ज़िंदगी – बेला पुनिवाला

    आज मैंने गाजर का हलवा बनाया था, तो सोचा हेमा आंटी को जाकर दे आती हूँ, वह हमारे पड़ोस में ही रहती हैं और उनसे मेरा रिश्ता एक माँ-बेटी के रिश्ते जैसा ही है। इसी बहाने उनसे मिल भी लूँगी, दो दिन से ऑफिस के काम की वजह से उनसे मिल ही नहीं पाई। मैं उनके घर की डोर बेल बजाने ही वाली थी, कि अंदर से किसी के रोने की आवाज़ सुनाई दी। मैं मन ही मन बड़बड़ाई, ” ये देखो, आंटीजी फिर से रोने लगी पता नहीं, आज फ़िर से अकेले में बैठे हुए उन्हें क्या याद आ गया होगा ? ” लेकिन सोचते-सोचते मैंने बेल बजा ही दिया, बेल बजते ही अंदर से रोने की आवाज़ बंद हो गई। तब मैंने दूसरी बार बेल बजाया, तब जाकर आंटीजी ने दरवाज़ा खोला।

          मैंने आंटीजी से कहा,  “आंटीजी आप क्या कर रही हैं ?  मैं कब से डोर बेल बजा रही हूँ, मैंने आज गाजर  का हलवा बनाया है,  वही देने आई हूँ, सोचा इसी बहाने आप से बातें भी हो जाएँगी ज़रा चख़ के तो बताइए कैसा बना है गाजर का हलवा ? ” ( आंटी जी को गाजर के हलवे का डिब्बा देते हुए )

       लेकिन हेमा आंटी तो मेरी बात सुनकर फिर से फूट-फूट कर रोने लगी। उनको हँसाने के लिए मैंने हेमा आंटी से फ़िर से कहा, ” क्या हुआ आंटी जी ? क्या आपको गाजर का हलवा पसंद नहीं ? आपको कुछ और चाहिए था ? मुझे क्या  पता ? अच्छा चलो, ठीक है, इसे कचरे के डिब्बे में फेंक देती हूँ ।

       मेरी बात सुनते ही हेमा आंटी ने मेरे हाथ से डिब्बा छीन लियाऔर कहा, ” अरी पगली किस ने कहा तुझसे, कि मुझे गाजर का हलवा पसंद नहीं है ? ” कहते हुए आंटी जी रोते-रोते हँसने लगे और डिब्बे में से हलवा खाने लगी और हलवा खाते-खाते कहने लगी कि बहुत अच्छा बना है हलवा और दूसरे ही पल हँसते हँसते फ़िर से रोने लगी । उनको रोते हुए देख, मेरी भी आँखें भर आई और मैंने उनको गले लगा लिया। कुछ पल के लिए मैं उनका दर्द महसूस करने की कोशिश करती रही, मगर जिसका दर्द हो वही जाने।

आंटी जी का चेहरा अपने हाथों में लेते हुए मैंने उनसे कहा, क्या हुआ आंटी जी ? आज फ़िर से क्यों अकेले में रो रहे थे ? आपको कुछ चाहिए था ? या आप से किसी ने कुछ कहा क्या ? मगर कुछ देर तक आंटी जी बस रोती ही रही, बहुत समझाने के बाद उन्होंने कहा, कि बेटी, ” अब तुम से क्या छुपाना ? तुम्हारे अंकल के जाने के बाद मैं तो जैसे बिल्कुल अकेली पड़ गई हूँ। वो थे तो उनके लिए चाय बनाना, खाना बनाना, कपड़े धोना, मंदिर जाना, बाहर घूमने जाना, इधर-उधर की बातें करना, कभी रुठना-तो कभी मनाना, कभी लड़ना-कभी झगड़ना,

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कभी खरी-खोटी भी सुनाना,ये सब करते थे और अच्छा भी लगता था। वो थे तो पूरे घर में कितनी रौनक थी, अब एक सन्नाटा सा छा गया है, मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता। मेरी बेटी नैना की शादी यहाँ से दूर बंगलोर शहर में हुई है और वह जाइंट फेमली में रहती है। फ़ोन पर रोज़ बातें हो जाती हैं मैं चाहकर भी उसके साथ नहीं रह सकती और वो चाहकर भी मेरे पास नहीं आ सकती। तुम्हारे अंकल के बिना पूरा दिन मेरा कैसा भारी सा जाता है, तुम्हें पता नहीं, मैं घर संभालती थी तो वो बाहर का सारा काम, मतलब की बैंक का काम, उनका ऑफिस, बिल भरना,

lic का पेमेंट, म्यूच्यूअल फण्ड का पेमेंट, पैसों का सारा हिसाब किताब और भी बहुत कुछ वही सँभालते थे, मुझे उन्होंने कभी कुछ भी नहीं बताया, मुझे जब भी जितने भी पैसों की ज़रूरत होती, बिना कोई सवाल किए मेरे हाथ में रख देते थे। बैंक में जाती हूँ, तो कहते हैं कि आप ऑनलाइन भी सब कुछ कर सकती हैं अब इस ऑनलाइन के ज़माने में मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा, कि कैसे करूँ सब ? आंटी जी कहते-कहते बस सिर्फ और सिर्फ रोए जा रही थी। 




