सिनेमाघर – कंचन शुक्ला

Post View 160 मात्र सोलह की चकोर को उन्नीस के रचित ने उतना भी बोल्ड नही समझा था, जितना वो आज यहाँ, सिनेमाघर में पेश आने का प्रयत्न कर रही है। अंटशंट अवस्थाओं के प्रारूप जैसे ही सीमा से बाहर हुए। उसे आँखे तरेरता हुआ, वह वहाँ से चला गया। चकोर ने पहले तो रचित … Continue reading सिनेमाघर – कंचन शुक्ला