजी छवीराम हमारा क्या बिगाड़ लेगा। हमारे साथ एक हरियाणा के हथियारबंद बहादुर दरोगा जी और दो सिपाही हैं।” उधर पीछे की सीट पर सन्नाटा पसरा था। मैंने चालक से कहा “चलो जी। शॉर्ट रास्ते से ही चलेंगे। आज छवीराम को भी देख लेंगे।”

पीछे से घिगियाती सी आवाज आई। “ना ना, क्या कर रहे हो। अपनी यूप्पी में हमें मरवाणे को लाये हो क्या। गाड़ी जल्दी बैक करो जी।” सारी गाड़ी में हंसी का फ़ौआरा फूट पड़ा। उसके बाद तो दरोगा जी के बहदुरी के किस्से बंद हो गए थे।

अब मैं आप को इस सच्ची कहानी का सब से संवेदनशील भाग सुनाना चाहता हूँ जिस घटना ने मेरे समक्ष नारी चरित्र की एक ऐसी परत खोलकर रख दी जो मेरे लिए तो अनदेखी अनसुनी थी।

उत्तरप्रदेश की गंगा जमनी संस्कृति से ओतप्रोत चूड़ियों के कारखानों के लिए मशहूर शहर फीरोजाबाद गहरी नींद के आगोश में था। भयंकर सर्दी की इस रात में सड़कों पर कभी कभी कोई कुत्ता गरम सी जगह की तलाश में कांऊ कांऊ करता हुआ इधर से उधर भटकता दिखाई दे जाता, बस।

पतली पतली गलियों में भटकता हुआ हमारा समूह गाड़ी में सुकड़ी सिमटी सी बैठी वृद्धा की निशानदेही पर एक पुराने खंडहर से मकान के सामने रुक गए।

“मेरौ दामाद बड़ौ सीधौ है बेटा। वाकू कछु ना कहियो पुलस वारे भैया। हाथ जोरूं।” वृदधा ने गुहार लगाई मगर भारत के पुलिस वाले इतनी कमजोर आवाज सुनने के आदी नहीं हैं। वे ज़ोर ज़ोर से दरवाजा पीटने लगे। कुछ पल बाद ही एक दुबला पतला, कुपोषण का शिकार सा चूड़ियों के कारखाने की भट्टी के सामने तप तपकर पीला पड़ गया लड़का कच्छा बानियान पहने ही बिस्तर से उठकर बाहर आया। बाहर पुलिस और इतने आदमी देखकर उसकी आँखें फैल गईं। दरोगा जी ने एक बार बुढ़िया की तरफ देखा और उसकी आँखों में स्नेह और करुणा के भाव देखकर ही समझ गए कि यही है हमारा शिकार। वे उस दुबले से लड़के पर ऐसे झपटे जैसे कोई दुर्दांत डाकू दबोच लिया हो।

आनन फानन में लड़के को घसीटकर जीप में डाल दिया गया। भीतर से उसकी पत्नी चीखती हुई बाहर निकली और काँपते हुए जीप में पड़े अपने पति के ऊपर एक मैली सी गुदड़ी डाल दी। फिर वो एक एक आदमी से गुहार लगाने लगी कि हम गरीब मजदूर हैं। हम ने कुछ नहीं किया है। मगर बिना देर किए गाड़ियों के इंजिन घरघरा उठे। शांत सोये मुहल्ले के लोग जाग न जाएँ और कोई उपद्रव खड़ा न करें इसलिए गाड़ियों का काफ़िला पलों में फ़र्राटें भरने लगा। पुलिस वाले ऐसे खुश थे जैसे कोई बड़ा मुजरिम पकड़ लिया हो। आरोपी के दो दो निकट के परिजन हमारे कब्जे में हैं। अब देखें मुजरिम कहाँ जाता है भागकर। डकैतों और अपराधियों का इलाका है साहब। यहाँ हर घर में अवैध कट्टे और असहले पाये जाते हैं। जितनी जल्दी हो सके यहाँ से निकलो।”

शहर से बाहर निकलकर सबने राहत की सांस ली। रात का एक बजा चाहता था। दोपहर से किसी ने कुछ नहीं खाया था। शहर से लगभग पाँच छह किलोमीटर चलने के बाद एक पैट्रोल पंप और ढाबा था। वहीं हम लोग कुछ जलपान करने के लिए रुक गए।

ट्रांसपोर्टर नस्ल के आठ घंटे के भूखे लोग खाने पर टूट पड़े। पुलिस वाले और कई अन्य लोग  नौनवैज की मांग करने लगे। मैं भी चाय के साथ एक सैंडविच खाकर सड़क के पास खड़ी गाड़ियों के पास आकर खड़ा हो गया। सोचकर ही रौंगटे से खड़े हो जाते कि यहाँ की फिजाँ में आज भी डाकुओं का खौफ़ तैरता है। अपहरण होते हैं जिन्हे पकड़ कहा जाता है और फिरौती वसूल की जाती है। लोग तो कहते हैं कि छवीराम जैसे दस्युओं की अदालतें लगती है जहां इंसाफ किया जाता है। हे भगवान, किसी तरह इस इलाके से सुरक्षित निकल जाएँ।