      मैं समझ सकती थी, कि हेमा आंटी ज़्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी और ऊपर से इस ऑनलाइन के ज़माने में एक अकेली औरत के लिए ये सब कुछ कितना मुश्किल हो जाता है इसलिए मैंने उनको दिलासा देने की कोशिश करते हुए कहा, कि ओफ्फो आंटी ! बस इतनी सी बात और इतनी सी बात के लिए आप इतना रो रही हो, मुझसे कह दिया होता, क्या मैं आपकी बेटी नहीं हूँ ? क्या अंकल जी मुझे अपनी बेटी से कम समझते थे ?

        मेरी बात सुनकर आंटी जी ने कहा, नहीं ऐसी बात नहीं है बेटी, तुम्हारा अपना भी तो घर है, पति है, ऊपर से तुम ऑफिस भी तो जाती हो, कितनी सारी ज़िम्मेदारी है तुम्हारे ऊपर तो और ऊपर से मैं तुम्हारी ओर तक़लीफ़ बढ़ाना नहीं चाहती।

     मैंने कहा, तक़लीफ़,  उस में क्या तक़लीफ़ ? मैं तो ये चुटकी बजाते कर लेती हूँ। तभी उनकी आँखें,  मेरी ओर शर्म से फ़िर झुक जाती है, मैं तुरंत ही उनकी परेशानी समझ गई और कहा, कि ” मेरे कहने का मतलब ये है, कि अगर मैं ये सब आसानी से कर लेती हूँ, तो आप भी तो ये सब कुछ कर ही लेंगे ना, उस में कौन सी बड़ी बात है, मैं आपको सब कुछ सिखा दूँगी। “

    तब आंटी जी ने कहा, कि ” मगर बेटी मुझे तो अंग्रेजी आती भी नहीं है। “

   मैंने कहा, ” तो क्या हुआ ? आप नहीं जानते मोबाइल में आप हिंदी में सब लिख-पढ़ सकते हो। “

   आंटी जी ने कहा, ” क्या सच में ऐसा होता है ? “

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  मैंने कहा , ” क्यों नहीं ? आज कल सब कुछ घर बैठे ही हो जाता है, आपको किसी चीज़ के लिए बाहर जाने की ज़रूरत नहीं। “

    आंटी जी ने कहा कि ” मगर मुझे फ़िर भी बहुत डर लग रहा है, गलती से अगर कुछ गड़बड़ कर दी, मैंने तो ? “

   मैंने कहा, ” तब भी कुछ नहीं होगा, अगर कुछ ऐसा-वैसा हो गया तो मैं देख लूँगी। अब आपको सब कुछ सिखाने की ज़िम्मेदारी मेरी। “




   आंटी जी ने कहा, ” मगर बेटी, तुम अब भी समझ नहीं रही हो, मेरे लिए ये बहुत मुश्किल है। “

   मैंने कहा, ”  मैं सब समझ रही हूँ, आप क्या कहना चाहती हैं लेकिन आप कोशिश तो कर ही सकती है ना ? अगर नहीं आया, तब भी कोई बात नहीं, हम कुछ और सोचेंगे, मगर आप शुरू तो करो। “

   आंटी जी  ”  मगर बेटी… “

  ,मैंने कहा, ” अगर मगर कुछ नहीं, देखिए आंटी जी, मैं आपको समझाती हूँ, जैसे की

कि मेरे लिए ऑफिस का काम करना, या ऑनलाइन मोबाइल पर सब कुछ करना जितना आसान है, उतना ही आसान आप के लिए खाना बनाना है, है ना ? मुझे भी शादी से पहले कहाँ खाना बनाना आता था।  धीरे-धीरे सब सीख लिया।  फ़िर भी अब भी मुझ से आप के जितना अच्छा खाना बनाना और आप को जितनी dishes बनानी आती है, मुझे नहीं आती। आप जैसा घर सँभालती आई है, वह सब मेरे लिए आज भी मुश्किल ही है, मगर जैसे-तैसे कर ही लेती हूँ, इसी बजह से कई बार मेरे और रितेश के बीच में झगड़ा भी हो जाता है, but its ok, हो जाता है। दूसरे दिन हम दोनों एकदूसरे को सॉरी भी बोल देते है।  तो आप भी तो ये सब सीख ही सकती है ना ? ज़्यादा नहीं तो थोड़ा बहुत समझ में तो आएगा। इस से आपको बार-बार किसी और पर निर्भर भी नहीं रहना पडेगा, अगर आप अपना सब कुछ जब खुद सँभालने लगेंगे, तब आप को भी बहुत अच्छा लगेगा, देख लेना। अब रोना बंद कीजिए और बताइए हलवा कैसा बना है ? वैसे सच बताना। “

