Post View 226 हरीतिमा से अचानक मेट्रो में उंसकी पुरानी सखी मिल गयी। पहले तो दोनो ध्यान से देखकर पहचानने की कोशिश करती रही फिर, रवीना ने हाथ बढ़ाते हुए कहा, “हरीतिमा हो ना, मेरी आँखें धोखा नही खा सकती।” “सही पहचाना, कैसी हो।” “बढ़िया।” रवीना ने कहा, “मैं तो कॉलेज जा रही, प्रोफ़ेसर हूँ … Continue reading परख – भगवती सक्सेना गौड़
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