कच्चे धागे से बुने रिश्ते – संजय मृदुल

Post View 839 सुनो अखिल! अब तुम्हें यहां आने की जरूरत नहीं। तुम्हारे पापा है मुझे सम्हालने के लिए। जब जरूरत थी तब तुम्हे नहीं लगा कि यहां होना चाहिए तुम्हें, तो रोज यूँ आकर दिखावा मत करो। अखिल ने कुछ कहना चाहा पर माँ ने चादर ओढ़ कर करवट बदल ली। अखिल चुपचाप बाहर … Continue reading कच्चे धागे से बुने रिश्ते – संजय मृदुल