क्या यही प्यार है ? (भाग  -3)  – संगीता अग्रवाल 

कुछ दिनों की कोशिश के बाद मीनाक्षी ने केशव की नौकरी अपने ऑफिस मे लगवा दी। केशव शुरु मे ये नौकरी करना नही चाहता था क्योकि उसे ऐसा लगता था एक ऑफिस मे नौकरी होने से कही दोनो मे दूरियां ना आ जाये या कही किसी मोड़ पर दोनो का अहम ना टकरा जाये। 

तब मीनाक्षी ने उसे समझाया कि फिलहाल उसका पैरों पर खड़ा होना जरूरी है वो इस नौकरी के साथ दूसरी नौकरी की तलाश कर सकता है तो ना चाहते हुए केशव ने उसके ऑफिस मे नौकरी शुरु कर दी।

वहाँ मीनाक्षी का अपने पिता की वजह से अलग ही रुतबा था जबकि केशव कम्पनी के लिए एक मामूली कर्मचारी था। दोनो की नजदीकी का जब ऑफिस मे पता लगा तो तरह तरह की बातें होने लगी। अब जब बात उठती है तो दूर तलक भी जाती है। ऐसा ही कुछ यहाँ भी हुआ मीनाक्षी और केशव के प्रेम प्रसंग के चर्चे कम्पनी से निकल सुरेंद्र जी के कानो मे पहुंचे।

” बेटा ये केशव कौन है ?” एक शाम जब मीनाक्षी ऑफिस से घर लौटी तो सुरेंद्र जी ने पूछा।

” वो पापा मेरे साथ काम करता है !” मीनाक्षी सिर झुका बोली।

” सिर्फ काम करता है ?” सुरेंद्र जी एक एक शब्द पर जोर देते हुए बोले।

” वो ….पापा …केशव और मैं…मै और केशव एक दूसरे को पसंद करते है !” अटकते अटकते आख़िरकार मीनाक्षी ने बोल ही दिया।

” हम्म तुम दोनो एक दूसरे को पसंद करते हो ये तो ठीक है पर क्या तुम दोनो को एक दूसरे के पारिवारिक स्तर का पता है क्या केशव जानता है तुम किसकी बेटी हो ओर क्या तुम जानती हो केशव किस परिवार से सम्बन्ध रखता है !” सुरेंद्र जी गंभीर स्वर मे बोले।

” जी पापा हम सब जानते है वैसे भी  प्यार इन सब बातों को कहाँ देखता है !” मीनाक्षी सिर झुकाये हुए बोली।




” पर बेटा एक समय ऐसा भी आता है जब प्यार की जगह असुरक्षा की भावना घर करने लगती है खुद को हीन समझने लगता है इंसान क्योकि वो सामने वाले से कम सक्षम होता है ऐसी परिस्थिति मे प्यार का टिके रहना मुश्किल हो जाता है !” सुरेंद्र जी ने समझाया।

” पापा आपकी बेटी भले अमीरी मे पली है पर उसके साथ साथ आपके और माँ के द्वारा दी गई संस्कारो की दौलत भी है उसके पास वो भले मखमल के बिस्तर पर सोती है पर पैर जमीन पर टिकाने से गुरेज नही करती आप बेफिक्र रहिये मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि मेरे और केशव के बीच कभी कोई दीवार नही आएगी केशव से शादी करने के बाद उस घर मे मैं केवल उसकी पत्नी रहूंगी आपकी बेटी मै मायके तक ही सिमित रहूंगी !” मीनाक्षी बोली।

” शाबाश मेरी बच्ची मैं यही सुनना चाहता था तेरे मुंह से ।यक़ीनन केशव अच्छा लड़का है उसका परिवार भी अच्छा है बस तुम दोनो समझदारी से चलना !” सुरेंद्र जी बेटी को गले लगाते हुए बोले।

” जी पापा !” मीनाक्षी चहक कर बोली आखिर उसके प्यार को मंजिल मिलने का वक्त जो आ गया था।

मीनाक्षी के पिता ने केशव के पिता का नंबर लिया और उन्हे फोन करके  सपत्नी उनके घर आने को कहा।

” देखिये कैलाश जी मैं आपके बेटे केशव के साथ अपनी इकलौती बेटी का रिश्ता करना चाहता हूँ !” सुरेंद्र जी ने केशव के पिता कैलाश जी और माता सरला जी के आने पर उनसे कहा। 

” पर कहाँ आप कहाँ हम ये कैसे संभव हो सकता है !” हैरानी मे डूबे कैलाश जी पत्नी को देखते हुए बोले क्योकि उन्हे केशव और मीनाक्षी की प्रेम कहानी के बारे मे कुछ पता नही था। 




” देखिये कैलाश जी शायद आप नही जानते पर मेरी बेटी और आपका बेटा साथ पढ़े है और साथ ही नौकरी करते है और दोनो एक दूसरे को पसंद भी करते है। चुंकि दोनो बच्चे अपने पैरो पर खड़े है तो मुझे लगता है अब हमें इनकी शादी कर देनी चाहिए !” सुरेंद्र जी बोले।

” जी पर …क्या आप हमारे बारे मे सब जानते हुए ये बात बोल रहे है ?” कैलाश जी सम्भलते हुए बोले।

” देखिये कैलाश जी बच्चे बालिग है हम आप उन्हे समझा सकते है बाकी अपने फैसले लेने को वो स्वतंत्र है और मेरी बेटी का ये अटल फैसला है कि वो आपके बेटे से ही शादी करेगी हमने उसे सब ऊंच नीच समझाई पर वो टस से मस नही हो रही तो हम भी बेवजह जोर नही दे सकते कल को बच्चो ने खुद अपना फैसला ले लिया तो हम समाज को मुंह नही दिखा पाएंगे !” सुरेंद्र जी बोले। 

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