वनवास – तृप्ति उप्रेती

Post View 1,140 “रुकमा,ओ रुकमा…. चल री, गायों को घर ले चलते हैं। सांझ घिरने में तो अभी बखत है,पर देख तो  कैसे घटाटोप  बादल घिर आए हैं। लगता है खूब बरसात गिरेगी।” “आई काकी, जरा चूल्हे के लिए लकड़ियां तो छील लूं”,कहकर रुकमा दनादन दरांती से पेड़ों की सूखी छाल निकालने लगी। बड़ा सा … Continue reading वनवास – तृप्ति उप्रेती