Post View 269 पारिवारिक कलह इंसान को तोड़के रख देती है। हां ठीक ही कहा , बाहरियों से तो आदमी लड़ सकता है पर अपनों से नहीं।भाई लड़े भी तो कैसे ,बड़े हैं तो भी सुनो ,छोटे है तो भी। इसलिए सिर्फ अपने भीतर ही मंथन करो और मुस्कुराते रहो। यही कहानी हर घर की … Continue reading सहनशक्ति – कंचन श्रीवास्तव
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