    आंटी ने कहा, ” हलवा सच में अच्छा बना है, मगर इस में थोड़ी शक्कर ज़्यादा हो गई है और अगर इस में तुम मावे के साथ थोड़ी मलाई भी डालती तो इसका स्वाद और भी अच्छा आता, लेकिन ये भी चलेगा। “

    कहते हुए आंटी के चेहरे पर मुस्कान आ गई।

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   मैंने कहा, ” देखा ना, आंटी, आप खाने के बारे में कितना अच्छे से जानती हो, आपको हलवा चखते ही पता चल गया, कि हलवे में मैंने मलाई नहीं डाली। तो वैसे ही आप भी सब कुछ सीख जाओगी। मुझे तो शायद इतना वक़्त ना मिले मगर मेरी एक पहचान में रूपा आंटी है, जो आप ही की तरह हाउस वाइफ है, मगर उसे ये सब कुछ उसके पति ने ही सिखाया है, तो मैं उनसे कह दूँगी, वो दोपहर को या जब भी उनको वक़्त मिले यहाँ आकर आप को सब सिखा देंगे।  इसी बहाने आपका वक़्त भी थोड़ा कट जाएगा और आप की एक नई दोस्त भी बन जाएगी। वैसे भी वह रूपा आंटी भी बहुत अच्छी है और वह बातें तो मुझ से भी ज़्यादा अच्छी करती है। “




          मेरे कहे मुताबिक रूपाने आंटी जी से कुछ ही दिनों में दोस्ती कर ली और आंटी जी को ऑनलाइन सब कुछ मोबाइल में सिखा भी दिया, माना कि उनको ये सब सिखाने और समझाने में बहुत ज़्यादा वक़्त लग गया और उनसे कई बार ग़लतियाँ भी हो जाती हैं मगर सीखना भी तो ज़रूरी है। अंकल जी के पेंशन से उनका घर चल जाता है और अंकल जी ने म्यूच्यूअल फण्ड में भी आंटी के नाम बहुत पैसे जमा कर रखे हैं घर भी आंटी जी के नाम ही है, तो अब आंटी जी पूरा दिन घर में न रहकर घर का काम ख़तम कर मंदिर जाती है, पास-पड़ोस में सब की हेल्प भी करती है, योगा और मैडिटेशन क्लास ज्वाइन कर लिया है, ऑनलाइन सब पेमेंट भी कर लेती हैं अकेले हैं मगर खुश रहते हैं सब की मदद करती हैं ।

        ये तो अच्छा हुआ, कि धीरे-धीरे हेमा आंटी ने वक़्त रहते सब कुछ सीख लिया, मगर इस दुनिया में और भी कई ऐसी औरतें होंगी जिन्हें इन सब के बारे में कुछ पता नहीं और वह इस बात को लेकर शर्मिंदगी महसूस करती होगी और ये सब कुछ नहीं आने की वजह से उनको अपनी ज़िंदगी में कितनी मुसीबतों का सामना करना पड़ता होगा। मैं ये अच्छे से समझ सकती हूँ, कि ये सब एक औरत के लिए बहुत ही मुश्किल है, मगर वक़्त रहते सब कुछ सीख लेना ही समझदारी है। क्योंकि किसी के चले जाने से हमारी ज़िंदगी तो रूकती नहीं, हमें तो अपनी आगे की ज़िंदगी उन्हीं बीती हुई यादों के सहारे गुज़ारनी ही पड़ती है। चाहे हम चाहे या ना चाहे।   

         तो दोस्तों, इस कहानी से मैं बस सिर्फ़ यही कहना चाहती हूँ, कि इस बदलते ज़माने में या कहूँ तो मोबाइल और ऑनलाइन के ज़माने में हर एक को ये सब सीख लेना बहुत ज़रूरी है, पता नहीं क्या कब हो जाए ? पता नहीं कौन, कब अपना रंग बदल दे ? इसलिए किसी और के लिए नहीं तो अपने लिए वक़्त रहते सब कुछ सीख ही लेना चाहिए।

मौलिक

स्व-रचित 

बेला पुनिवाला 

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