जिंदगी मिली दोबारा – गीता वाधवानी

अस्पताल में भर्ती पूनम जी के कमरे में प्रवेश करते ही डॉक्टर अमित ने हंसते हुए कहा-“अरे वाह! आज तो आप काफी चुस्त दुरुस्त लग रही हैं।” 

पूनम जी की बहू रजनी, जो वही बैठी थी उसने कहा-“जी डॉक्टर साहब, मां जी पहले से बहुत अच्छी है। कल रात दिन को नींद भी बहुत अच्छी आई।” 

पूनम-“हां बेटा, नींद तो अच्छी आई, पर आप लोग तो ऐसे बातें कर रहे हैं जैसे मैं बहुत दिनों से अस्पताल में हूं।” 

उनकी बात का कोई जवाब देता, उससे पहले ही उनकी बेटी सीमा ने चाय हाथ में लिए हुए कमरे में प्रवेश किया और बोली-“मां, पहले आप घर में बनी मस्त चाय पी लो, फिर बातें करेंगे।” 

तब तक डॉक्टर साहब उनका चेकअप करके बाहर जा चुके थे और वे तीनों गरमा गरम चाय की चुस्कियां लेने लगी। 

     दोपहर होने को थी। डॉक्टर साहब के दूसरे राउंड का समय हो रहा था। उस समय पूनम जी का बेटा नमन उनको मिलने आया। 

नमन-“कैसी हो मां, अरे वाह, अच्छी दिख रही हो। यह लो मिठाई खाओ।” 

पूनम-“ठीक हूं मैं, तू कैसा है बेटा और यह मिठाई किस खुशी में लाया है?” 

तभी डॉक्टर साहब कमरे में आते हैं और कहते हैं”नमन लगता है मां जी के ठीक होने की खुशी में मिठाई लाए हो।” 

नमन-“जी डॉक्टर साहब, आप भी लीजिए। वैसे मां के ठीक होने के साथ-साथ आज उनका जन्मदिन भी है।” 




पूनम हैरान होते हुए-“नमन, मेरा जन्मदिन आज? डॉक्टर साहब ये ऐसे ही बातें बना रहा है। मेरा जन्मदिन तो 1 अप्रैल को आता है और अभी तो दिसंबर चल रहा है। 

नमन-“मां आज 1 अप्रैल है।” 

पूनम-“पगला है क्या, अभी कल ही तो यानि कि 2 दिसंबर को तेरे पापा की पुण्य तिथि पर पंडित जी से घर पर पूजा रखवाई थी और मैं आंगन में फिसल कर गिर गई, तो आज 1 अप्रैल कैसे हुई?” 

फिर अपनी बात को खुद ही काट कर आगे बोली-“अच्छा एक बात याद आई, बच्चों, कल रात मैंने सपना देखा कि तुम्हारे पापा कुर्सी डालकर मेरे सिर आने के पास बैठे हैं फिर हाथ से इशारा करके बोली”बिल्कुल यहां”और कह रहे हैं कि”घबराती क्यों हो, मैं यही तुम हूं तुम्हारे पास, और फिर गुनगुनाने लगे”ए जिंदगी गले लगा ले”। इतना कहकर वे बच्चों की ओर देखने लगी और बच्चे डॉक्टर साहब की तरफ। डॉक्टर साहब ने इशारा किया और फिर सहमति में सिर हिलाते हुए बोले-“मां जी ,आपके बच्चे आपसे बहुत प्यार करते हैं। इन्होंने 1 दिन भी आप को अकेला नहीं छोड़ा और अब हम जो कुछ भी आपको बताएंगे, वह आप शांत मन से सुनिए और खुश रहिए।” 

पूनम सबको प्रश्नवाचक दृष्टि से देख रही थी। 

नमन-“मां, दरअसल आप गिरने के बाद कोमा में चली गई थी। कल ही आपको होश आया और आज 1 अप्रैल है। आज सचमुच आपका जन्मदिन है।” 

पूनम हैरान होकर कहती है”क्या इसका मतलब मैं पूरे 4 महीने कोमा में थी।” 

रजनी-“हां मां और हम से डॉक्टर साहब ने पूछा, तब हमने उन्हें बताया कि कैसे आप पापा के जाने के बाद खुद को निहायत ही अकेला महसूस करने लगी थी और आपको लगने लगा था कि अब आप कैसे अकेली जी पाएंगी। आप पापा की तस्वीर से छुप छप कर बातें करती थी और उनसे बार-बार कहती थी कि आप मुझे अकेला क्यों छोड़ गए, मैं आपके बिना कैसे रहूंगी। सबके सामने आप मुस्कुराने की कोशिश करती थी और दिल में पापा के जाने का दुख पाल लिया था।” 




डॉक्टर साहब ने हमें समझाया-“जिस दुख को इन्होंने मन में पाला है वही इन्हें कोमा से बाहर लाने में मदद कर सकता है।” 

रजनी के बात करते-करते ही उनकी बेटी सीमा एक कुर्सी खिसका कर आगे ले आई जिस पर कोई बैठा था और उसका चेहरा ढका हुआ था। 

सीमा ने कहा-“मां अब तुम वादा करो कि टेंशन नहीं लोगी। हम तुम्हें कुछ दिखाना चाहते हैं।” 

पूनम-“ठीक है” 

सीमा ने कुर्सी से शॉल को हटाया। तब पूनम कुर्सी पर अपने पति को बैठा देखकर हैरान रह गई। तब सीमा ने उनका हाथ पकड़ कर ,अपने पापा के हाथ पर रख दिया। तब स्पर्श से पूनम को समझ आया कि वह मोम से बनी मूर्ति है। हू बहू, मानो उसके पति सामने बैठे हो और अभी बोल पड़ेंगे। यह मूर्ति अपनी मां को कोमा से बाहर लाने के लिए नमन ने बनवाई थी। 

पूनम खुद पर संयम ना रख पाई और अपना हाथ उनके हाथ पर रखकर बहुत देर तक फूट-फूटकर रोती रही। साथ ही जो कुछ मन में था बोल बोल कर अपना दुख बाहर प्रकट करती रही। काफी देर रोने के बाद अचानक उसे अपने पति की आवाज सुनाई दी।”घबराती क्यों हो, मैं यहीं तो हूं तुम्हारे पास, ए जिंदगी गले लगा ले” 

उसने आंसू पहुंचकर देखा तो यह आवाज मोबाइल में से आ रही थी। दरअसल एक बार नमन ने मजाक मजाक में पापा की आवाज रिकॉर्ड कर ली थी और जब से पूनम कोमा में थी तब से यही आवाज सुनाते हुए और कुर्सी पर पापा की मूर्ति उनके सिरहाने रखते हुए उन्हें ठीक करने की कोशिश की जा रही थी। कोशिश करते करते आखिर एक दिन वह कोमा से बाहर आ गई थी और उन्हें लग रहा था कि उन्होंने सपना देखा है। 




उनको अपने पति का हाथ पकड़ कर रोते हुए देख कर उनके बच्चे और खुद डॉक्टर भी रो पड़े थे। 

आज वास्तव में उनका सारा दुख मन से बाहर फूट पड़ा था। डॉक्टर साहब ने कहा-“नमन तुम सब की कोशिशों के कारण तुम्हारी मां का मन हल्का हो गया है और अब इन्हें जिंदगी दोबारा मिल गई है।ये अब खतरे से बाहर है।”

स्वरचित, अप्रकाशित 

गीता वाधवानी दिल्ली

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