एक सहारा – रीमा महेंद्र ठाकुर

Post View 700 अनछुई डोर, विश्वास एक सहारा “” रीमा महेंद्र ठाकुर, कृष्णा चंद्र “ पारूल  लगभग दौडती हुई, फुटपाथ पर कदम बढा रही थी!  भारी टार्फिक की वजह से मानव ने पारूल को सडक के उस ओर  ही छोडा दिया था!  यहाँ से चली जाओगी,  मानव ने पूछा “ हा जी, आंखों ही आंखों … Continue reading एक सहारा – रीमा महेंद्र ठाकुर