तभी सूनसान सड़क पर दूर एक छाया सी दौड़ती दिखाई दी। भूत प्रेत को तो मैं नहीं मानता किन्तु एक पल के लिए नसों में खून जम सा गया। आखिर ये क्या बला है इस भयानक ठंडी रात में भागती सी एक अकेली मानव आकृति। मैंने आवाज लगाकर अन्य लोगों को भी सड़क के किनारे बुला लिया। जब आदमी रज़ाई, कंबल या अलाव से दूर होने की कल्पना भी नहीं कर सकता, कौन होगा ये। क्या कोई भूत प्रेत या छलावा।

धीरे धीरे मानव आकृति निकट आ रही थी। पुरुष… अरे नहीं। ये तो कोई नारी है शायद। नारी… यहाँ। इस समय। सभी लोग सांस रोके उस आकृति को निकट आते देख रहे थे। एक दो कमजोर दिल लोग होटल की ओर भागे या गाड़ी में जाकर छुप गए।

बेतहाशा फूली हुई सांस, जर्जर हो गए कपड़े और लहूलुहान पाँव। आँखें भय से फैली हुई और चेहरे पर वीभत्स से भाव।

नारी के चेहरे पर प्रकाश पड़ते ही गाड़ी में बैठा हुआ गिरफ्तार लड़का चिल्लाया “रुकमी…।” शोर सुनकर ऊँघती सी वृद्धा चिल्लाते हुए आगंतुक महिला की ओर लपकी और लड्खड़ाकर गिर पड़ी मगर महिला ने किसी की ओर ध्यान नहीं दिया और कटे वृक्ष की तरह पुलिस के दरोगा के पाँवों में गिर पड़ी और चीखने लगी “हमन्ने कछु नाय करौ दरोगा जी। हम गरीबन कू माफ करदो जी।”

अबतक सारा मामला सब की समझ में आ चुका था। महिला उस वृद्धा की बेटी और गिरफ्तार किए गए लड़के की पत्नी थी। उसकी हालत और चित्कार सुनकर मेरी आत्मा रो उठी। हाय रे भारत की नारी। अपना सुहाग बचाने के लिए जंगली जानवर और उन से भी हिंसक रक्तपिपासू हिंसक इन्सानों की परवाह किए बिना इस भयानक ठंडी रात में वो सड़क पर भागी चली आ रही थी।

मैंने दोनों हाथों से महिला को ऊपर उठाया। उसके सर पर हाथ फिराते हुए कहा “संभालो बहन। खुद को संभालो। देखो तुम्हारा पति सुरक्षित है। हम उसे कुछ नहीं होने देंगे।”

मित्र का किशोर वय लड़का महिला की स्थिति देखकर भावुक हो गया और पुलिस के दरोगा से झगड़ने लगा। “अरे भैया, क्यूँ हमारे सर पर पाप क्यूँ मंढ रहे हो। इन गरीब लोगों को परेशान करके क्या मिलेगा। इनकी शक्ल से कहीं दिखता है कि ये क्रिमिनल हैं।”

“तुम नहीं समझोगे बच्चे। ये मामले ऐसे ही हल होते हैं। इन साले क्रिमिनल्स को ऐसे ही दबाना पड़ता है।”

“जब महिला की हिचकियाँ कुछ थम गईं तो मैंने उस से पूछा “बहन, इस बियाबाँन में ऐसे भागने मे तुम्हें डर नहीं लगा।”

“पुलस वारे पूछताछ के नाम पै घर सै उठा ले जात हैं साब और एंकोटर कर देत है साब। यहाँ रोज कौ ही काम है। हमन्नै सोची पुलस की गोरी (गोली) के सामने खड़े हो जाएंगे कि पहले हमें मारो। ये ना रहे तो हम ही जी कै का करेंगे।” अपने पति को जीवित देखकर उस भोली सी ग्रामीण बाला ने अपनी हिचकियों पर नियंत्रण करते हुए कहा।

“तेरे पति को पुलिस कस्टडी में मरने नहीं दूंगा बहन, ये मेरे गारंटी है।” कहते हुए मेरी भी आँखें भीग गईं।

इस कहानी का अतिसंवेदनशील पक्ष तो यहीं समाप्त हो जाता है। बाद में हमने उस अल्पवय लड़की को गाड़ी से उसके घर छुड़वा दिया था किन्तु बाद में इस पूरे घटनाक्रम का एक क्रूर चेहरा सामने आया।

लगभग 12 दिन की पैरवी करने के बाद वृद्धा और उसके दामाद को गुड़गांव की अदालत ने जमानत दे दी थी।

लगभग चार महीने के बाद एक दुबला पतला, सांवला सा लड़का ट्रांसपोर्टर मित्र के ऑफिस में आया। उसने कहा “मेरा नाम लछमन यादव है साब। मैं तो बुलंदशहर में ट्रक चलाता हूँ। मैंने कब आप के यहाँ नौकरी करी थी साब। आप ने मेरे बहनोयी को और मेरी माँ को उठवा लिया। साब आप ने बिना जानकारी लिए हमारे साथ बड़ा जुरम किया है। गाँव में सब मेरी माँ को चोर की माँ बोलने लगे साब, बहनोयी की नौकरी छूट गई।”

अपुष्ट पहचान के आधार पर अंधेरे में तीर मारने और पुलिस की क्रूर कार्यशैली के कारण एक परिवार बर्बाद हो गया था मगर उस निर्दोष लड़के को कोई सौरी बोलने वाला भी नहीं था।

रवीन्द्र कान्त त्यागी

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